केंद्र सरकार ने एमएसएमई की परिभाषा में फिर से बदलाव कर मझोली इकाइयों के लिए निवेश व कारोबार की सीमा बढ़ा दी है।
इससे सूक्ष्म व लघु इकाइयों को एमएसएमई को दी जाने वाली सरकारी मदद का ज्यादातर हिस्सा मझोली इकाइयों द्वारा हथियाने का डर सता रहा है। इसलिए छोटे उद्यमियों ने एमएसएमई क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु व मझोली इकाइयों की हिस्सेदारी के हिसाब से सरकारी मदद का वितरण को एमएसएमई परिभाषा में शामिल करने की मांग की है। लघु उद्योग भारती के महासचिव गोविंद लेले कहते हैं कि सरकार ने एमएसएमई की परिभाषा बदलाव की लंबे समय से लंबित मांग पूरी कर दी है। सरकार को अब एमएसएमई को दिए जाने वाले लाभ मसलन प्राथमिकता के आधार पर वित्तपोषण, सरकारी खरीद में एमएसएमई के लिए 25 फीसदी आरक्षण आदि का वितरण एमएसएमई क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु व मझोली इकाइयों की हिस्सेदारी के आधार पर करना चाहिए।
एमएसएमई मंत्रालय की वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार एमएसएमई क्षेत्र में सूक्ष्म इकाइयों की हिस्सेदारी 89 फीसदी, लघु इकाइयों की 10.5 फीसदी और मझोली इकाइयों की 0.5 फीसदी हिस्सेदारी है।
एपेक्स चैंबर आफ कॉमर्स ऐंड इंडस्टी दिल्ली के उपाध्यक्ष रघुवंश अरोड़ा ने कहा कि नई परिभाषा में फिर संशोधन कर मझोली इकाइयों के लिए निवेश 20 करोड़ से बढ़ाकर 50 करोड़ और टर्नआवेर 100 करोड़ की जगह 250 करोड़ करने से सूक्ष्म व लघु इकाइयों को घाटा होगा। इस नई परिभाषा से एमएसएमई क्षेत्र को मिलने वाली आर्थिक सहायता का ज्यादातर लाभ मझोली इकाइयों को मिलेगा।
