पिछले कुछ वर्षों में भारत में बुनियादी क्षेत्र के साथ साथ औद्योगिक क्षेत्र में भी काफी तेजी से विकास हुआ है।
परियोजना के मालिकों ने इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट ऐंड कंस्ट्रक्शन (ईपीसी) कॉन्ट्रैक्टरों को औद्योगिक और बुनियादी क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं के विकास के लिए ढेरों प्रस्ताव सौंपे हैं।
इन परियोजनाओं की संख्याएं काफी अधिक है और इन्हें पूरा करने के लिए ईपीसी को विकसित तकनीकों की आवश्यकता होगी।
इसी को ध्यान में रख कर ईपीसी के कॉन्ट्रैक्टरों ने इन परियोजनाओं के लिए बोली लगाने के लिए एक संघ का गठन किया है। संघ अपने एक सदस्य को मुखिया नियुक्त करती है जो परियोजना के मालिक के साथ बात करता है। दरअसल इस संघ में हर सदस्य उसी काम में दखल देता है जिसमें उसे महारत हासिल है।
हालांकि कर अधिकारी इस संघ को कुछ अलग तरह से देखते हैं। उनका मानना है कि इसे कुछ ‘व्यक्तियों का एक संगठन’ (एओपी) समझा जाए। दूसरे शब्दों में कहें तो कर अधिकारियों का मानना है कि इस संघ से कमाई होती है उसे संघ के जरिये ही वसूला जाना चाहिए।
संघ के हरेक सदस्य से अलग अलग कर वसूलना सही नहीं है। कर कानून के तहत एओपी को परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए इसकी व्याख्या करने के लिए कुछ न्यायिक उदाहरणों का हवाला देने की जरूरत पड़ती है। अदालत के अनुसार किसी संघ को एओपी का दर्जा देने के लिए तीन शर्तों का पूरा होना जरूरी है।
एक तो उस संघ के लोग एक ही तरह का काम कर रहे हैं। दूसरा यह कि संघ के सदस्य आपस में मुनाफा बांट रहे हों और तीसरी शर्त यह कि वे एक साथ कई जिम्मेदारियों को उठा रहे हों। वैन ओर्ड एसीजेड के मामले में अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (एएआर) ने फैसला सुनाते हुए संघ को एओपी मानने से इनकार कर दिया।
एएआर ने संघ के सदस्यों के बीच हुए समझौते को प्राथमिक साक्ष्य माना। समझौते के आधार पर एएआर ने कहा कि इस संघ का गठन इसलिए नहीं किया गया है कि मुनाफा कमाने के लिए एक साथ मिल कर कारोबार किया जाए।
संघ का गठन केवल इसलिए किया गया था ताकि करार संबंधी कार्यवाहियों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके। इस संघ को गठन करने का उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं था।
जियो कंसल्ट के मामले में एएआर ने पाया कि जिस संघ का गठन किया गया था वह एओपी ही था, भले ही संघ के सदस्यों के बीच राजस्व का बंटवारा हो रहा था, मुनाफे का नहीं।
एएआर ने कहा कि संघ के सदस्यों के बीच जो समझौता हुआ था, उसकी प्रस्तावना से यह साफ होता है कि परियोजना कार्य के लिये पार्टी के सदस्यों ने मिलकर एक संघ का गठन किया था।
इस परियोजना को सभी सदस्यों को मिल कर पूरा करना था। किसी संघ को एओपी माना जाये या नहीं इसके लिये राजस्व अधिकारी इस बात की जांच करते हैं कि संघ परियोजना के मालिकों के साथ किस तरीके से काम कर रहा है। ज्यादातर जोर इस बात पर दिया जाता है कि विभिन्न पक्षों के बीच काम को पूरा करने के लिए किस हद तक समन्वय है।
क्या एक ही सदस्य पूरी परियोजना की गारंटी देता है? वह संघ जो भी काम करता है क्या उसके लिए सारा भुगतान एक ही व्यक्ति के खाते में जाता है? क्या सदस्यों द्वारा किए जाने वाले काम बिल्कुल अलग अलग हैं या फिर एक दूसरे से टकराते हैं।
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके बारे में जानकर यह कहा जा सकता है कि सदस्यों के बीच समन्वय किस हद तक है।
एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी है कि संघ के सदस्यों के बीच कारोबारी व्यवस्था किस तरीके की है। इसके अलावा कुछ दूसरे मुद्दे भी हैं जिन पर विचार करना जरूरी है। एक तो यह कि संघ के सदस्यों के जो समन्वय है, वह परियोजना के मालिक को एक ही प्रतिफल देने के लिए है?
क्या हर सदस्य को अलग अलग काम दिया गया है? काम के लिए अगर एक ही सदस्य गारंटी देता है तो क्या उसके पीछे दूसरे सदस्यों का भी समर्थन होता है? अगर परियोजना के मालिक से एकमुश्त भुगतान किया गया हो तो क्या ऐसे में भी सदस्यों को यह साफ साफ पता होता है कि राजस्व में उनकी हिस्सेदारी कितनी है? क्या संघ का हर सदस्य मुनाफे या नुकसान के लिए खुद जिम्मेदार है?
संघ को एओपी मानते हुए कर वसूला जाए या नहीं इसके लिये गहन विश्लेषण की जरूरत है। यह विश्लेषण व्यापक पैमाने पर किया जाना चाहिए और इसके लिए तराजू के एक पलड़े पर संघ और परियोजना के मालिक के बीच की व्यवस्था को तोलना चाहिये तो दूसरे पलड़े पर संघ के विभिन्न सदस्यों को।
एओपी का निर्धारण करने के लिए कर कानून के प्रावधान को माना जाना चाहिए, न कि परियोजना का मालिक उस संघ के बारे में क्या सोचता है।
एक दूसरा पहलू यह भी है कि जब तक एओपी का नियंत्रण और प्रबंधन पूरी तरह से भारत के बाहर न हो तब तक उस पर भारत के कर प्रावधानों के अनुसार ही कर वसूला जाना चाहिये।
अगर संघ भारत में है तो एओपी की दुनिया भर में जितनी भी कमाई होती है उस पर कर भारत में ही वसूला जाएगा।
देश में बुनियादी क्षेत्र काफी महत्त्व का है और ऐसे में सरकार अगर ईपीसी कॉन्ट्रैक्टरों की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कोई कदम उठाती है तो उसका स्वागत होगा।
पहले भी सरकार ने ऊर्जा परियोजनाओं और खनिज तेल के उत्पादन से जुड़ी परियोजनाओं में स्थिति को स्पष्ट करने वाली अधिसूचनाएं जारी की हैं। ऐसा ही कोई कदम ईपीसी कॉन्ट्रैक्टरों के मामले में भी उठाया जाना चाहिये।