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चुनावी मैदान में चिराग की गुगली

Last Updated- December 14, 2022 | 10:25 PM IST

लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रमुख चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) के खिलाफ  जो उम्मीदवार उतारने का फैसला किया वह उस पटकथा का हिस्सा था जिसके जरिये न केवल नीतीश बल्कि राज्य में सामाजिक न्याय आंदोलन को राजनीतिक रूप से खत्म करने की कवायद की जानी थी। लेकिन अचानक ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रणनीतिकारों को इस पूरे घटनाक्रम का अप्रत्याशित रूप से उलटा असर होता दिखा।  उन्हें यह महसूस होने लगा कि उनकी जमीन हिल रही है। इसमें नीतीश तो खुद डूबेंगे ही, उसके साथ-साथ भाजपा को भी नुकसान हो सकता है। ऐसे में घबराहट में भाजपा ने इस क्षति की भरपाई करने की अपनी कोशिश के तहत यह घोषणा कर दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में नीतीश कुमार के साथ संयुक्त जनसभाएं करेंगे। हालांकि महज एक पखवाड़े पहले ही चिराग ने ट्विटर पर दावा किया था, ‘इस बार बिहार में भाजपा-लोजपा की सरकार बनेगी।’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (संघ परिवार)-भाजपा के कुछ प्रमुख नेता लोजपा में शामिल होकर इस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन अब चिराग जदयू के खिलाफ  चुनाव लडऩे के फैसले के लिए सिर्फ  खुद को ही दोषी बनने नहीं देना चाहते हैं। चिराग ने कुछ दिन पहले एक समाचार चैनल से कहा, ‘मेरे दिवंगत पिता और दलित नेता रामविलास पासवान ने ही मुझे इसके लिए प्रेरित किया था जिनका 8 अक्टूबर को निधन हो गया।’ चिराग ने कहा कि भाजपा के बड़े नेताओं  को न केवल उनकी पार्टी की योजना के बारे में पता था बल्कि उन्होंने इसका समर्थन भी किया था जिनमें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन, नित्यानंद राय और रामकृपाल यादव जैसे नेता भी शामिल हैं।
 बिहार की राजनीति में पिछले 15 दिनों में दिलचस्प बदलाव देखने को मिल रहा है। राज्य विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए काफी आसान लग रहा था जिसमें भाजपा आगे नजर आ रही थी लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। राजग ने 180 से अधिक सीटें जीतने की बात करनी बंद कर दी है। इसके अलावा, भाजपा ने नीतीश कुमार के शासन का बचाव करना शुरू कर दिया है। हालांकि जब चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत हो रही थी तब पार्टी के कई नेताओं ने इसको नजरअंदाज किया था और मांग की थी कि चुनाव के बाद नीतीश की जगह भाजपा के किसी और नेता को लाया जाए जिनमें केंद्रीय गृह मंत्रालय में शाह के कनिष्ठ मंत्री नित्यानंद राय जैसे व्यक्ति भी शामिल हैं। बिहार में दलित राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले अशोक भारती कहते हैं, ‘पासवान ने जो किया है वह दशकों से दलित राजनीति की एक कमजोरी है। रामविलास पासवान ने राजग में अपने बेटे को स्थापित करने की कोशिश की और उनके निधन के बाद वह भाजपा के हाथों की कठपुतली बन गए हैं। यह पटकथा नीतीश के राजनीतिक जीवन को खत्म करने, दलितों और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को आपस में लड़ाने के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सवर्ण जातियों को इसके लिए दोषी न ठहराया जाए।’
नब्बे के दशक के मध्य से ही समता पार्टी के दिनों से नीतीश के करीबी सहयोगी रहे शंभू श्रीवास्तव का मानना है कि ऐसी राजनीतिक साजिश, सामाजिक न्याय आंदोलन को चोट पहुंचाने के लिए बड़े ‘षड्यंत्र’ से ज्यादा जटिल है। उनका मानना है कि भाजपा को नीतीश को लेकर डर है कि कहीं चुनाव नतीजों के बाद बिहार में अपने पुराने समाजवादी मित्र लालू प्रसाद, वाम दलों और कांग्रेस की मदद से नीतीश, महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे वाले प्रकरण को यहां भी दोहरा सकते हैं। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक नीतीश ने इसके नेताओं के साथ हमेशा एक चैनल खुला रखा है। भाजपा भी 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के अपमान को भूल नहीं पा रही है।
श्रीवास्तव ने कहा कि भाजपा के नेतृत्व को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और पार्टी के बेहतर प्रदर्शन को लेकर पूरा भरोसा था। श्रीवास्तव कहते हैं, ‘एक भूमिगत अभियान शुरू हुआ है जो पिछले 15 वर्षों के शासन के सत्ता विरोधी रुझानों से जुड़ा हुआ है और प्रवासी मजदूरों से जुड़े संकट का प्रबंधन करने में सरकार द्वारा दिखाई गई संवेदनहीनता का दोष नीतीश पर मढ़ा जा रहा है, न कि गठबंधन के सहयोगी दल भाजपा पर। भाजपा का मानना था कि इस अभियान से पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ेगा और मोदी की व्यापक लोकप्रियता से उसे 122 सीटों के बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने में मदद मिलेगी।’ जैसा कि अमूमन होता कि बेहतर पटकथा भी गड़बड़ हो सकती है।
नीतीश ने पूर्व विश्वासपात्र जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाले दल ‘हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा’ को राजग के पाले में जोड़कर अपनी ‘महादलित’ की रणनीति के जरिये पासवानों को फिर से उकसाया। इसके बाद वह चुप हो गए जैसा कि उनके सहयोगी उप मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील मोदी ने भी किया और चिराग के नेतृत्व में लोजपा ने महत्त्वाकांक्षा में आगे बढऩे की कोशिश की। इस बीच, विपक्षी खेमे महागठबंधन में एक और आश्चर्यजनक बदलाव हो रहे थे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने कांग्रेस और वाम दलों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए अधिक परिपक्वता दिखाई। तेजस्वी ने उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी और मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी जैसे दलों के गठबंधन से भी छुटकारा पाया।
किसी को भी इस बात का भरोसा नहीं हो सकता है कि अगर त्रिशंकु विधानसभा होगी तब दोनों दल किस तरह जाएंगे, हालांकि उनका चुनावी प्रदर्शन भी अब तक खराब रहा है। राजद के एक नेता ने बताया, ‘महागठबंधन से दोनों दलों को बाहर करने का संदेश सरल था कि अच्छी तरह छुटकारा मिल गया।’ कांग्रेस के लिए 70 सीटें छोडऩे से मुसलमानों का वोट गठबंधन के साथ संभावित रूप से मजबूत हुआ है और सवर्ण जातियों में एक सकारात्मक संदेश भी गया है।

First Published - October 20, 2020 | 11:50 PM IST

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