राजनीति के क्षेत्र में वापसी कोई असामान्य बात नहीं है लेकिन यह इतनी आसान भी नहीं होती। हालांकि ऐसी कई मिसाल हैं जब किसी पार्टी ने शानदार वापसी की है। उदाहरण के तौर पर विंस्टन चर्चिल की कंजर्वेटिव पार्टी को 1945 में ब्रिटेन के चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था लेकिन 1951 में इस पार्टी ने मामूली अंतर वाली जीत के साथ अपनी वापसी करने में कामयाबी पा ली थी। भारत में भी जनता पार्टी के गठबंधन ने 1977 में आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों के विरोध में स्वर बुलंद करते हुए कांग्रेस पार्टी को मात दी थी और उस वक्त इंदिरा गांधी को लगभग खारिज कर दिया गया था लेकिन तीन साल से भी कम समय में पार्टी ने सत्ता में वापसी की थी। हाल के दौर में देखा जाए तो ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर का पुनरुत्थान 2011 में देखा गया और पश्चिम बंगाल में इसे सबसे शानदार वापसी के तौर पर देखा गया।
माकपा के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा भी राज्य की राजनीति में वापसी की कोशिश में लगा हुआ है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वह ममता की तरह वापसी कर सकता है? पार्टी इस वक्त कोलकाता के मशहूर ब्रिगेड परेड ग्राउंड में रविवार 28 फरवरी को होने वाली विशाल रैली में मसरूफ है जिसमें कांग्रेस और फुरफुरा शरीफ के धार्मिक नेता अब्बास सिद्दीकी के नेतृत्व में भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा (आईएसएफ) शिरकत करेगी। दोनों दलों ने 2021 के चुनावों के लिए वाम मोर्चे के साथ सहमति जाहिर की है। माकपा के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम ने कहा, ‘वाम दलों और कांग्रेस के सहयोगी दल रैली में शामिल होंगे और यह सबसे बड़ा मोर्चा होगा।’ जनवरी से ही इस दिन की तैयारी चल रही है और पूरे पश्चिम बंगाल में 1,000 रैलियों का आयोजन किया गया है। जिला स्तर से लेकर विधानसभा क्षेत्रों में जाकर लोगों को रैली के लिए लामबंद किया जा रहा है और ‘ब्रिगेड चलो’ लिखे हुए मास्क बांटे जा रहे हैं। इसके अलावा दीवारों पर भी चित्रकारी के जरिये संदेश दिया जा रहा है जो वाम दलों की खूबी है।
लेकिन ये सब पुराने तरीके हैं। सबसे ज्यादा ध्यान लोकप्रिय गीत ‘टुमपा सोना’ का एक पैरोडी खींच रहा है। तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर चुटकी लेने वाला यह गाना ‘टुमपा सोना’ पिछले हफ्ते से ही वायरल हो गया है और इसकी समान रूप से तारीफ और आलोचना हो रही है। राजनीतिक विश्लेषक सव्यसाची बसु रे चौधरी ने कहा, ‘माकपा युवा पीढ़ी से जुडऩे की कोशिश में है और इसके लिए पूरा जोर लगा रही है।’
पारंपरिक वामपंथी समर्थकों का कहना है कि इस तरह के गीत ऐसी पार्टी की परंपरा के खिलाफ जाता है जिसने लोगों को रंगमंच से जोडऩे जैसे सांस्कृतिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। माकपा के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम का कहना है कि यह गीत व्यंग्य है। उन्होंने कहा, ‘यह एक पैरोडी है और पैरोडी हमारी संस्कृति का हिस्सा है।’ हालांकि आप इसे पसंद करें या नहीं लेकिन आकर्षक धुन और बोल की वजह से ‘टुमपा’ गीत को नजरअंदाज करना मुश्किल है।
