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महानगरों से छोटे शहरों तक बढ़ी जीनोमिक जांच की मांग, 2030 तक बाजार 206 करोड़ डॉलर के पार

जीनोमिक जांच की मांग भारत में महानगरों से आगे बढ़ चुकी है, जहां कैंसर और प्रजनन स्वास्थ्य परीक्षणों की जरूरत छोटे शहरों में भी तेजी से पांव जमा रही है।

Last Updated- June 29, 2025 | 10:46 PM IST
genomic testing
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

देश में जीनोमिक जांच की मांग में पिछले दो से तीन साल के दौरान काफी इजाफा हुआ है। क्लीनिक संबंधी बढ़ती जागरूकता, तेजी से हो रहे तकनीकी विकास और व्यक्तिगत चिकित्सा को तेजी से अपनाए जाने की वजह से जीनोमिक जांच को बढ़ावा मिला है। बड़े शहरों में विशेष सेवा वाली जीनोमिक डायग्नोस्टिक का अब मझोले और छोटे शहरों में भी विस्तार हो रहा है। इस तरह यह निवारक और सटीक स्वास्थ्य सेवा के परिदृश्य को फिर से आकार दे रही है।

साल 2024 में भारतीय जीनोमिक डायग्नोस्टिक बाजार का मूल्य 55 करोड़ डॉलर था। उद्योग के अनुमानों के अनुसार यह 18 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ेगा और साल 2030 तक 206.631 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा।

इस इजाफे के प्रमुख कारणों में चिकित्सा संबंधी व्यापक स्वीकृति, परीक्षण की कीमतों में गिरावट, बेहतर पहुंच और उपभोक्ताओं के व्यवहार में सक्रिय तथा व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा की दिशा में बदलाव शामिल हैं। 

एजिलस डायग्नोस्टिक्स, मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर, डॉ. लाल पैथलैब्स, महाजन इमेजिंग ऐंड लैब्स और रेडक्लिफ लैब्स जैसी प्रमुख डायग्नोस्टिक कंपनियों ने इस श्रेणी में दो अंकों की वृद्धि दर्ज की है।

जहां मुंबई, बेंगलूरु और दिल्ली जैसे महानगरों की अब भी बड़ी हिस्सेदारी है, वहीं लखनऊ, भुवनेश्वर, पुणे, कोच्चि और सूरत जैसे शहरों में बढ़ती जागरूकता और बुनियादी ढांचे की वजह से शहरी केंद्रों से परे मांग को बढ़ावा मिल रहा है।

जांच संबंधी व्यावहारिकता में काफी सुधार हुआ है। सामान्य जीनोमिक जांच की कीमतों में 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।  जैसे बीआरसीए 1/2 (स्तन, गर्भाशय के कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाले जीन में बदलाव की पहचान करने के लिए किसी व्यक्ति के डीएनए का विश्लेषण करने के लिए की जाने वाली जांच) और गर्भवती महिलाओं पर भ्रूण में कुछ आनुवंशिक स्थितियों के जोखिम का आकलन करने के लिए की जाने वाली रक्त जांच – नॉन-इन्वैसिव प्रसवपूर्व जांच (एनआईपीटी)। इन जांच जटिलता के आधार पर 5,000 से 20,000 रुपये के बीच होती है।

हालांकि आधुनिक ऑन्कोलॉजी पैनल और एक्सोम सीक्वेंसिंग की लागत अब भी 2 लाख रुपये तक हो सकती है, लेकिन हाई-थ्रूपुट प्लेटफॉर्म और इन-हाउस टेस्ट डेवलपमेंट को व्यापक रूप से अपनाने से जटिल जांच भी ज्यादा सुलभ हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि कई श्रे​णियों में जीनोमिक जांच की मांग में इजाफा हुआ है, लेकिन देशव्यापी स्तर पर कैंसर का पता लगाना और प्रजनन स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना इस वृद्धि के प्रमुख संचालक रहे हैं।

प्राइमस पार्टनर्स के समूह के मुख्य कार्य अ​धिकारी और सह-संस्थापक निलाया वर्मा ने कहा, ‘कैंसर जांच की मांग में तेजी से वृद्धि के साथ-साथ बाल चिकित्सा और प्रसवपूर्व और गर्भधारण संबंधी जांच जैसे प्रजनन स्वास्थ्य अनुप्रयोगों का भी आनुवंशिक जांच के इजाफे में प्रमुख योगदान है। देश में दुर्लभ आनुवंशिक रोगों की जांच की ग में भी इजाफ देखा जा रहा है, जो भारत की विशाल आनुवंशिक विविधता से प्रेरित है।’

​एजिलस डायग्नो​स्टिक्स के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अ​धिकारी आनंद के ने कहा, ‘हमारे कुल डायग्नोस्टिक राजस्व में जीनोमिक जांच की हिस्सेदारी अब 5 से 7 प्रतिशत है, जो तीन साल पहले 2 प्रतिशत से भी कम थी।’ रेड​क्लिफ लैब्स इस आंकड़े को और भी ज्यादा 30 से 40 प्रतिशत के स्तर पर आंकती है, जिसमें जांच की मात्रा में सालाना आधार पर लगातार 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

First Published - June 29, 2025 | 10:46 PM IST

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