पिछले हफ्ते सरकार ने संसद को अवगत कराया कि निर्भया फंड के तहत आवंटित 6,212.85 करोड़ रुपये में से केवल करीब दो तिहाई यानी कि 4,212.91 करोड़ रुपये ही मंत्रालयों और संबंधित विभागों को वितरित किए गए। यदि फंड के इस्तेमाल की बात करें तो यह और भी कम है।
पिछले वर्ष जुलाई तक विभिन्न मंत्रालयों, केंद्रीय विभागों और राज्यों ने आवंटित रकम में से 2,871.42 करोड़ रुपये या 46 फीसदी का इस्तेमाल किया था।
राज्यवार तुलना करने पर पता चलता है कि फंडों के इस्तेमाल को लेकर काफी अंतर है। बिजनेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण में पाया गया है कि केवल चार राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने निर्भया योजना के तहत आवंटित रकम के 90 फीसदी से अधिक का इस्तेमाल किया। इसके उलट 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 22 में फंड के इस्तेमाल का स्तर दो तिहाई से कम था।
फंड के इस्तेमाल में पीछे रहने वालों में आंध्र प्रदेश और लद्दाख अपने फंडों का एक तिहाई से भी कम इस्तेमाल कर पाए वहीं बिहार और झारखंड ने आवंटित रकम का 50 फीसदी भी इस्तेमाल नहीं किया।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का प्रदर्शन बदतर है। मंत्रालय ने 2020-21 में 30,007 करोड़ रुपये खर्च करने का बजट रखा था, 2022-23 में इसके बजट में 16 फीसदी की कमी की गई है।
बिजनेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण में पाया गया है कि मंत्रालय द्वारा महिला सुरक्षा पर बजटीय रकम और वास्तविक खर्च के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है।
2016-17 में मंत्रालय को अपने कुल आवंटित रकम में से खर्च के लिए 3.1 फीसदी की कमी पड़ गई थी जो 2019-20 में बढ़कर 20.6 फीसदी हो गई।