बंगाल में ‘टुमपा सोना ब्रिगेड चालो’ चुनावी अभियान के जरिये एक ओर जहां ग्रामीण और अर्ध-शहरी लोगों को लक्षित किया जा रहा है, वहीं शहरी दर्शकों से अपील करने के लिए, ‘ब्रिगेड चलो’ फ्लैश मॉब का आयोजन किया गया। वाम मोर्चा पिछले कुछ सालों से गुमनामी में था लेकिन इस तरह के प्रचार-अभियानों के तरीके से पार्टी फिर से सुर्खियां बटोर रही है।
2011 में चुनावी हार से पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे के 34 सालों के शासन का अंत हो गया और इसके बाद के हरेक चुनाव में पार्टी की और भी दुर्गति हुई फिर भी ऐसा लगता है कि पार्टी इस चुनाव में खुद को प्रासंगिक बनाने के लिए एक नए सिरे से फिर से प्रयास कर रही है।
माकपा के वरिष्ठ नेता मानवेंद्र मुखर्जी कहते हैं, ‘ब्रिगेड रैली में ऐतिहासिक भीड़ देखने को मिलेगी। लोग हमें फिर से खोज रहे हैं। हम गांवों में जहां भी जा रहे हैं, लोग पूछ रहे हैं, आप कहां थे।’ सलीम कहते हैं, ‘बंगाल का कायाकल्प करने के लिए नए कलेवर में वाम मोर्चा तैयार खड़ा है।’
पार्टी कुछ समय से अपनी छवि को बेहतर बनाने पर काम कर रही है। पिछले साल मई महीने में चक्रवात अम्फन के कारण मची व्यापक तबाही के वक्त वामपंथी नेताओं ने लोगों तक पहुंचने की पूरी कोशिश की। हालांकि इससे पहले भी पार्टी पूरे बंगाल में अपने पार्टी कार्यालयों को फिर से खोलने की कोशिश कर रही थी।
साल 2011 और 2013 के पार्टी के कई कार्यालयों को बंद कर दिया गया। कुछ कार्यालयों को 2016 विधानसभा चुनाव से पहले फिर से खोलना शुरू कर दिया गया। सलीम ने कहा, ‘अब कुछ कार्यालयों को छोड़कर जिन्हें जला दिया गया था और तोडफ़ोड़ की गई थी, पार्टी के ज्यादातर कार्यालय फिर से खुल गए हैं।’
नंदीग्राम जैसी जगहों पर जहां भूमि आंदोलन की वजह से वामदलों का सफाया हो गया था वहां भी पार्टी के प्रतीक वाले झंडे नजर आने लगे हैं। इसका मतलब यह है कि स्थानीय स्तर पर संगठन अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश में है। आखिर ऐसे ध्रुवीकृत चुनाव में आखिरकार वाम कैसी भूमिका निभा सकता है? इस पर मुखर्जी कहते हैं, ‘हम बंगाल की राजनीति का भविष्य हैं।’
बसु रे चौधरी का मानना है कि पार्टी शायद पिछले चुनाव की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करेगी। वह कहते हैं, ‘2019 में भाजपा ने वामदलों की वोट हिस्सेदारी को नुकसान पहुंचाया था। अगर अब वामदलों का प्रदर्शन बेहतर रहा तब भाजपा को अपनी वोट हिस्सेदारी गंवानी पड़ेगी।’
लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि भाजपा की वोट हिस्सेदारी में बड़ी कमी आएगी बल्कि ऐसी उम्मीद है कि तृणमूल कांग्रेस के नुकसान से भगवा पार्टी को फायदा मिलेगा। दूसरी आशंका यह है कि वाम-कांग्रेस गठबंधन भाजपा विरोधी वोट हिस्सेदारी को कम करेगा और तृणमूल के पक्ष में यह फायदे की बात होगी। किसी भी तरीके से इस गठबंधन से तृणमूल या भाजपा दोनों में से किसी का खेल जरूर बिगड़ेगा। वाम मोर्चे की संभावनाओं पर एक पूर्व अफ सरशाह ने कहा, ‘पार्टी अभी खड़ी होने की कोशिश में है।’
