कोविड-19 के कारण हुई देशबंदी का कमोबेश असर कारोबार के हर क्षेत्र पर पड़ा है। हिंदी पुस्तक प्रकाशन भी इससे अछूता नहीं रहा। इस दौरान छपाई, खरीद, बिक्री, वितरण आदि सब गतिविधियां ठप हो गईं। लेकिन ऐसी विकट परिस्थिति में भी प्रकाशकों ने हौसला बनाए रखा और चिंतन-मनन करते हुए नए माहौल के अनुरूप चलना शुरू कर दिया। इसमें तकनीक और ई-कॉमर्स की बहुत मदद मिली। एक ओर कुछ प्रकाशकों ने डिजिटल-संचार का सहारा लेकर पाठकों को लेखकों और पुस्तकों के साथ जोडऩे का प्रयास किया, तो दूसरी ओर ई-कॉमर्स की सहायता से बिक्री में आई गिरावट से निपटने की भी कोशिश की गई।
वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल कहती हैं, ’23 मार्च को ही हमने जब परिस्थिति का विश्लेषण किया, तो समझ आया कि परिस्थिति बिल्कुल भी वैसी नहीं है, जो हमने या हमारे पूर्वजों ने पहले कभी देखी हो। तब हमने सबसे पहले यह तय किया कि हमें सबको जोड़कर रखना है और सबसे जुड़े रहना है। इसके लिए हमें डिजिटल कार्यक्रम करने पड़े, क्योंकि लॉकडाउन में सामाजिक दूरी की जो गुहार है, वह डिजिटल माध्यम से ही सार्थक हो सकती थी। इसके लिए कोई और तरीका नहीं था। शुरुआती तौर पर हमने फेसबुक लाइव कार्यक्रम किए, फिर हमने उन्हें संपादित करके यूट्यूब पर अपलोड किया। धीरे-धीरे हमें समझ आया कि स्ट्रीमिंग सॉफ्टवेयर का भी इस्तेमाल हो सकता है। तब हमने उन्हें सीखा और प्रशिक्षण लिया। अब हम स्ट्रीमिंग सॉफ्टवेयर के जरिये दो से तीन प्लेटफॉर्म पर डिजिटल कार्यक्रम कर रहे हैं।’
अदिति बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान वाणी डिजिटल का एक पूरा विभाग ही तैयार कर दिया गया है और अब यह हमेशा काम करता रहेगा। इसमें चार खंड हैं – शिक्षा, सरोकार, पुस्तक और विचार। इन चारों के माध्यम से अलग-अलग किताबों के बारे में अलग-अलग लेखकों, विचारकों के साथ गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘हम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कभी भी ‘पेड प्रमोशन’ पर विश्वास नहीं रखते हैं। हम लोग बिना किसी ‘पुश ऐंड पुल’ विपणन रणनीति के मात्र 30 से 35 दिनों के अंदर 15 लाख पोस्ट के स्तर तक पहुंच चुके हैं। इन आंकड़ों से यह साबित होता है कि अगर अच्छी सामग्री हो, तो हम बड़ी संख्या में पाठकों को अपने साथ जोड़ सकते हैं।’
देशबंदी के दौरान पाठकों की कमी के कारण उत्पन्न हुए बिक्री संकट से निपटने में प्रभात प्रकाशन को भी डिजिटल और ई-कॉमर्स से मदद मिली है। प्रभात प्रकाशन के निदेशक डॉ. पीयूष कुमार ने कहा, ‘देखिए, 23 मार्च से 15 मई तक तो कुछ भी नहीं हुआ। केवल ई-बुक ही बिक रही थी। उसके बाद कुछ सुधार हुआ, लेकिन अब भी कुल कारोबार 30 से 40 प्रतिशत तक कम है। हालांकि ऑनलाइन में बिक्री कुछ बढ़ गई है। लॉकडाउन से पहले के मुकाबले ऑनलाइन बिक्री में करीब दोगुना इजाफा हुआ है। इस दौरान ऑनलाइन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर जोर-शोर से काम हुआ है और हमने भी ऑनलाइन में अपनी विपणन व्यवस्था को मजबूत किया है, क्योंकि पुस्तक बिक्री समुदाय का काम लॉकडाउन की वजह से अनिश्चित था।’
वाणी प्रकाशन के इस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर युवाओं के साथ-साथ कई बुजुर्ग साहित्यकारों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। अदिति ने कहा, ‘ममता कालिया जी इस साल 80 साल की हो रही हैं, उन्होंने भी फेसबुक लाइव किया। उषा किरण खान जी ने पहली बार लाइव किया था और अब तो वह दो दर्जन से ज्यादा कार्यक्रम कर चुकी हैं। असगर वजाहत जी, आलोक धन्वा जी इतने वरिष्ठ हैं, फिर भी इन्होंने तकनीक के साथ कदमताल किया और अपने पाठकों के साथ जुड़े। इस सबसे पाठकों को बहुत लाभ हो रहा है।’
हालांकि बुजुर्ग साहित्यकारों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना अपने आप में टेढ़ी खीर थी। अदिति कहती हैं कि युवाओं ने काफी तत्परता दिखाई, अपनी किताबों का प्रचार किया, अपने विचार रखे। वहीं, वरिष्ठ लेखकों के लिए भी यह अच्छा रहा। उन्होंने नई चीज सीख ली, उनके पास एक जादू की छड़ी आ गई। इसके जरिये वे जब चाहें सामने आकर अपनी बात रख सकते है, अपनी नई-पुरानी किताबों के बारे में बता सकते हैं।
ई-कॉमर्स का भविष्य उज्ज्वल
पीयूष कुमार के मुताबिक ई-कॉमर्स के रूप में हमारे बच्चों को एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिल जाएगा। आज से पांच-छह साल बाद उनके पास ई-कॉमर्स पर एक काफी बेहतर प्लेटफॉर्म होगा और इसके जरिये हमें पढऩे की अच्छी आदत वाला समाज मिल जाएगा। अदिति भी इस बात से सहमत हैं। उनके अनुसार ई-कॉमर्स ही सबसे ज्यादा मददगार है।