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स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका पर सवाल

Last Updated- December 09, 2022 | 9:14 PM IST

पहले से ही महंगाई, वैश्विक मंदी और आतंकवादी हमलों से परेशान भारतीय कारोबारी जगत के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम सत्यम के घोटाले ने किया है।


सत्यम के प्रमोटर चेयरमैन ने अपने ही परिवार की कंपनी मायटास में हिस्सेदारी खरीदने का जो फैसला किया था, मौजूदा माहौल में कारोबार जगत के लिए इससे ज्यादा परेशान करने वाली कोई खबर नहीं हो सकती थी।

अब तक भारत को निवेश के लिहाज से एक अनुकूल जगह माना जाता रहा है और यहां की कारोबारी प्रणाली को हमेशा से निष्पक्ष और पारदर्शी समझा जाता रहा है।

पर सत्यम की घटना ने एक नई बहस छेड़ दी है और यह सवाल उठने लगा है कि क्या भारत के कारोबारी संस्थानों पर कोई नियंत्रण व्यवस्था नहीं रह गई है।

हालांकि जैसे ही सत्यम ने अपने मुख्य कारोबार से अलग हटते हुए दूसरी दिशा में दखल देने का फैसला लिया तो निवेशकों ने इसे आड़े हाथों लिया।

इस बारे में प्रबंधन ने सफाई दी कि इस फैसले से कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है और फैसला लेने से पहले शेयरधारकों से अनुमति लेने की भी कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि सत्यम में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी कम है।

निवेशकों ने इस फैसले को पसंद किया या नहीं, इसे जानने के लिए तो बस इतना ही काफी है कि जिस दिन यह फैसला किया गया, उसके दूसरे ही दिन सत्यम के शेयरों का हश्र शेयर बाजार पर देखने लायक था। कंपनी के शेयरों में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई।

जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो एक के बाद एक कई बातों से पर्दा उठा और तब यह खुलासा हुआ कि कंपनी के चालू खाते में काफी नकदी पड़ी है और इस तरह कंपनी कम लाभांश बांट रही है।

इधर ब्रिटेन के एक क्लाइंट ने कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज कर यह आरोप लगाया है कि पार्टी सौदे में प्रमोटर चेयरमैन के परिवार को लाभ पहुंचाने के लिए अधिक नकदी वसूली गई थी।

हालात की नजाकत को भांपते हुए सत्यम ने इस अधिग्रहण के फैसले को तत्काल वापस ले लिया और यह भी घोषणा की कि मायटास अपने शेयरों की पुनर्खरीद करेगी।

भले ही मामले में लीपापोती करने की कोशिश की गई, पर इस घटना से एक बुनियादी सवाल उठ खड़ा होता है कि क्या सूचीबद्ध कंपनियों के लिए कोई नियम कानून नहीं हैं?

साथ ही यह भी कि कारोबारी नियंत्रण और कानून के बीच क्या अंतर है और क्या कारोबारी नियंत्रण केवल दिखावे के लिए होता है, जिसकी जब चाहें धाियां उड़ाई जा सकती हैं।

कारोबारी नियंत्रण के तहत ऐसी प्रक्रियाएं, नीतियां और कानून शामिल होते हैं जो उन शेयरधारकों को अपने दायरे में शामिल करती है जो कंपनी के परिचालन और नियंत्रण में दखल रखते हैं। जरूरी नहीं है कि कारोबारी नियंत्रण में केवल शेयरधारकों को और प्रबंधन को ही शामिल किया जाए।

इसमें ग्राहकों, क्रेडिटरों कर्मचारियों और नियामकों को भी शामिल किया जाता है। कारोबारी नियंत्रण का उद्देश्य कंपनी की जवाबदेही सुनिश्चित करना है और यह भी देखना है कि कंपनी की कारोबारी कारगरता बनी रहे। हर बार ऐसा जरूरी नहीं है कि कारोबारी नियंत्रण के नियमों को कानूनी शक्ल दिया जा सके।

इसकी वजह है कि कई बार इन नियमों बाजार की ताकतें और कंपनी का कारोबार तय करता है। हालांकि सेबी कमिटी रिपोर्ट में कारोबारी नियंत्रण के कुछ पैमानों का उल्लेख है जिसे प्रबंधन अपने शेयरधारकों का हित सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल करता है।

कई सिद्धांत कंपनी के भीतरी नियंत्रण और निदेशक मंडल की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए तैयार किए जाते हैं। पर इसके लिए सबसे जरूरी है कि स्वनियंत्रण पर जोर दिया जाए।

यहां आम लोगों और निवेशकों के लिए सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि सत्यम के जिस निदेशक मंडल ने इस सौदे पर अपनी मुहर लगाई थी उसमें 6 स्वतंत्र निदेशक भी शामिल थे। यहां तक कि यह फैसला देते वक्त बोर्ड के अध्यक्ष की कुर्सी पर भी एक स्वतंत्र निदेशक ही बैठा था।

अब चूंकि, सत्यम शेयर बाजार पर सूचीबद्ध कंपनी है इस वजह से उस पर न केवल कंपनी कानून बल्कि कारोबारी नियंत्रण नियम भी लागू होते हैं। इनमें से कुछ ऐसे निदेशक भी रहे होंगे जो कंपनी की ऑडिट कमिटी में रहे होंगे, सो उनके पास पहले ही मौका रहा होगा कि वह यह तय करें कि यह सौदा कितना जायज है।

साथ ही हर निदेशक को यह छूट थी कि वह सौदे के बारे में अपनी व्यक्तिगत पेशेवर राय रख सके। उपबंध 49-2 में तो खासतौर पर इस बात का जिक्र है कि पार्टी सौदों के दौरान कमिटी के समीक्षा अधिकार कौन कौन से हैं। इस घटना के बाद जिस तरह से 4 स्वतंत्र निदेशकों ने अपना इस्तीफा सौंप दिया उससे हालात और भी अस्पष्ट लगने लगे।

कंपनी कानून की 291, 297, 299, 397, 398, 408, 629 ए समेत विभिन्न धाराओं में निदेशकों की शक्तियों और जिम्मेदारियों का उल्लेख मिलता है। इसमें बताया गया है कि शेयरधारकों के हितों को प्रभावित करने वाले किसी भी कदम को उठाने से पहले उन्हें बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है।

हालांकि ऐसे कदम उठाने से बचने के कौन कौन से तरीके हो सकते हैं और उन्हें दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है, इस बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है।

भले ही सत्यम मामले में फैसला वापस ले लिया गया है पर कंपनी की जवाबदेही, स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका और नियंत्रण जैसे कुछ सवाल हैं जिनका हल अब भी नहीं ढूंढा जा सका है। भविष्य में ऐसे मामले सामने न आएं इसके लिए जरूरी है कि पहले से एहतियात बरती जाए।

First Published - January 11, 2009 | 11:43 PM IST

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