39 Years of Bhopal Gas Tragedy: विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदियों में से एक भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) की यह 39वीं बरसी है।
शनिवार देर शाम भोपाल शहर में गैस पीड़ितों के बीच काम करने वाले संगठनों ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री तक मशाल जुलूस निकाला और ‘मृतकों के लिए मातम, जीवितों के लिए संघर्ष’ के नारे के साथ अपनी मांग प्रस्तुत कीं।
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, ‘यूनियन कार्बाइड और डॉव केमिकल्स ने गैस पीड़ितों के बच्चों में जन्मजात विकृतियों और उनके स्वास्थ्य को पहुंचे नुकसान के लिए अब तक कोई मुआवजा नहीं दिया है। कंपनी ने कारखाने से पांच किलोमीटर दूर तक मिट्टी और भूजल प्रदूषण के लिए भी कोई हर्जाना नहीं चुकाया है।’
गैस पीड़ितों के मुआवजे की कमी का भुगतान करने की मांग
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन ऐंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय का सन 1991 को आदेश साफ कहता है कि केंद्र सरकार को गैस पीड़ितों के मुआवजे की कमी का भुगतान करना चाहिए। जब सरकार यूनियन कार्बाइड की हर्जाना राशि को अपर्याप्त बता चुकी है तो उसे गैस पीड़ितों को उनके हक का हर्जाना देना चाहिए।’
सन 1984 में दो और तीन दिसंबर की दरमियानी रात यानी रात करीब 12 बजकर 5 मिनट पर भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड की कीटनाशक फैक्ट्री से हुए मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नामक जहरीली गैस के रिसाव के कारण हजारों लोगों ने एक झटके में अपनी जान गंवा दी जबकि लाखों की तादाद में लोग आज भी उस गैस के असर से प्रभावित है।
उस रात भोपाल रेलवे स्टेशन से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर घनी आबादी के बीच स्थित यूनियन कार्बाइड संयंत्र से करीब 35 टन मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ था।
भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार संदीप पौराणिक कहते हैं कि विश्व इतिहास की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं में शामिल इस त्रासदी को दुर्घटना कहना ज्यादती है क्योंकि उस दुर्भाग्यपूर्ण रात से करीब दो वर्ष पहले भी वहां छोटे पैमाने पर रिसाव की घटना घट चुकी थी जिसमें एक कर्मचारी को जान गंवानी पड़ी थी।
भोपाल के एक स्थानीय पत्रकार राजकुमार केसवानी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में सुरक्षा मानकों की कमी पर शृंखलाबद्ध ढंग से लेख लिख रहे थे लेकिन फैक्ट्री संचालकों और प्रशासन किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
39 साल बाद भी हजारों की तादाद में जूझ रहे कई बिमारियों से
इसका नतीजा एक ऐसी तबाही के रूप में सामने आया जिसने छह लाख से अधिक लोगों को प्रभावित किया। मृतकों का सरकारी आंकड़ा भले ही करीब 3800 है लेकिन विभिन्न अनुमानों के मुताबिक तकरीबन 15000 लोगों की जान लेने वाले इस आपराधिक घटनाक्रम के 39 साल बाद भी हजारों की तादाद में गैस पीड़ित सांस की बीमारियों तथा अल्सर एवं विकलांगता से जूझ रहे हैं। बहुत बड़ी तादाद में जहरीला कचरा आज भी आसपास के इलाके के रहवासियों के लिए जोखिम बना हुआ है।
ढींगरा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘भोपाल गैस कांड के आपराधिक मामले में इस वर्ष अक्टूबर में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि तब हासिल हुई जब गत तीन अक्टूबर को 18 वर्षों में पहली बार द डॉव केमिकल कंपनी ने एक भगोड़े को शरण देने के आरोप में भोपाल जिला अदालत की ओर से जारी समन का जवाब दिया। यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन को 1992 में गैर इरादतन हत्या तथा अन्य आरोपों में भगोड़ा घोषित किया गया था। सन 2001 में डॉव केमिकल ने इस कंपनी का अधिग्रहण कर लिया था।’
आज भी करीब डेढ़ लाख लोग गैस जनित पुरानी बीमारियों से जूझ रहे
बीते 27 सालों से गैस पीड़ितों को निशुल्क चिकित्सा उपलब्ध करा रहे भोपाल के संभावना ट्रस्ट क्लीनिक में पंजीयन का काम करने वाले नितेश दुबे के अनुसार आज भी करीब डेढ़ लाख लोग गैस जनित पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं।