देश में स्त्री शिक्षा की नींव रखने वाले और छुआछूत के खिलाफ प्रयास करने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले की आज जयंती है। उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 में हुआ को पुणे में हुआ था। भारतीय समाज को सशक्त बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है।
ज्योतिबा फुले ने समाज में फैली कुरीतियों से लड़ने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए। सबसे पहले उन्होंने महाराष्ट्र में महिला शिक्षा और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।
भारत में महात्मा फुले को बेहद सम्मान के साथ एक समाज सुधारक, विचारक, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। 24 सितंबर 1873 में महात्मा ज्योतिबा फुले ने ‘सत्य शोधक समाज’ नामक एक संस्था की स्थापना की थी, ये संस्था नीची समझी जाने वाली और अस्पृश्य जातियों के उत्थान के लिए काम करती थी।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडर भी महात्मा फुले के विचारों से प्रभावित थे। उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए भारत की पहला विद्यालय खोला। लड़कियों और दलितों के लिए पहली पाठशाला खोलने का श्रेय ज्योतिबा फुले को दिया जाता है।
छुआछूत को खत्म करने के लिए जिसे उस समय अछूतोद्धार भी कहा जा रहा था, ज्योतिबा ने अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी और इसका नतीज ये हुआ कि उन्हें ही जाति से बहिष्कृत कर दिया गया।
लेकिन इन सब के बाद भी वो कुरीतियों के खिलाफ बुलंद आवाज में विरोध करते रहे और धीरे-धीरे कामयाब भी हुए। 1853 में पति-पत्नी ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली। इन सब कामों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर प्रतिक्रियावादियों ने एक बार दो हत्यारों को उन्हें मारने के लिए तैयार किया था, पर वे ज्योतिबा की समाजसेवा देखकर उनके शिष्य बन गए।
दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। वे लोकमान्य के प्रशंसकों में थे।