नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वी के पॉल ने कहा कि देश का स्वास्थ्य व्यय फिलहाल निम्न स्तर पर है और इसे केंद्र और राज्य सरकार दोनों द्वारा बढ़ाकर कुल बजट का आठ प्रतिशत करने की जरूरत है। पॉल ने कहा कि अन्य प्राथमिकताओं की वजह से स्वास्थ्य खर्च कम रखा गया है लेकिन इसे विशेष रूप से कोरोनावायरस महामारी को देखते हुए ठीक करने की जरूरत है जिसने स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिक खर्च करने की जरूरत को जायज ठहराया है।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा आयोजित एशिया स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए पॉल ने कहा कि ज्यादातर राज्यों में मौजूदा खर्च कुल बजट के 5 प्रतिशत से भी कम है। पॉल ने कहा, ‘केंद्र को राज्य सरकारों के साथ काम करना होगा ताकि यह देखा जा सके कि वे स्वास्थ्य को किस तरह प्राथमिकता देते हुए इस क्षेत्र में अपने संसाधनों को लगाने के लिए तरजीह दे रहे हैं।’
वर्ष 2018-19 में, स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत का खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.5 प्रतिशत था। उन्होंने कहा कि पिछले दशक में इसमें सुधार था लेकिन यूरोपीय देशों के स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी का 7.8 प्रतिशत तक था। नैशनल कमेटी ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन फॉर कोविड के अध्यक्ष पॉल ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मुताबिक, स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत का खर्च 2025 तक जीडीपी का करीब 3 फीसदी होना चाहिए। पॉल ने कहा कि मेडिकल शिक्षा की दिशा में उठाए गए विभिन्न कदमों और स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता के आधार पर कर्ज देने वाले क्षेत्र के तौर पर प्रावधान किए जाने से लोगों की कमी के मुद्दे का समाधान होगा। मिसाल के तौर पर 2014 के बाद से मेडिकल कॉलेजों की संख्या में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। पॉल ने कहा कि अगले तीन साल में 114 नए सरकारी अस्पताल बनाए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि सरकार को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, उत्कृष्टता केंद्रों और अनुसंधान पर खर्च करना होगा। हालांकि, देश के अस्पताल में उपलब्ध बेड की संख्या दोगुनी करने और द्वितीय और तृतीय क्षेत्र में सुधार करने की जरूरत है जहां निजी क्षेत्र की भूमिका होगी ।
