देश के तकरीबन 49 प्रतिशत नागरिकों का कहना है कि चीन की कंपनियों को भारत में उत्पाद बेचने की अनुमति केवल तभी दी जानी चाहिए, जब इस बात का वचन दिया जाए कि भारतीय ग्राहकों का कोई भी निजी या सामूहिक डेटा चीन के साथ साझा नहीं किया गया है और यह डेटा भारत में ही रहना चाहिए। लोकलसर्कल द्वारा किए गए एक नए सर्वेक्षण में यह जानकारी सामने आई है।
भारत में एक ओर जहां निजी डेटा को व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक-2019 द्वारा नियंत्रित किया जाना है, वहीं दूसरी और सामूहिक डेटा ई-कॉमर्स नीति द्वारा नियंत्रित किया जाना है जिसका मसौदा अब भी तैयार किया जा रहा है। इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि हालांकि कोई ऐसा अस्थायी वचनबद्धता का उपाय लागू किया जा सकता है जो किसी भारतीय कॉरपोरेट कंपनी द्वारा बेचे गए उत्पादों और सेवाओं के किसी भी डेटा (बिक्री, परिचालन या प्रसंस्करण से संबंधित) को भारत में रखता हो और बाहर जाने से रोके। भारत-चीन के बीच तनाव के समय लोकलसर्कल ने भारत में परिचालित चीन की बहुराष्ट्रीय कंपनियों और चीन के निवेश वाली भारतीय कंपनियों के संबंध में नागरिकों की भावनाओं को समझने के लिए यह सर्वेक्षण किया है। सर्वेक्षण में नागरिकों से 19,000 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं हैं, जबकि 3,341 प्रतिक्रियाएं भारत के 243 जिलों में फैले छोटे कारोबारों से प्राप्त हुईं हैं।
सर्वेक्षण में पूछा गया पहला सवाल यह था कि क्या चीन के निवेश वाली भारतीय कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की जानी चाहिए। लगभग 30 प्रतिशत लोगों ने कहा कि अगर चीन का स्वामित्व 10 प्रतिशत या अधिक है, तो कार्रवाई की जानी चाहिए, जबकि 29 प्रतिशत लोगों ने कहा कि चीन के किसी भी स्वामित्व वाली कंपनियों पर कार्रवाई की जानी चाहिए।
