गत सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य वित्त निगम बीमार औद्योगिक इकाई की गिरवी रखी गयी चीजों की ही बिक्री कर सकता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी औद्योगिक इकाई जिन चीजों को गिरवी रखकर कर्ज लेता है और उसे बीमार इकाई घोषित कर दिया जाता है तो वित्त निगम सिर्फ उन्हीं चीजों की बिक्री कर सकता है। औद्योगिक इकाई से जुड़ी अन्य चीजों पर उसका कोई अधिकार नहीं होगा और न ही उन चीजों को उसने बेचने का कोई हक होगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऑरमी टेक्सटाइल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य से जुड़े एक मामले में आया है। इस मामले में औद्योगिक इकाई ने वित्त निगम से कर्ज लेने के लिए अपनी जमीन गिरवी रखी थी। बीमार होने के कारण कर्ज नहीं लौटाने पर निगम ने इकाई की जमीन के अलावा अन्य चीजों की बिक्री करने की पेशकश की।
जबकि कर्ज के समझौते में सिर्फ जमीन को गिरवी रखा गया था। निगम की दलील थी कि उसे गिरवी रखी हुई चीज के अलावा अन्य चीजों को भी बेचने का अधिकार है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निगम की दलील को स्वीकार भी लिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया।
कार सीट कर में कमी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि कार की सीट को आरामदेह बनाने वाली चीजों पर सीट की अन्य चीजों के मुकाबले उत्पाद कर कम होगा। इस मामले में केंद्रीय उत्पाद आयुक्त ने ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। जिसे खारिज कर दिया गया। ट्रिब्यूनल ने इंस्युलेशन इलेक्ट्रीकल के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था।
यह फर्म सीट एडजस्टर, स्लाइडर्स, लॉक एसेंबली व अन्य चीजों का उत्पादन कर उसे भारत सीट्स लिमिटडे व कृष्णा मारुति लिमिटडे को आपूर्ति करता है। ये दोनों फिर इन्हें मारुति उद्योग लिमिटेड को आपूर्ति करते है। राजस्व प्राधिकरण ने इन चीजों को सीट का पार्ट मानते हुए इस पर 18 फीसदी उत्पाद शुल्क की मांग की।
लेकिन फर्म ने यह दलील रखी कि इन चीजों का निर्माण सीट को आरामदेह बनाने के लिए किया गया है। लिहाजा यह सीट का पार्ट नहीं है। इसलिए इन चीजों पर सिर्फ 15 फीसदी शुल्क ही लगाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने फर्म की इस दलील को अपनी स्वीकृति दे दी।
क्षतिपूर्ति नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एक तय सीमा के लिए काम करने वाले गैरनियमित मजदूरों को मजदूर क्षतिपूर्ति कानून के तहत कोई मुआवाजा नहीं दिया जा सकता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए अपनी व्यवस्था दी।
इस मामले में मजदूर किसी भवन में मरम्मत का काम कर रहे थे। उस दौरान उन्हें बिजली का झटका लगा था। इस मामले में हाईकोर्ट ने उस मजदूर के आश्रितों को 1.66 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने के लिए कहा। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
बिल्डर पर जुर्माना
कानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने भवन निर्माण से जुड़ी एक कंपनी पर 50,000 रुपये का जुर्माना किया है। बीएल गुप्ता कंस्ट्रक् शन बनाम भारत कूप ग्रुप हाउसिंग कंपनी के मामले में कानूनी मध्यस्थ ने बिल्डर के पक्ष में फैसला दिया था लेकिन ब्याज को लेकर उत्पन्न विवाद में यह मामला कई वर्षों तक खिंच गया।
इस मामले की विवेचना करते हुए कोर्ट ने कहा कि बिल्डर ने इस मामले को समाप्त करने में काफी लंबा समय लिया है जबकि कोर्ट ने पहले ही इस मामले में कई स्पष्ट आदेश दे दिए थे।