पिछले हफ्ते नई दिल्ली में एशिया गैस पार्टनरशिप सम्मिट हुई। इस सम्मेलन के उद्धाटन सत्र में मैकिंजी एंड कंपनी ने 2020 में गैस के बारे में एक प्रपत्र जारी किया जिसमें ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से प्राकृतिक गैस को महत्व दिया गया था।
इस आयोजन ने एशिया महाद्वीप के ऊर्जा उत्पादकों और उपभोग करने वाले देशों के साथ-साथ दुनिया के बड़े से बड़े देश को अपनी ओर खींचा।
बहस का मुद्दा
वैसे इसमें नीति निर्माताओं में एक बात पर सहमति बन गई थी, इसमें उत्पादक, उपभोक्ता और नियंत्रक के बीच मांग और आपूर्ति के रुझान, कीमत और बुनियादी ढांचे पर बात हुई लेकिन भारत के बजट में किए गए राजकोषीय परिवर्तनों के चलते बात अधूरी रह गई। इस बजट में दो महत्वपूर्ण बदलाव किये गए।
इसके तहत 31 मार्च 2009 तक जिन रिफाइनरियों का उत्पादन शुरू हो जाएगा, वे तो कर छूट का फायदा उठा पाएंगी लेकिन इस तारीख के बाद जिनका उत्पादन शुरू होगा उनको कर में छूट का फायदा नहीं मिल पाएगा।
एक विस्तृत आशयपत्र(जिसका बजट दस्तावेज में भी जिक्र है) में ‘मिनरल ऑयल’ शब्द को स्पष्ट किया गया है जिसमें पेट्रोलियम और गैस शामिल नहीं होता जिसको 7 वर्षों के लिए कर में छूट दी जाए।
इसमें पहला परिवर्तन तो समझ में आता है, लेकिन जो दूसरा परिवर्तन है उसको समझना थोड़ा गले से नीचे नहीं उतर रहा है। नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (एनईएलपी) के तहत छूट में कमी से जो भी लोग इसमें रूचि रख रहे थे, जाहिर है इसके बाद उनकी रूचि उतनी नहीं रह जाएगी।
भारत में एनईएलपी के जरिये निजी कंपनियों को अन्वेषण और हाइड्रो कार्बन के उत्पादन में पिछले 9 वर्षों से छूट देकर आकर्षित किया जा रहा है और भारत की इस नीति को दुनिया में कई और देशों की इस दिशा में नीति की तुलना में बेहतर माना जा रहा था।
अब सवाल यही उठता है कि जो क्षमतावान बिडर्स हैं उनको प्राकृतिक गैस के उत्पादन पर मिलने वाली कर में राहत के बारे में सोचना भी चाहिए अथवा नहीं? वैसे जो छूट अनुबंध (एक विशेष क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन के अन्वेषण का अनुबंध) होता है, वह 25 से 30 सालों के लिए वैध है और इसमें 7 साल के लिए कर में छूट उत्पादन के साथ-साथ इससे जुड़ी हुई कंपनियों के मुनाफे पर प्रभाव डालती है।
इस मामले को और बदतर बनाते हुए, इस विस्तृत आशय पत्र में कहा गया है कि इससे प्राकृतिक गैस के घरेलू उत्पादकों पर असर पड़ेगा जिन्होंने कर में छूट के चलते ही इस तरह की परियोजनाओं में रूचि दिखाई थी, नये नियमों के चलते प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। कुछ कंपनियों के अलावा जो तेल उत्पादक कंपनियां प्राकृतिक गैस का भी उत्पादन कर रही हैं, उनको कर का कोप झेलना पड़ेगा।
एक बहस यह भी है कि वहन करने योग्य कर की राशि कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों को देखते हुए लंबे समय के लिए मुद्दा नहीं बबबबहै। यह बहस नीति निर्माताओं के माथे को भी मथ रही है, आखिर क्यों कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस में इस तरह अंतर किया जा रहा है जबकि प्राकृतिक गैस सुरक्षित और पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाती है।
क्या है खनिज तेल?
आयकर नियमों के तहत पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की परिभाषा स्पष्ट है। इसके अलावा काल्टेक्स और बर्मा शेल के मामले में बंबई उच्च न्यायालय ने जो फैसला सुनाया है उसके बाद कोई भ्रम बचता ही नहीं है कि खनिज तेल में कच्चे तेल के अलावा पेट्रोलियम और कुछ अन्य चीजें शामिल हैं।
देश में तेल और गैस के अन्वेषण को प्रोत्साहन देने के लिए 1997 के बजट में इसके लिए कर में अवकाश का प्रावधान किया गया था। शुरुआत में यह कर अवकाश देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में लागू था। बाद में 1998 के वित्त अधिनियम में इसको पूरे देश में लागू कर दिया। वैसे 2008 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने खुद गैस को अनुकूल ईंधन बताया है और पहले दी जा रही कर में छूट को भी तर्कसंगत बताया।
कानून और नियंत्रक
तेल क्षेत्र अधिनियम(द ऑयल फील्ड एक्ट), 1948 के अनुसार गैस भी खनिज तेल संसाधन में शामिल है। इसके बाद पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने 1999 में टैक्स गाइड प्रकाशित की जिसमें गैस उत्पादकों को कर में छूट देने की बात कही गई थी।
इसमें कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस को पेट्रोलियम पदार्थों की श्रेणी में जगह दी गई है। बाद में कोल बेड मीथेन (सीबीएम) के लिए उत्पाद सहयोग अनुबंध(प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट,पीएससी) में सीबीएम को प्राकृतिक गैस के तहत परिभाषित किया गया है। पीएससी अनुबंध करने वाली कंपनियों और सरकार के बीच संबंधों को तय करता है।
अनुबंध की बाध्यता
टैक्स कानूनों के तहत, पीएससी सरकार द्वारा हस्ताक्षरित एक दस्तावेज है और सदन के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाता है। पीएससी शर्तों और छूट की अवधि को तय करता है, और आय कर धाराओं के तहत कर छूट और उसकी सीमा को निर्धारित करता है।
कर छूट में जो अनिश्चितता बनी रहती है उससे निवेशकों के मन में हमेशा शंका बनी रहती है जिससे उन्हें चिंता सताती रहती है विस्तृत आशय पत्र के कायदे कानूनों में बदलाव न कर दिया जाए। पीएससी भारत के राष्ट्रपति के प्रतिनिधि द्वारा हस्ताक्षरित किया जाता है।
मेरा खुद का यह विश्वास है कि भारत ऊर्जा के क्षेत्र में जो मुश्किलें झेल रहा है खासकर, तेल और प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में, इसलिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार को इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने चाहिए। वैसे भी यह भारी निवेश वाला क्षेत्र है, ऐसे में निजी कंपनियों को लुभाने के लिए सरकार को इस कदम पर फिर से विचार करना चाहिए।