अमेरिकी सब प्राइम संकट का सबसे ज्यादा खमियाजा बैंकिंग सेक्टर को भुगतना पड़ रहा है। माना जा रहा है कि फॉरेक्स डेरिवेटिव्स में इनके एक्सपोजर की वजह से बैंकों के लाभ पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखेगा। बीएसई में बैंकों का इंडेक्स लगातार गोता लगाता जा रहा है। इस हफ्ते के पहले दिन सोमवार को बैंकेक्स
एनालिस्टों का मानना है कि फॉरेक्स डेरिवेटिव्स में बैंकों के कारोबार को देखते हुए निवेशक बैंकों में पैसा डालने से कतरा रहे हैं। उन्हे डर है कि कई निजी बैंक कानूनी दांवपेंच में फंस सकते हैं क्योकि उनके क्लायंट्स का आरोप है कि बैंकों ने उन्हे उन्हे बेचे गए प्रॉडक्ट्स की सही जानकारी नहीं दी जिसकी वजह से उन्हे नुकसान उठाना पडा। इसके अलावा कई क्लायंट्स इस वजह से फॉरेक्स में होने वाला नुकसान खुद झेलने से मुकरेंगी
, लिहाजा कई बैंकों को ये नुकसान अपने ऊपर लेना पड़ सकता है।एक बैंकिंग एनालिस्ट का मानना है कि बैंकों के पास जो बांड हैं उनकी मियाद
4-5 साल होती है और इस निवेश पर उन्हे लाभ के लिए लंबा इंतजार करना होगा। वैसे भी दुनियाभर में निवेशक फाइनेंशियल कंपनियों से कन्नी काट रहे हैं, ऐसे में भारत में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं।घरेलू बाजार में शायद ही कोई बैंक हो जिसे इस मंदी का झटका न लगा हो। स्टेट बैंक
, पीएनबी, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और एक्सिस बैंक को काफी नुकसान हुआ है। आईसीआईसीआई बैंक का भाव अपने उच्चतम स्तर से आधा रह गया है। बैंक ने अपनी विदेशी शाखाओं में हुए नुकसान की भरपाई के लिए 7 करोड़ डॉलर का प्रावधान किया है।मोतीलाल ओसवाल सेक्योरिटीज के जेएमडी रामदेव अग्रवाल का कहना है कि फाइनेंशियल सेक्टर बुरे दौर से गुजर रहा है और घरेलू बाजार भी इससे अछूता नहीं है। इसके अलावा मीडिया में फॉरेक्स डेरिवेटिव्स में बैंकों को होने वाले नुकसान की खबरों से भी निवेशक इस सेक्टर से दूरी बनाए हुए है।