भारतीय आयकर कानून के तहत देश में स्थित किसी कैपिटल एसेट यानी पूंजीगत संपत्ति के हस्तांतरण से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर होने वाली कोई भी कमाई आयकर के दायरे में आती है।
कई दफा भारत में मौजूद इन संपत्तियों की स्थिति को लेकर विवाद उठ खड़ा होता है। खासतौर पर अभौतिक संपत्तियां जैसे ट्रेडमार्क, ब्रांड नेम के मामले में विवाद और गहरा होता है। इस संदर्भ में फॉस्टर्स ऑस्ट्रेलिया लि. (170 टैक्समैन 341) के हाल के उदाहरण पर विचार किया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया की यह कंपनी बियर बनाने और उसे बेचने का काम करती थी।
कंपनी के पास खुद के ट्रेडमार्क, लोगो और तकनीक मौजूद थी। 13 अक्टूबर, 1997 को कंपनी फॉस्टर इंडिया के साथ एक ब्रांड लाइसेंस समझौते में शामिल हुई। फॉस्टर इंडिया एक भारतीय कंपनी है जिसके पास फॉस्टर की बियर को तैयार करने, उसकी पैकेजिंग, लेबलिंग और उसे बेचने का अधिकार है। फॉस्टर इंडिया के पास भारत के अंदर फॉस्टर के ट्रेडमार्क इस्तेमाल करने का भी अधिकार है। ऑस्ट्रेलियाई कंपनी इसे रॉयल्टी आय मानते हुए आयकर चुका रही थी।
ऑस्ट्रेलिया की इस कंपनी ने 4 अगस्त 2006 को ब्रिटेन की एक कंपनी एसएबी मिलर के साथ बिक्री और खरीद (एसऐंडपी) का समझौता किया। इस समझौते का उद्देश्य फॉस्टर इंडिया के शेयरों और कुछ दूसरी अभौतिक संपत्तियों का हस्तांतरण करना था। इस मामले में मुख्य मुद्दा यह था कि एसऐंडपी समझौते के तहत जिस कैपिटल एसेट का हस्तांतरण किया जाना था, क्या वह भारत में थी। यह मुद्दा तब से उठा जब से यह माना जाने लगा कि भारत स्थित कैपिटल एसेट के ट्रांसफर से होने वाली आय पर देश में ही धारा 9 (1) के तहत ही कर वसूला जाना चाहिए।
ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ने अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग का दरवाजा खटखटाया। इस मामले में पाया गया कि एसऐंडपी समझौते में जिन संपत्तियों को शामिल किया गया है, वे भारत में नहीं है। ऐसे में संपत्ति के मालिक के वित्तीय आवास को ही वास्तविक स्थान माना जाएगा। अब चूंकि संपत्ति और समझौते का स्थान दोनों ही भारत में नहीं है ऐसे में आयकर कानून 1961 के तहत इस मामले में भारत में कर नहीं वसूला जा सकता।विभाग का तर्क था कि फॉस्टर इंडिया ऑस्ट्रेलियाई फॉस्टर समूह की सहायक कंपनी है।
भले ही शेयरों, ट्रेडमार्क और फॉस्टर के ब्रांड को दो अलग अलग इकाइयों के जरिए बेचा जाता है, पर फॉस्टर समूह ने फॉस्टर इंडिया के मालिकाना हक जिनमें भौतिक और अभौतिक दोनों ही संपत्तियां शामिल हैं, किसी और को बेच दिए हैं। हालांकि अथॉरिटी ने इस मामले में कहा कि, ‘हमारे विचार से इन बौद्धिक संपत्तियों के वास्तविक स्थान की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है और जिस स्थान पर दोनों पार्टियों की ओर से यह समझौता किया गया हो, उसे ही संबंधित स्थान माना जाना चाहिए।
जिस दिन हस्तांतरण किया गया, उस दिन दोनों ही पार्टियां भारत में ही मौजूद थीं। ऑस्ट्रेलिया में उनकी मौजूदगी तो महज कागजी है। यह तर्क देना कि ट्रेड मार्क और नेम का जन्म मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया में हुआ था और शुरुआत में उनका पंजीकरण भी वहीं हुआ था, इस बात से कोई खास फर्क नहीं पड़ना सकता है।’