हचिसन एस्सार एक भारतीय कंपनी है। कंपनी के 100 फीसदी शेयर केमैन आईलैंड के एसपीवी के पास हैं। केमैन आईलैंड एसपीवी की शेयर हिस्सेदारी कुछ इस तरह से है:
केमैन आईलैंड एसपीवी के जरिये 52 फीसदी शेयर हचिसन (हांग कांग) के पास हैं जबकि मॉरिशस एसपीवी के जरिये रुइया समूह के पास 48 फीसदी शेयर हैं।
केमैन आईलैंड एसपीवी में हचिसन की 52 फीसदी हिस्सेदारी को ब्रिटेन के समूह वोडाफोन ने नीदरलैंड की एसपीवी के जरिए 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा।
इस तरह यह सौदा वोडाफोन की एक डच कंपनी और हचिसन के अधिकार वाली केमैन आईलैंड इनटाइटी के बीच हुआ था जो मूल रूप से केमैन आईलैंड कंपनी की इकाई थी। इस सौदे के लिए 11 अरब डॉलर चुकाए गए थे। केमैन आईलैंड कंपनी की भारत स्थित हचिसन एस्सार में अप्रत्यक्ष रूप से हिस्सेदारी थी।
इस सौदे से केमैन आईलैंड कंपनी को पूंजीगत लाभ हुआ जो शेयरों की बिक्री के जरिए थी और कंपनी के पास भारतीय कंपनी हचिसन एस्सार के नियंत्रण के अधिकार थे।
पिछले साल अगस्त में भारत के कर विभाग ने वोडाफोन को 2 अरब डॉलर का कर नहीं चुकाने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया।
इस नोटिस को वोडाफोन ने मुंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी। अदालत ने 3 अक्टूबर 2008 को कर विभाग के पक्ष में फैसला सुनाया।
प्रमुख मुद्दा
केमैन आईलैंड की किसी कंपनी के शेयरों को अगर कोई प्रवासी दूसरे प्रवासी को बेचता है तो क्या यह भारत में कैपिटल गेन्स टैक्स के दायरे में आता है।
वोडाफोन का तर्क
वोडाफोन का कहना था कि भारतीय कानूनों के तहत अगर एक देश से दूसरे देश में ‘मालिकाना हक’ का हस्तांतरण होता है तो इस मामले में भारत में कोई कर नहीं वसूला जा सकता क्योंकि शेयरों का आदान प्रदान विदेशी कानूनों के तहत किया गया था।
सरकार का तर्क
सरकार का कहना था कि हचिसन एस्सार की परिचालन संपत्तियां भारत में थीं इस वजह से सौदे पर भारत में कर वसूला जा सकता है।
इस तर्क को सही ठहराने के लिए सरकार ने आम कानूनी सिद्धांतों का सहारा लिया, जैसे कि उसने जटिल कॉरपोरेट ढांचों को खत्म करने के लिए कोशिशें की ताकि यह पता चल सके कि इस सौदे से किसे फायदा हुआ।
कानूनी तर्क
भारत में कर वसूला जाना इसलिए सही है क्योंकि संपत्ति भारत में ही मौजूद है। धारा 9 (1)(आई) के अनुसार कोई भी आय जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर भारत में किसी कारोबारी संबंध से प्राप्त हो रही हो, या फिर भारत में किसी संपत्ति से प्राप्त हो रही हो, या फिर भारत में आय के किसी आय के स्त्रोत से प्राप्त होती हो, या फिर भारत में किसी पूंजीगत संपत्ति के हस्तानांतरण से प्राप्त होती हो।
धारा 9 एक डीमिंग फिक्शन है और इस वजह से इस तरह के सौदे पूरी तरह से धारा 9 के दायरे में नहीं आते हैं। यही कारण है कि पूंजीगत लाभ पर भारत में कर नहीं वसूला जा सकता है।
डीमिंग फिक्शन की सही तरीके से व्याख्या की जानी चाहिए जैसा कि मदर इंडिया रेफ्रिजरेशन, 155 आईटीआर 711 (एससी) मामले में किया गया था।
ऐसी समस्या से निपटने के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं है और कानून के दायरे में नहीं आने पर कोई कर नहीं वसूला जा सकता है। इस सौदे का भारत से कोई संबंध नहीं है।
इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने इशिकावाजिमा हरिमा हेवी इंडस्ट्रीज लिमिटेड, 288 आईटीआर 408 मामले में जो फैसला सुनाया, वह सही लगता है।
पर मुंबई उच्च न्यायालय ने आय कर विभाग के पक्ष में फैसला सुनाया है।उच्च न्यायालय ने पाया कि भारत स्थित संपत्ति के अप्रत्यक्ष मालिकाना हक का हस्तानांतरण होने का मतलब है कि यह भारत स्थित पूंजीगत संपत्ति के हस्तानांतरण की श्रेणी में आती है।
हालांकि जब तक उच्च न्यायालय के आदेश की पूरी कॉपी नहीं मिल जाती तब तक इस बारे में बहुत कुछ कहना सही नहीं होगा।
यहां यह ध्यान में रखना जरूरी है कि भारत और केमैन आईलैंड के बीच कोई कर संधि नहीं है और इस वजह से दोनों ही पक्षों के बीच कोई प्रत्यक्ष कर संधि नहीं है।
अगर हचिसन ने केमैन आईलैंड इनटाइटी में निवेश केमैन आईलैंड के जरिये नहीं कर के किसी मॉरिशस एसपीवी के जरिए की होती तो भारत में कोई विवाद खड़ा नहीं होता क्योंकि भारत-मॉरिशस कर संधि में कैपिटल गेन्स को छूट दी गई है।