सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से हिंदुस्तान यूनिलीवर को उस राशि पर ब्याज चुकाने को कहा जिसका भुगतान कंपनी ने यूपी कोऑपरेटिव स्पिनिंग मिल्स फेडरेशन के बॉन्ड की खरीद के लिए किया था।
कंपनी ने सरकार की गारंटी पर अपने कर्मचारियों के भविष्य निधि अंशदान से ये बॉन्ड खरीदे थे, लेकिन फेडरेशन समाप्त हो गया। कंपनी ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिसके बाद मूल राशि का भुगतान कर दिया गया। सरकार ने ब्याज का भुगतान करने से इनकार कर दिया और एक अपील दायर की।
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से तीन महीने में ब्याज चुकाने को कहा। उसने कहा, ‘फेडरेशन के वित्तीय मुश्किलों से जूझने का तथ्य सरकार के लिए यह कहने का आधार नहीं हो सकता कि वह ब्याज का भुगतान नहीं करेगी, हालांकि इसने ब्याज के साथ पुन: भुगतान करने की गारंटी दी थी। यदि इस तरह का तर्क स्वीकार किया जाता है तो गारंटी का सही उद्देश्य बेकार हो जाएगा। हम इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि इस तरह की याचिका उत्तर प्रदेश की ओर से पेश की गई है।’
सरकारी प्रपत्र
सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सरकारी प्रपत्र के मामले में संविधान पीठ के अपने एक पुराने फैसले की पुष्टि कर दी है। यह मामला सरकारी प्रपत्रों के मुकाबले अदालती फैसलों की महत्ता से जुड़ा था।
सरकार ने इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा था। कलेक्टर ऑफ सेंट्रल एक्साइज बनाम धीरेन केमिकल इंडस्ट्रीज के मामले में कई कंपनियों ने पूर्व फैसले के आधार पर उत्पाद शुल्क की मांग को चुनौती दी थी। कंपनियों की दलील थी कि केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने जो परिपत्र जारी किए हैं, वे राजस्व अधिकारियों पर बाध्यकारी हैं। दूसरी तरफ सरकार ने यह दलील दी कि बोर्ड के परिपत्र इन फैसलों पर लागू नहीं हो सकते।
केंद्रीय उत्पाद आयुक्त बनाम रतन मेल्टिंग इंडस्ट्रीज के मामले में संविधान पीठ के ताजा फैसले में अदालत ने सरकार के नजरिये को बरकरार रखा। अदालत ने कहा, ‘जहां तक केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा जारी परिपत्र की बात है तो वे सांविधानिक प्रावधानों को दर्शाते हैं। यह अदालत को तय करना है कि कौन सा प्रावधान क्या कहता है और यह अधिकारियों का काम नहीं है।’
केंद्रीय उत्पाद कानून
एक और फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय उत्पाद कानून की धारा 11एसी के संदर्भ में अपने पूर्व के फैसलों में से दो को स्पष्ट कर दिया है।
यह धारा धोखाधड़ी, मिलीभगत या तथ्यों को छिपाने के मामले में शॉर्ट लेवी या नन-लेवी के लिए दंड से संबद्ध है। सवाल यह था कि क्या कर निर्धारिती ने गिल्टी माइंड के साथ काम किया या नहीं। पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले में कहा गया था कि पेनाल्टी लगाए जाने में विवेकाधिकार के लिए गुंजाइश है।
लेकिन 2006 के एक अन्य फैसले में कहा गया कि पेनाल्टी अनिवार्य थी और इस मामले में गिल्टी माइंड साबित करने की आवश्यकता नहीं है। यूनियन ऑफ इंडिया बनाम धर्मेन्द्र टेक्सटाइल प्रोसेसर्स के मामले में सही स्थिति को स्पष्ट करते हुए दूसरे वाले फैसले को अदालत ने बरकरार रखा है।
अग्रिम कर
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह गुजरात उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ आय कर आयुक्त की अपील को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय ने एक दशक पहले साराभाई होल्डिंग्स लिमिटेड पर 4 लाख रुपये के जुर्माने को निरस्त कर दिया था।
मूल रूप से साराभाई केमिकल्स लिमिटेड के नाम से जानी जाने वाली इस फर्म में नियंत्रण की पुनर्व्यवस्था के बाद राजस्व अधिकारियों ने अग्रिम कर की मांग की थी। कर अधिकारियों ने दलील दी थी कि कंपनियों के पुनर्गठन प्रस्ताव के द्वारा कर निर्धारिती यानी असेसी प्राप्त किए गए ब्याज पर कर चुकाने से बच रहा है।
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्ताव की वास्तविक प्रकृति न तो विवादित है और न ही उस पर कोई आपत्ति की जा सकती है। अदालत ने कहा कि लेनदेन की वास्तविकता को लेकर विवाद या कोई संदेह नहीं है।
निर्यात विवाद
पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ राही इंडस्ट्रीज लिमिटेड की अपील खारिज कर दी जिसमें एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की याचिका को मंजूरी दी गई थी।
कंपनी ने मिस्र की एक कंपनी को रेलवे सामान का निर्यात किया था और माल प्राप्त होने के बाद कंपनी ने मिस्र में अपने बैंक में राशि जमा कर दी थी जिसे भारत में एचएसबीसी बैंक में स्थानांतरित किया जाना था। लेकिन मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के कारण दोनों पक्षों के बीच विवाद हो गया।
इस मामले में विलंब होने के बाद एचएसबीसी ने भारतीय रुपये में परिवर्तित किए जाने के बाद इस राशि का 90:10 के अनुपात में संबद्ध पार्टियों को भुगतान कर दिया था। निर्यातक ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि कॉरपोरेशन को उसे पूरी राशि देनी चाहिए जिस पर कॉरपोरेशन का तर्क था कि बीमा पॉलिसी के संदर्भ में 90:10 के अनुपात में इसे विभाजित किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने कहा है कि कॉरपोरेशन बढ़ी हुई रिकवरी का 90 फीसदी पाने का हकदार है।