दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के आंदोलन को चौथा महीना शुरू हो गया है। ऐसे में किसानों को आगामी रबी उपजों की मिलने वाली कीमतों पर सभी की नजरें रहेंगी। रबी फसलों की कीमतों में भारी गिरावट आने से किसानों में अंसतोष और बढ़ सकता है, जिससे आंदोलन की आग फैल सकती है। गेहूं, सरसों और चना ऐसी प्रमुख फसलें हैं, जिनकी अगले कुछ सप्ताह में कटाई हो जाएगी।
रोचक बात यह है कि ये सभी फसलें उन्हीं इलाकों में उगाई जाती हैं, जो किसान आंदोलन के प्रमुख केंद्र हैं। इनमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के हिस्से और मध्य प्रदेश शामिल हैं। गेहूं रबी सीजन में सबसे अधिक उगाया जाने वाला खाद्यान्न है। सरकारी एजेंसियां इसकी बड़ी मात्रा में खरीदारी पूर्व निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर करती हैं। सरकार गेहूं की खरीदारी कितनी अधिक और तेजी से करती है, उससे ही इसके दाम तय होंगे।
किसान आंदोलनरत हैं और इस बार भारी फसल उत्पादन के आसार हैं, इसलिए विपणन सीजन 2021-22 में गेहूं की खरीद में कोई कमी नहीं आने के आसार हैं। केंद्र सरकार के पिछले अनुमान के मुताबिक इस साल 3.46 करोड़ हेक्टेयर में गेहूं की बुआई हुई है, जो पिछले साल के मुकाबले करीब तीन फीसदी अधिक है। केंद्र ने विपणन सीजन 2021-22 के लिए एमएसपी 1,975 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
चालू विपणन सीजन में केंद्र ने किसानों से करीब 3.9 करोड़ टन गेहूं खरीदा था और पंजाब तथा मध्य प्रदेश ने केंद्रीय भंडार में 1.3-1.3 करोड़ टन कार योगदान दिया था। हालांकि रबी सीजन में उगाई जाने वाली दो अन्य प्रमुख फसलों- सरसों और चने को लेकर विशेषज्ञों और बाजार के जानकारों की अलग-अलग राय है।
सरसों के मामले में ज्यादातर का मानना है कि इस तिलहन की कीमतें 4,650 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से ऊपर बने रहने के आसार हैं क्योंकि सभी तिलहनों की कीमतों में तेजी बनी हुई है। उनका चने की कीमतें इस बात पर निर्भर करेंगी कि कीमतों में स्थिरता लाने और उत्पादकों को अच्छा प्रतिफल सुनिश्चित करने के लिए केंद्र कैसे दखल देता है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘सरसों की कीमतें इस समय ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं क्योंकि घरेलू मांग अच्छी बनी हुई है और सभी तिलहनों में तेजी है। एक वजह यह भी है कि 15 मार्च से शुरू होने वाले नए सीजन में बचा हुआ स्टॉक महज 2 से 4 लाख टन रहने के आसार हैं, जबकि इसका सामान्य स्तर 5 से 8 लाख टन है। हालांकि कीमतें मौजूदा उच्च स्तरों से नीचे आ सकती हैं, लेकिन उनमें बहुत अधिक गिरावट नहीं आएगी क्योंकि मांग लगातार मजबूत बनी हुई है।’
मेहता का अनुमान है कि सरसों की कीमतें एमएसपी से काफी ऊपर रहेंगी। ये 5,000 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर रह सकती हैं। उन्होंने कहा, ‘कई इलाकों में सरसों की मांग बढ़ रही है क्योंकि इसे कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला उत्पाद माना जाता है। इससे कीमतें ऊंची रहेंगी।’ रबी सीजन 2020-21 में तेल मिलों ने 75 से 77 लाख टन सरसों की पेराई की थी। उद्योग के अनुमानों के मुताबिक सरसों का उत्पादन अगले सीजन में करीब 90 लाख टन रहने का अनुमान है।
चना देश में सबसे अधिक उगाई जाने वाली दलहन है। इसे लेकर कारोबारियों ने कहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में मॉनसून के बाद बारिश न होने से उत्पादन में मामूली गिरावट के आसार हैं। इसके बावजूद अगर सरकार ने अच्छी खरीदारी नहीं की तो इसकी कीमतों का 5,100 रुपये के एमएसपी को पार करना मुश्किल होगा।
एक जिंस कारोबारी कंपनी एशपी मेडिटर्स के प्रबंध निदेशक और भारतीय दलहबन एवं अनाज संघ (आईपीजीए) के सदस्य संजय पेरिवाल ने कहा, ‘अगर केंद्र बाजारों को स्थिर करने के लिए कम से कम 15 से 17 लाख टन चने की खरीदारी करता है तो इसकी कीमतें एमएसपी के आसपास रह सकती हैं।’ कारोबारी जगत ने अनुमान जताया था कि 2019-20 में चने का उत्पादन 80 लाख टन रहेगा, जो सरकार के अनुमानों 115 लाख टन से काफी कम है।