देश में बूस्टर खुराक के लिए पहला क्लीनिकल अध्ययन वेलूर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में हो रहा है जिसके लिए उन वॉलंटियरों की भर्ती होनी है जिन्होंने तीन से छह महीने पहले कोवैक्सीन की दोनों खुराक ली हैं। सीएमसी वेलूर को अगस्त में भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) द्वारा क्लीनिकल परीक्षण कराने की मंजूरी मिली थी। संस्थान ने उन 200 प्रतिभागियों की भर्ती आसानी से कर ली जिन्होंने कोविशील्ड की खुराक ली थी लेकिन उन लोगों को ढूंढना काफी मुश्किल हुआ जो कोवैक्सीन का टीका ले चुके हों और तीसरी खुराक लेने के लिए तैयार हों।
गगनदीप कांग ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘यह बात समझने लायक है कि भारत में दिए गए लगभग 88 प्रतिशत टीके कोविशील्ड हैं। कोवैक्सीन लेने वालों के बीच इसको लेकर प्रतिक्रिया बेहद धीमी रही है।’ कांग ने शनिवार को सोशल मीडिया पर इस बात का प्रचार-प्रसार करने को कहा कि कोवैक्सीन टीका ले चुके वॉलंटियरों को परीक्षण से जोड़ा जाए। उन्होंने कहा, ‘क्लीनिकल परीक्षण के लिए वॉलंटियरों की जरूरत है। जो लोग कोवैक्सीन की दो खुराक तीन-छह महीने पहले ले चुके हैं वे बूस्टर खुराक के अध्ययन में शामिल होने के पात्र हैं। वर्तमान में यह परीक्षण वेलूर, चेन्नई, बेंगलूरु या दिल्ली में रहने वालों के लिए है। इन परीक्षणों में भाग लेने के इच्छुक लोग एमएनएमडॉटसीएमसीवेलूर ऐट जीमेल डॉट कॉम पर एक ईमेल भेज सकते हैं।’
कांग ने यह भी स्पष्ट किया कि परीक्षण रैंडम होगा। टीके की दोनों खुराक लगाने वाले लोगों के मुकाबले, प्रतिभागी बूस्टर खुराक के रूप में अलग टीका ले सकते हैं। कोविशील्ड लेने वाले लोगों से जुड़े परीक्षण डेटा और कोवैक्सीन के परीक्षण डेटा एक साथ ही जारी किए जाएंगे जब दोनों टीके का अध्ययन एक ही बार में पूरा हो जाएगा। यह अध्ययन न केवल प्रतिभागियों में बूस्टर खुराक के बाद ऐंटीबॉडी के स्तर को मापेगा बल्कि यह अध्ययन केएक सबसेट में टी-सेल प्रतिक्रिया होगी। टी-सेल या मेमोरी सेल, लंबे समय तक चलने वाली प्रतिरोधक क्षमता को दर्शाता है। इस अध्ययन के लिए फंडिंग, सीएमसी, वेल्लोर ने की है जो सीधे कंपनियों से टीके खरीदता रहा है। कांग ने आगे कहा, ‘कंपनियों ने बहुत सहयोग किया है और टीके के ऐसे बैच उपलब्ध कराए गए हैं जिनकी एक्सपायरी में अभी वक्त है।’ कांग ने आगे कहा, ‘हम किसी भी टीका निर्माताओं से प्रभावित नहीं होना चाहते इसलिए यह एक स्वतंत्र अध्ययन है।’
