भारत में हर साल औसतन आठ विमानन दुर्घटनाएं हो रही हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश अनुसूचित विमानन कंपनियों की नहीं हैं। वर्ष 2014 से 2020 तक नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के आंकड़ों के अनुसार पिछले सात वर्षों में 56 दुर्घटनाओं में से 39.3 प्रतिशत दुर्घटनाओं के लिए गैर-अनुसूचित परिचालक जिम्मेदार हैं जिनमें चार्टर्ड विमान और कंपनी की उड़ानें शामिल हैं। ताजा वर्ष के आंकड़े नागरिक उड्डयन सांख्यिकी हैंडबुक में उपलब्ध हैं।
प्रशिक्षण संस्थानों में 28.6 प्रतिशत दुर्घटनाएं होती हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में अनुसूचित परिचालकों की हिस्सेदारी 23.2 प्रतिशत है।
एक दुर्घटना आमतौर पर विमान में किसी तरह की गड़बड़ी आने से होती है जिसमें मौत, गंभीर चोट और क्षतिग्रस्त होने जैसी स्थिति बनती है। यहां तक कि विमान (दुर्घटनाओं और घटनाओं की जांच) नियम, 2012 के अनुसार जिसमें विमान लापता हो जाता है या जिस तक पहुंचना मुश्किल होता है उसे भी दुर्घटना ही माना जाता है। वहीं गंभीर हादसा वह है जिसमें दुर्घटना की अधिक आशंका थी।
विमानन क्षेत्र के विशेषज्ञ ने कहा कि क्षेत्रीय परिचालकों सहित उड़ान प्रशिक्षण संस्थान और गैर-अनुसूचित परिचालक छोटे विमानों का इस्तेमाल करते हैं। छोटे हवाई अड्डों पर रनवे और हवाई पट्टी के बुनियादी ढांचे उसी मानक के अनुरूप नहीं हैं जो किसी प्रमुख हवाई अड्डों और महानगरों में मिल सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसमें अधिक जोखिम की संभावना होती है। उन्होंने कहा, ‘भारत में विमानन सुरक्षा दुनिया में अपनाई जा रही चीजों से जुड़ी हुई है। अधिकांश विमानों को अंतरराष्ट्रीय पट्टेदारों से किराये पर लिया जाता है और उन्हें दुनिया भर में भेजा जाता है जिसके लिए दुनिया भर के नियामकों द्वारा परिभाषित विमानों के मानक प्रबंधन नियमों का पालन करने की जरूरत होती है। इसके अलावा, हवाई जहाज निर्माता भी यह सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं कि सुरक्षा मानकों को बनाए रखा जाए।’
उन्होंने कहा, ‘भारत में वैश्विक मानकों का पालन किया जाता है।’ दुर्घटनाओं की कुल संख्या में पिछले कुछ वर्षों में कोई अहम बदलाव नहीं हुआ है। वर्ष 2012 में इसके नौ उदाहरण हैं जो 2014 में कम होकर छह रह गए और 2020 में सात तक हो गए थे। महामारी से पहले 2019 में 10 उदाहरण हैं। विमानन संख्या में अच्छी वृद्धि देखी गई है।
वर्ष 2013-14 में घरेलू यात्रियों की संख्या 6.07 करोड़ थी। महामारी के आने से पहले वर्ष 2018-19 में यह तादाद बढ़कर 14.03 करोड़ हो गई थी। डीजीसीए के मुताबिक इसी अवधि के दौरान अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की संख्या 4.31 करोड़ से बढ़कर 6.39 करोड़ हो गई थी।
गंभीर घटनाओं की संख्या में वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2020 में इनकी संख्या 25 थी। डीजीसीए की नई रिपोर्ट में 2016 के आंकड़े थे जिसमें वर्ष भर में 11 गंभीर घटनाओं का जिक्र था। पिछली रिपोर्ट के आंकड़े से पता चलता है कि 2014 का आंकड़ा भी 11 था। पिछले सात वर्षों में गंभीर घटनाओं की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है जिसके लिए डेटा उपलब्ध हैं।
दर्ज की गई गंभीर घटनाओं में अनुसूचित विमान परिचालकों की संख्या अधिक है। पिछले पांच वर्षों में उनकी औसत हिस्सेदारी 91 प्रतिशत रही है। शेष गैर-अनुसूचित, निजी और विदेशी विमान परिचालकों में शामिल होते हैं। पिछले पांच वर्षों के डेटा से अंदाजा मिलता है कि कुछ वर्षों के दौरान रिपोर्टिंग प्रारूप में बदलाव देखा गया है।