केंद्र सरकार ने राजमार्ग क्षेत्र के लिए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। वहीं इस क्षेत्र में बड़े कारोबारी मामूली दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जो सरकार की मंशा के मुताबिक नहीं है। अगर बुनियादी ढांचे पर काम कर रही कंपनियों के पास पर्याप्त धन हो, तब भी इस तरह की परियोजनाओं पर तेजी से काम करने के लिए कंपनियों के पास अपने विदेशी प्रतिस्पर्धियों की तुलना में क्षमता बहुत कम है।
इस मामले से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, ‘कुछ ही कंपनियां हैं, जो बिल्ट ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी) परियोजनाएं ले सकती हैं और करीब 25-28 मझोली फर्में हाइब्रिड एन्युटी परियोजनाओं पर काम कर सकती हैं। संभवत: ये मिलकरक भी केंद्र सरकार द्वारा तय किए गए लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकती हैं। ऐसे में हमें न सिर्फ ठेके के परिचालन व रखरखाव के लिए, बल्कि उन्हें कार्यरूप देने के लिए विदेशी कंपनियों की जरूरत है।’
उद्योग का मानना है कि केवल लक्ष्य ही बड़ा नहीं है, बल्कि नकदी का प्रवाह बनाए रखना भी मुश्किल काम है, जो परियोजना के भाग्य का फैसला करता है।
एमईपी इन्फ्रा डेवलपर्स के प्रबंध निदेशक जयंत म्हैष्कर ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘अगर नकदी प्रवाह बनी रहे और इस पर ध्यान दिया जाए तो परियोजनाओं को लागू करना चुनौती नहीं है। करीब 30-40 मझोले आकार की कंपनियां हैं, जिनका कारोबार 200 से 300 करोड़ रुपये है और वे बहुत कुशलतापूर्वक हाइब्रिड एन्युटी परियोजनाओं पर काम कर सकती हैं।’ उन्होंने कहा कि बीओटी परियोजनाएं इन कंपनियों के लिए चुनौती हो सकती हैं, लेकिन इस क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में बड़ी कंपनियां हैं, जो ऐसी परियोजनाएं ले सकती हैं। विशेषज्ञों का भी मानना है कि परियोजना पर काम करने के बजाय असल चुनौती वित्त की ही है। इक्रा कॉर्पोरेट रेटिंग के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट और ग्रुप हेड शुभम जैन ने कहा, ‘काम करने की क्षमता से ज्यादा पूंजी पर्याप्त न होने और जोखिम को लेकर समस्या है, जो बीओटी परियोजना में कदम रखने से कंपनियों को रोक रही हैं। एचएएम परियोजनाएं डेवलपरों को आकर्षित कर रही हैं, जहां जोखिम कम है और पूंजी की जरूरतें कम हैं (40 प्रतिशत वित्तपोषण प्राधिकरण करता है), वहीं बीओटी टोल को समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।’
पिछले 3 साल में 70 कॉन्ट्रैक्टरों व डेवलपरों को एनएचएआई और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से परियोजनाएं मिली हैं, जिनमें सभी आकार के ठेके शामिल हैं।
पिछले कुछ साल से इस क्षेत्र के रोजाना के लक्ष्य हासिल करने की मात्रा में गिरावट आई है, जो सरकार द्वारा तय अव्यावहारिक लक्ष्य की वजह से हो सकता है। जैन ने कहा, ‘सरकार ने भारतमाला सहित हमेशा बड़ा लक्ष्य रखा है। भारतमाला का पहला चरण 2022 में पूरा करने का लक्ष्य है, लेकिन यह संभवत: 2026 में पूरा हो पाएगा।
