केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उसने कोविड-19 से निपटने के लिए न्यायसंगत और भेदभाव रहित टीकाकरण रणनीति तैयार की है और किसी भी प्रकार के अत्यधिक न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं।
केंद्र ने शीर्ष अदालत की ओर से उठाए गए कुछ बिंदुओं का जवाब देते हुए एक हलफनामा दायर किया है। इस हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि वैश्विक महामारी के अचानक तेजी से फैलने और टीकों की खुराकों की सीमित उपलब्धता के कारण पूरे देश का एक बार में टीकाकरण संभव नहीं है। न्यायालय ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान आवश्यक सामानोंं एवं सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के संबंध में स्वत: संज्ञान लिया था और इसी मामले में केंद्र ने यह हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र सरकार ने कहा कि टीकाकरण नीति अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के जनादेश के अनुरूप है और इसे विशेषज्ञों के साथ कई दौर की वार्ता और विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। उसने कहा कि राज्य सरकारों एवं टीका विनिर्माताओं के काम के काम में शीर्ष अदालत को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
केंद्र ने 200 पृष्ठ के हलफनामे में कहा, ‘विशेषज्ञों की सलाह या प्रशासनिक अनुभव के अभाव में अत्यधिक न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं, भले ही यह हस्तक्षेप नेकनीयत से किया गया हो। इसके कारण डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों एवं कार्यपालिका के पास इस मामले पर नवोन्मेषी समाधान खोजने के लिए खास गुंजाइश नहीं बचेगी।’ केंद्र ने कहा, ‘कार्यकारी नीति के रूप में जिन अप्रत्याशित एवं विशेष परिस्थितियों में टीकाकरण मुहिम शुरू की गई है उसे देखते हुए कार्यपालिका पर भरोसा किया जाना चाहिए।’ सरकार ने हलफनामे में कहा, ’18 से 44 आयुवर्ग के नागरिकों का मुफ्त टीकाकरण हो रहा है क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने अपनी 18 से 44 आयुवर्ग की आबादी के लिए मुफ्त टीकाकरण की घोषणा की है। इसलिए देश में सभी आयुवर्ग के सभी लोगों का मुफ्त टीकाकरण होगा।’ उसने कहा कि न्यायालय ने अपने कई फैसलों में कार्यकारी नीतियों की न्यायिक समीक्षा के लिए मापदंड बनाए हैं और इन नीतियों के मनमाना प्रतीत होने पर ही इन्हें खारिज किया जा सकता है या हस्तक्षेप किया जा सकता है।
