केंद्रीय बिजली मंत्रालय द्वारा बिजली अधिनियम, 2003 में संशोधन के मसौदे में से सबसे विवादास्पद मसलों में से एक को हटाए जाने की संभावना है। मंत्रालय संसद के आगामी मॉनसून सत्र में इसे पेश करने की तैयारी में है। यह संशोधन बिजली वितरण क्षेत्र का डीलाइसेंस करने से जुड़ा है, जिसमें किसी कंपनी को आवश्यक नियामकीय मंजूरी के बाद एक इलाके में बिजली आपूर्ति की अनुमति होगी।
सूत्रों ने कहा कि हिस्सेदारों को दी गई हाल की प्रस्तुति में मंत्रालय ने कहा है कि वह इस प्रस्ताव को छोड़ेगा। छोड़े जा रहे अन्य प्रस्तावित संशोधनों में बिजली का सीमा पार कारोबार, शुल्क स्वीकार्यता के लिए धारा 63 में बदलाव और राज्य बिजली नियामक आयोगों (एसईआरसी) के सदस्यों का चयन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा किया जाना शामिल है।
पिछले साल फरवरी में पेश संशोधनों को राज्य सहित विभिन्न हिस्सेदारों से प्रतिक्रिया के लिए भेजा गया था। कुछ राज्यों, खासकर गैर भाजपा शासित राज्यों ने संशोधन के नए प्रस्ताव को लेकर नाखुशी जाहिर की थी और कहा था कि यह संघीय ढांचे पर हमला है। पश्चिम बंगाल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि ऐक्ट में नए संशोधन ‘राज्य की संप्रभुता का उल्लंघन’ हैं।
बिजली क्षेत्र की आपूर्ति शृंखला में उत्पादन एवं पारेषण केंद्र सरकार के तहत आता है, जबकि वितरण राज्यों के क्षेत्र में शामिल है।
बहरहाल मसौदा विधेयक में एक ही इलाके में कई बिजली आपूर्तिकर्ताओं के प्रस्ताव को बरकरार रखा गया है। हाल के प्रस्तावित संशोधनों में ग्राहकों को विभिन्न वितरण लाइसेंसों में से चयन का विकल्प देने के प्रस्ताव को बरकरार रखा गया है, जिसके तहत कुछ लाइसेंस धारक एक ही नेटवर्क में काम कर सकते हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस तरह से केंद्र सरकार ने 2016 में पेश संशोधनों के पहले प्रारूप को बरकरार रखा है, जिसके तहत नेटवर्क का मालिकाना राज्य की इकाई को बना रहेगा और वहां कई बिजली आपूर्तिकर्ता होंगे। अन्य आपूर्तिकर्ता को अनुमति देना राज्य व एसईआरसी पर निर्भर होगा। संशोधन सिर्फ उसी के व्यापक नियमन की राह प्रशस्त करता है।
कई बिजली विक्रेताओं का विचार ऐसे समय में आया है जब केंद्र ने बिजली वितरण क्षेत्र में सुधार के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की योजना पेश की है। देश भर में सरकारी बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय और परिचालन की हालत खस्ता है, जबकि पिछले 15 साल में 4 सुधार योजनाएं पेश की जा चुकी हैं। हाल की सुधार योजना उदय वित्त वर्ष 2020 में पूरी हुई है, जिसमें ज्यादातर राज्य लक्ष्य हासिल करने में असफल रहे हैं और खस्ताहाल बने हुए हैं।
बरकरार रखे जाने वाले अन्य प्रावधानों में अक्षय ऊर्जा खरीद (आरपीओ) में चूक पर जुर्माना लगाया जाना शामिल है। एसईआरसी के कामकाज में कुछ सुधारों का प्रस्ताव, उत्पादन कंपनियों के लिए भुगतान सुरक्षा व्यवस्था शामिल है, जिससे उन्हें वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) से समय से भुगतान मिल सके।
बिजली विधेयक, 2022 में ग्रिड ऑपरेटर नैशनल लोड डिस्पैच सेंटर (एनएलडीसी) को ताकतवर बनाने, आपूर्ति सौदे के मुताबिक भुगतान सुरक्षा न मुहैया कराने वाले राज्यों को बिजली भेजना बंद करने का अधिकार दिए जाने का प्रस्ताव भी शामिल है।