पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के प्रमुख सियासी दल लोक-लुभावन वादों की पेशकश रहे हैं जिसमें मतदाताओं को नकदी लाभ देने का वादा किया जा रहा है। आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने वादा किया है कि अगर उनकी पार्टी अगर सत्ता में आई तब 18 साल और उससे अधिक उम्र की महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये देगी। वहीं राज्य का एक अन्य प्रमुख दल शिरोमणि अकाली दल (शिअद) एक गरीब परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को 2,000 महीने का आश्वासन देकर मतदाताओं को लुभाने में लगा है। कांग्रेस की पंजाब इकाई के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्य की प्रत्येक गृहिणी को 2,000 रुपये महीना देने का वादा किया है। एक तकनीकी समूह ने यह अंदाजा लगाया था कि पंजाब में 20 साल से अधिक उम्र की महिला आबादी 2021 में लगभग 1.02 करोड़ हो सकती है। अगर इस आबादी को एक वर्ष में 12,000 रुपये दिए जाते हैं तब सालाना खर्च 12,313.20 करोड़ रुपये होगा। इसका अर्थ यह है कि केजरीवाल के वादे पर अमल करने का खर्च और बढ़ जाएगा क्योंकि 18 साल या इससे अधिक उम्र की महिला आबादी थोड़ी अधिक होगी।
अब हम शिरोमणि अकाली दल के वादे पर भी गौर करते हैं। नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार वर्ष 2015-16 में राज्य की लगभग 5.59 प्रतिशत आबादी गरीब थी। साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से गरीबी से जुड़ा यह एकमात्र आधिकारिक आंकड़ा है। अगर वर्ष 2020-21 में पंजाब की 3.03 करोड़ आबादी के संदर्भ में देखा जाए तो राज्य के करीब 16.9 लाख लोग गरीब होंगे।
2011 की जनगणना के मुताबिक पंजाब में एक परिवार का औसत आकार पांच सदस्यों से थोड़ा अधिक था। इसका मतलब है कि पंजाब में 339,190 परिवार गरीब थे। इन परिवारों की सभी महिला प्रमुखों को जीवित मानते हुए अगर गणना की जाए तो इन महिलाओं को 2,000 रुपये प्रतिमाह की दर से यह रकम करीब 814.06 करोड़ रुपये होगी।
सिद्धू के चुनावी घोषणा की लागत की गणना करना और भी जटिल है क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई गृहिणी को कैसे परिभाषित करता है। सिद्धू ने कहा था कि जिन गृहिणियों के पास नौकरी नहीं है या फिर वे किसी पेशे से जुड़ी नहीं हैं तब उन्हें हर महीने 2,000 रुपये दिए जाएंगे। इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें घरों में जाकर काम करने वाली महिलाएं, पटरी पर बिक्री करने वाली महिलाएं और निर्माण स्थलों पर मजदूरी का काम करने वाली महिलाएं शामिल होंगी या नहीं।
इसके अलावा, पंजाब की कामकाजी महिलाओं के बारे में सटीक डेटा उपलब्ध नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) द्वारा रोजगार से जुड़े आधिकारिक आंकड़ों में कृषि क्षेत्र से जुड़े कामों और अन्य तरह के कामों से जुड़े रहने वालों को भी कामकाजी ही माना जाता है। अगर हम यह मान भी लें कि सभी परिवारों में एक गृहिणी है तब उस स्थिति में गृहिणियों की तादाद 60.7 लाख होगी। ऐसे में हर महीने 2,000 रुपये की दर से कुल लागत 14,562 करोड़ रुपये होगी। हालांकि, इनमें से कुछ महिलाएं भी कामकाजी हो सकती हैं जिन्हें इस नकदी लाभ से वंचित होना पड़ेगा। इस लिहाज से सही आंकड़े का पता लगाना मुश्किल है।
ऐसे में अनुमानत: यह कहा जा सकता है कि एक साल में नकदी लाभ देने के लिए 814 करोड़ रुपये से 12,000 करोड़ रुपये के बीच खर्च करना पड़ सकता है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि तीनों दलों में से कौन सा दल सत्ता में आता है।
अब इन रकम की तुलना पंजाब के शिक्षा और स्वास्थ्य बजट से करते हैं। राज्य सरकार ने अपने बजट में चालू वित्त वर्ष के दौरान स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर 4,662 करोड़ रुपये खर्च करने का अनुमान लगाया है। शिरोमणि अकाली दल के 814 करोड़ रुपये का नकदी लाभ देने का वादा इस बजट का महज 17 प्रतिशत है। लेकिन केजरीवाल का 12,000 करोड़ रुपये का वादा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के अनुमानित आवंटन का 257 प्रतिशत है। इसी तरह, पंजाब सरकार ने वित्त वर्ष 2022 के लिए शिक्षा, खेल, कला और संस्कृति पर 13,652 करोड़ रुपये खर्च करने का अनुमान लगाया है जो शिरोमणि अकाली दल के महिलाओं के लिए किए गए वादे से लगभग 17 गुना है। हालांकि, केजरीवाल ने राज्य की महिलाओं को जो आश्वासन दिया यह उससे थोड़ा अधिक आवंटित राशि है।
यह गौर करना जरूरी है कि पंजाब देश के सबसे ज्यादा कर्जदार राज्यों में है। बजट में यह अनुमान लगाया गया कि 2021-22 में कर्ज, सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 46.4 प्रतिशत है। वर्ष 2021-22 में ऋ ण चुकाने के लिए 68,828 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है जो राज्य के कुल खर्च का 41 प्रतिशत है और यह करीब 1.68 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है।
इस संदर्भ में कोई भी यह कह सकता है कि अगर केजरीवाल ने अपने वादों में से कुछ चीजें संशोधित नहीं की तो नकदी लाभ देने के चक्कर में सरकारी खजाने से काफी खर्च करना पड़ सकता है। लेकिन शिअद की घोषणाओं में से कुछ बातें निकाल दी जाएं तो राज्य के खजाने पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। अगर इन वादों में थोड़ा और संशोधन किया जाता है तब खजाने पर कोई ज्यादा प्रभाव डाले बगैर भी नकदी समर्थन देने से हाशिये पर जी रहे वर्ग को सशक्त किया जा सकता है।
