केरल में कुछ महीने बाद (अप्रैल-मई 2021) राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं और राज्य के मुख्यमंत्री तथा लोकप्रिय वामपंथी नेता पिनाराई विजयन के लिए समय की धारा कठिनाइयों के साथ चल रही है। एक सक्षम प्रशासक तथा कभी गलती न करने वाले नेता के तौर पर पहचाने वाले विजयन अपने कार्यकाल के पिछले छह महीनों में कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
हालिया विवाद को ही लें तो इसे पूरी तरह टाला जा सकता था। सरकार ने केरल पुलिस अधिनियम की धारा 118ए में बदलाव करते हुए किसी भी तरीके से व्यक्तियों को धमकाने, अपमान करने या अभद्र आचरण करने पर पांच साल के कारावास और 10,000 रुपये के जुर्माने की कठोर सजा का प्रावधान किया। ऐसी किसी सामग्री को फॉरवर्ड करना भी अपराध में शामिल किया गया। राज्य मंत्रिमंडल ने सोशल मीडिया के जरिये चरित्र हनन करने या दुव्र्यवहार करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के लिए 21 अक्टूबर को यह निर्णय लिया। हालांकि धारा 118ए का दायरा इससे कहीं ज्यादा व्यापक था।
इससे भी बदतर स्थिति यह थी कि इसी तरह के एक केंद्रीय कानून को सर्वोच्च न्यायालय (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66 पर श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ) निरस्त कर चुका था। जैसे-जैसे लोगों में आक्रोश फूटता गया और इसकी वास्तविक मंशा पर सवाल उठने लगे तो सरकार ने संशोधन वापस लेने की घोषणा कर दी। लेकिन नुकसान हो चुका था। विजयन सरकार को हमेशा याद किया जाएगा, लेकिन सरकार द्वारा उठाए गए अच्छे कदमों के बजाय इस बात के लिए कि उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने का प्रयास किया। विजयन सरकार के 4 वर्षों के कार्यालय में केरल को चक्रवातों (ओखी और निवार), दो बाढ़ और दो महामारी संबंधी आपदाओं (निपाह एवं कोविड-19) से जूझना पड़ा। हालांकि कोविड-19 के शुरुआती प्रबंधन से राज्य ने इसपर लगभग जीत हासिल कर ली, लेकिन बाद में कोरोना के बढ़ते प्रसार को लेकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘कुछ राज्यों’ की लापरवाही को कारण बताया। पिनाराई ने खुद स्वीकार किया कि ‘शुरू में हमने सावधानी बरती और कोरोना रोकथाम के लिए प्रत्येक हमारी प्रशंसा कर रहा था। लेकिन हमारी संतुष्टि की वजह से ही हम वर्तमान स्थिति में पहुंच गए।’ एक समय केरल में केवल 100 कोरोना पॉजिटिव मामले बचे थे और अगर थोड़ी और मेहनत कर ली जाती तो इस संक्रमण को राज्य से पूरी तरह समाप्त किया जा सकता था।
विनिर्माण क्षेत्र में राज्य में बेहतर काम हुआ। वर्ष 2013 में 444 किमी लंबी गेल कोच्चि-कूटानद-बेंगलूरु-मंगलूरु पाइपलाइन परियोजना (केकेबीएमपी एल) चालू की गई थी। लेकिन भूमि अधिग्रहण की समस्याओं, धार्मिक समूहों द्वारा विरोध एवं उत्तरी केरल में अन्य राजनीतिक अवरोधों के कारण परियोजना को नुकसान हुआ। केवल 39 किलोमीटर निर्माण होने के बाद इस परियोजना को बीच में ही रोक दिया गया। हालांकि केरल एवं दक्षिण भारत में घरेलू तथा औद्योगिक उपयोग के लिए प्राकृतिक गैस की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कोच्चि में पेट्रोनेट एलएनजी के टर्मिनल के भविष्य के लिए यह परियोजना काफी महत्त्वपूर्ण थी। अब, 15 महीने की देरी से ही सही, लेकिन परियोजना को किसी भी समय चालू किया जा सकता है क्योंकि अब केवल चार किमी पाइपलाइन का निर्माण होना शेष है। इसका श्रेय पूरी तरह से विजयन सरकार को जाना चाहिए।
लेकिन केरल में व्यापक आर्थिक चिंताएं सरकार के विपक्ष में खड़ी हैं। राज्य में बेरोजगारी दर 9.53 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 6.1 प्रतिशत से बहुत अधिक है। यहां 7,303 चिकित्सा स्नातक, 44,559 इंजीनियरिंग स्नातक, 6,413 एमबीए डिग्रीधारी और 3,771 एमसीए सहित 36 लाख युवा बेरोजगार हैं। कोविड-19 ने बेरोजगारी को और बढ़ावा दिया है क्योंकि खाड़ी के प्रवासी लोग घर लौट आए हैं। इससे नौकरियों के मोर्चे पर अधिक दबाव पड़ रहा है। केरल सरकार पर कुल 1.71 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं, सामाजिक तथा धार्मिक मोर्चे पर राज्य गंभीर विभाजनकारी स्थितियों का सामना कर रहा है।
जब आप इस तथ्य पर विचार करें कि मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात तथा मुख्यमंत्री का दाहिना हाथ कहा जाने वाला एक अफसरशाह जब सोने की तस्करी के रैकेट से संलिप्त पाया जाए तो यह अच्छे इरादों के साथ शुरू हुई एक सरकार को निराशाजन स्थिति में धकेल देता है। राज्य के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने केंद्र से आर्थिक मोर्चे पर, विशेषकर जीएसटी के मुद्दे पर वित्तीय संघवाद का पालन करने की मांग की है। अपने वैचारिक सिद्धांत के खिलाफ जाते हुए केरल ने सरकार ने गीता गोपीनाथ को सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया।
इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि विजयन के नेतृत्व वाला वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) और भाकपा (एम) अपने रास्ते पर है। लेकिन क्या वाकई यह एक ऐसी सरकार थी जिसने विपक्ष एवं मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया, केरल की अर्थव्यवस्था को नीचे धकेल दिया और केरल के लोगों के लाभ के लिए केंद्र को परियोजनाओं से बाहर कर दिया? हालांकि ये विचार ऐसे राज्य के लिए काफी कठोर होंगे, जिसने प्राकृतिक आपदा से बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
