facebookmetapixel
MSME को बड़ी राहत: RBI ने सस्ते कर्ज के लिए बदले नियम, ब्याज अब हर 3 महीने पर रीसेट होगानील मोहन से बिल गेट्स तक, टेक दुनिया के बॉस भी नहीं चाहते अपने बच्चे डिजिटल जाल में फंसेगोवा नाइटक्लब हादसे के बाद EPFO की लापरवाही उजागर, कर्मचारियों का PF क्लेम मुश्किल मेंSwiggy ने QIP के जरिए जुटाए ₹10,000 करोड़, ग्लोबल और घरेलू निवेशकों का मिला जबरदस्त रिस्पांससिडनी के बॉन्डी बीच पर यहूदी समारोह के पास गोलीबारी, कम से कम 10 लोगों की मौतऑटो इंडस्ट्री का नया फॉर्मूला: नई कारें कम, फेसलिफ्ट ज्यादा; 2026 में बदलेगा भारत का व्हीकल मार्केटDelhi Pollution: दिल्ली-NCR में खतरनाक प्रदूषण, CAQM ने आउटडोर खेलों पर लगाया रोकशेयर बाजार में इस हफ्ते क्यों मचेगी उथल-पुथल? WPI, विदेशी निवेशक और ग्लोबल संकेत तय करेंगे चालFPI की निकासी जारी, दिसंबर के 12 दिनों में ही ₹18 हजार करोड़ उड़ गएसस्ता टिकट या बड़ा धोखा? हर्ष गोयनका की कहानी ने खोल दी एयरलाइंस की पोल

अमेरिकी खौफ के साये में ईरान गैस पाइपलाइन

Last Updated- December 06, 2022 | 9:42 PM IST

भले ही ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने बड़े हर्ष के साथ यह बयान दिया हो कि ईरान-पाकिस्तान-भारत (आईपीआई) गैस पाइपलाइन पर काम 45 दिन के अंदर पूरा हो जाएगा, पर भारत अब खुद इसको लेकर किसी जल्दी में नहीं है।


इसकी पुष्टि करते हुए यूपीए सरकार के पेट्र्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा कहते हैं- इस मामले पर निर्णय लेने के लिए भारत किसी जल्दबाजी में नहीं है। देवड़ा पिछले हफ्ते ही इस मामले को लेकर पाकिस्तान का दौरा कर लौटे हैं। उन्होंने बताया – गैस के वितरण का मामला अभी भी सुलझा नहीं है।


हालांकि गैस कीमतों के अलावा अब भारत के पास चिंता की और वजहें भी हैं। मसलन, ईरान और पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक उठापटक। इसके अलावा, भारत के सामने फिक्रमंदी की सबसे बड़ी वजह है, ईरान पर अमेरिका की ओर से सैन्य कार्र्रवाई की चेतावनी। मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पहले ही ईरान पर हमले की चेतावनी दे चुके हैं, तो राष्ट्रपति पद की दावेदार हिलेरी क्लिंटन भी यही सुर अलाप रही हैं।


भारत को इस बात की चिंता है कि अगर अमेरिका पाइपलाइन परियोजना पर भी बम-बारी कर देता है तो भारत के भारी-भरकम निवेश का क्या होगा? वहीं दूसरी ओर भले ही पाकिस्तान में नई सरकार का चुनाव हो चुका है फिर भी यूपीए सरकार यह देखना चाहती है कि वहां राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा।


हालांकि देवड़ा, ने यह भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि वार्ता रोक दी जाएगी। मार्क्सवादियों के दबाव की जहां तक बात है, देवड़ा ने कहा- मार्क्सवादियों के साथ यही समस्या है।


उन्हें नहीं पता कि कहां रेखा खींचनी है। अगर हम निवेश कर देते हैं और उसके बाद ईरान में कुछ हो जाता है तो क्या ए.के. गोपालन भवन (मार्क्सवादी पार्टी का मुख्यालय) इसकी भरपाई करेगा?


मार्क्सवादियों के साथ यही समस्या है। उन्हें नहीं पता कि कहां रेखा खींचनी है। अगर हम निवेश कर देते हैं और उसके बाद ईरान में कुछ हो जाता है तो क्या ए.के. गोपालन भवन (मार्क्सवादी पार्टी का मुख्यालय) इसकी भरपाई करेगा? –     मुरली देवड़ा, केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री

First Published - May 5, 2008 | 11:34 PM IST

संबंधित पोस्ट