व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 में अभी और देरी होगी। समय के दबाव के बीच हिस्सेदारों की सुनवाई अभी बाकी है। साथ ही निजता के कुछ मसलों का समाधान भी होना है। ऐसे में यह संभावना नहीं नजर आ रही कि विधेयक को देख रही संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) अपनी अंतिम रिपोर्ट समय से दे पाएगी। उम्मीद की जा रही है कि समिति कार्यकाल में दूसरे विस्तार का अनुरोध करेगी।
समिति को अपनी अंतिम रिपोर्ट मार्च में सौंपनी थी, लेकिन इसका कार्यकाल 14 सितंबर से शुरू होने वाले मॉनसून सत्र तक के लिए बढ़ा दिया गया। यह विधेयक सभी निजी डेटा के संरक्षण के लिए खाका मुहैया कराएगा, जिसे संसद में पेश किए जाने के बाद जेपीसी को सौंप दिया गया था।
जेपीसी इस समय सुनवाई कर रही है। 28 सदस्यों समिति में शामिल एक व्यक्ति ने कहा, ‘करीब 200 हिस्सेदार हैं और अभी हमने कुछ से ही मुलाकात की है।’ उन्होंने कहा, ‘इस बात की संभावनना बहुत कम है कि अंतिम रिपोर्ट 20 सितंबर तक तैयार हो जाएगी।’
यह पूछे जाने पर कि क्या समिति समय से अपना काम पूरा करने में सफल हो पाएगी, एक अन्य सांसद ने कहा, ‘मुझे ऐसा नहीं लगता।’
भारतीय रिजर्व बैंक के प्रतिनिधियों से बातचीत गुरुवार को होने की संभावना है, जो बैंकिंग क्षेत्र की चिंता को लेकर है। हालांकि रिजर्व बैंक ने आमने सामने बैठक से छूट की मांग की है और वह चाहता है कि अपने विचार लिखित रूप से दे, लेकिन यह साफ नहीं है कि अनुरोध स्वीकार किया गया है या नहीं।
रिजर्व बैंक से बात बैंकों और पेमेंट फर्मों जैसे पेटीएम और नए भुगतान गेटवे जैसे व्हाट्सऐप पे के लिए अहम है, जो अपनी सेवाएं पेश करकने की अनुमति मांग रहे हैं। अगर रिजर्व बैंक सुरक्षा फीचर बढ़ाने की सिफारिश करता है तो इनकी लागत और बढ़ेगी।
व्यक्गित डेटा कानून समिति के काम का एक हिस्सा है। डेटा का नियंत्रण व नियमन कौन करेगा, यह एक और पहलू है। अब तक समिति इस मसले पर बंटी हुई है।
निजी कंपनियां जहां यह देख रही हैं कि डेटा उनके कारोबार को बढ़ाने का नया रास्ता है। एक पक्ष की राय यह है कि भारत में काम करने वाली कंपनियां सरकार के साथ आंकड़े साझा करें, वहीं समिति के सांसदों का एक पक्ष इसे निजता का तर्क देकर खारिज कर रहा है। एक सांसद ने कहा, ‘भारत में ज्यादा विदेशी कंपनियां निवेश करेंगी, अगर उन्हें सुनिश्चित होगा कि उनके आंकड़े निजी बने रहेंगे। यह बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) के संरक्षण से मिलता मामला है। तमाम विदेशी कंपनियां भारत में निवेश करना नहीं चाहती हैं क्योंकि उन्हें भरोसा नहीं है कि उनका आईपीआर सुरक्षित रहेगा। ऐसी स्थिति डेटा संरक्षण के मामले में नहीं होना चाहिए।’
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद मीनाक्षी लेखी की अध्यक्षता में बनी समिति ने मार्च और जून के बीच कोई बैठक नहीं की है। बहरहाल जो लिखित राय आई है, उसे भी समिति के सभी सदस्यों को नहीं दिया गया है। परिणामस्वरूप सदस्य, खासकर विपक्षी दलों के, चिंतित हैं कि खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसले पर पूरी कवायद एकतरफा हो सकती है।
