अपर्याप्त कोष के चलते किसी कंपनी के प्रभारी, प्रबंध निदेशक या निदेशक समेत शीर्ष अधिकारियों के हस्ताक्षर वाला कोई चेक बाउंस हो जाता है तो इसके लिए उनके खिलाफ अभियोजन चलाया जा सकता है।
चेक बाउंस के एक मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है। कोर्ट ने कहा कि चेक पर अगर इन अधिकारियों के हस्ताक्षर हैं और वह बाउंस हो जाता है तो इस अपराध के लिए मुकदमा उनके खिलाफ चलेगा।
न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी व न्यायमूर्ति एचएस बेदी की खंडपीठ ने कहा कि अगर शिकायतकर्ता अपनी शिकायत में किसी अधिकारी विशेष के खिलाफ चेक बाउंस का आरोप लगाता है तो कंपनी के शीर्ष कार्यकारी अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था एक कंपनी के प्रबंध निदेशक की अपील को खारिज करते हुए दी।
चेक बाउंस के मामले में उस प्रबंध निदेशक के खिलाफ महाराष्ट्र की निचली अदालत ने समन जारी किया था। बंबई हाईकोर्ट ने इस समन को खारिज करने से इनकार कर दिया था। फिर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गयी थी। इस मामले में टाटा फाइनेंस लिमिटेड ने एक लाख रुपये का चेक बाउंस होने पर कंपनी के प्रबंध निदेशक परेश राजदा व निदेशक विजय श्राफ के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।
सुप्रीम कोर्ट ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स ऐक्ट की धारा 141 की व्याख्या करते हुए कहा कि किसी शिकायत में यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अपराध होने के समय आरोपित व्यक्ति संगठन का प्रभारी था और उसपर कारोबार के संचालन का दायित्व था।