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कोरोना की जांच में खप रही एक चौथाई कमाई

Last Updated- December 15, 2022 | 4:47 AM IST

पूरी दुनिया में कहर बरपा रहा नया कोरोनावायरस अब भी हमारी समझ से बाहर है और हमारी सोच से भी ज्यादा तेज रफ्तार से कोविड-19 फैला रहा है। इसने न तो मध्य वर्ग को बख्शा है, न गरीब को छोड़ा है और न ही जैर बोलसोनारो या बोरिस जॉनसन के साथ कोई नरमी दिखाई है। सबसे बड़ी आंच तो इसकी जांच की है, जो सीधे जेब में छेद कर रही है।
आस-पड़ोस, घर-दफ्तर, स्कूल-कॉलेज तक यह वायरस पहुंच रहा है तो लोग महफूज रहने के लिए इसकी जांच भी करा रहे हैं। प्रवीण कांबले ने भी यही सोचा। कांबले देश की वित्तीय राजधानी मुंबई से 100 मील दूर मेगासिटी पुणे में पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें 15 जून को हल्का बुखार महसूस हुआ था। हालांकि कुछ दिन बाद उनकी सेहत सुधरने लगी थी, लेकिन आश्वस्त होने के लिए और माता-पिता को महफूज रखने के लिए उन्होंने कोरोनावायरस की जांच कराने का इरादा किया। सरकारी अस्पतालों ने हल्के लक्षण देखकर जांच से इनकार कर दिया और कांबले को निजी प्रयोगशाला जाना पड़ा। जांच में तो कुछ नहीं निकला मगर उनकी जेब से 2,800 रुपये निकल गए।
कांबले ने कहा, ‘अगर जांच 1,000 रुपये में हो जाती तो मैं घर में सबकी जांच कराता। भगवान का शुक्र है कि माता-पिता को संक्रमण नहीं हुआ। उनकी जांच का जोखिम मैंने इसीलिए नहीं उठाया क्योंकि जांच बहुत महंगी है।’ कोविड-19 की जांच का खर्च 2,800 से 3,000 रुपये यानी करीब 40 डॉलर आ रहा है, जो खर्च करना मध्य वर्ग के लिए भी मुश्किल हो रहा है फिर गरीब के लिए जांच कितनी महंगी होगी?
बिज़नेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण के मुताबिक कोरोनावायरस की आरटी-पीसीआर जांच में औसत भारतीय की महीने भर की कमाई का 23 फीसदी हिस्सा खर्च हो जाएगा। चीन में औसत मासिक आय का केवल 2 फीसदी जांच में खर्च हो रहा है। 14 प्रमुख देशों में सबसे महंगी जांच भारत में ही है। छोटे शहरों में तो हालत और बुरी हो सकती है क्योंकि वहां कमाई भी कम है।
मध्य प्रदेश में कुछ जगह करीब 4,000 रुपये मे जांच की जा रही है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने शुरुआत में जांच का अधिकतम खर्च 4,500 रुपये तय किया था मगर बाद में यह सीमा हटा ली गई। हमने गणना के लिए डॉलर को आधार माना है। 1 डॉलर की कीमत करीब 75 रुपये है। उसी के हिसाब से प्रति व्यक्ति आय को डॉलर में बदला गया है, जिससे पता चला है कि प्रति व्यक्ति आय का कितना हिस्सा जांच में खर्च हो रहा है।
उदाहरण के लिए ब्राजील में जांच कराने पर व्यक्ति की मासिक आय का करीब 8 फीसदी खर्च हो जाएगा। विकसित देशों में बमुश्किल 2 फीसदी आय खर्च होगी। दिलचस्प है कि चीन में भी विकसित देशों जितनी ही आय खर्च हो रही है। इस विश्लेषण में अपनी मर्जी से निजी प्रयोगशालाओं में कराई जा रही जांच के खर्च को शामिल किया गया है। देश भर के सरकारी अस्पतालों में उन गंभीर मरीजों की जांच नि:शुल्क हो रही है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत है। कई देशों में वैध स्वास्थ्य बीमा होने पर जांच का खर्च माफ कर दिया जाता है।
अगर हम चीन की सरकार की वेबसाइट के आंकड़ों पर भरोसा करें तो औसत व्यक्ति की क्रय शक्ति के लिहाज से सबसे सस्ती जांच वहीं है। वहां 29 डॉलर में कोरोना की जांच हो जाती है। इसके बाद रूस में 39 डॉलर में जांच हो जाती है। चीन सरकार के आंकड़ों के निसाब से भारत में जांच का खर्च चीन के मुकाबले चार गुना है। इसकी तुलना में भारत में जांच की लागत चीन से चार गुना है। किसी भी मुद्रा की तुलना डॉलर से करने पर यह पता चल जाता है कि अमेरिका में 1 डॉलर में मिलने वाली वस्तु किसी अन्य देश में खरीदने पर वहां की कितनी मुद्रा खर्च करनी पड़ेगी। भारत में यह दर 21 है यानी अमेरिका में किसी सुपरस्टोर में 10 डॉलर में मिलने वाला सामान भारत में संभवत: 210 रुपये में मिलेगा। यह क्रय शक्ति की विनिमय दर कहलाती है। इस तरह यह तुलना हमें बताती है कि इन देशों में जांच की तुलनात्मक कीमत क्या है। क्रय क्षमता की समानता के पैमाने पर देखें तो ज्यादातर विकसित देशों में कोविड-19 जांच 100 डॉलर से कम में हो जाती है मगर भारत में इस पर 142 डॉलर खर्च होते हैं। विकिसत देशों में पोलैंड, मैक्सिको और ब्रिटेन में यह जांच सबसे महंगी है और वहां इस पर भारत के मुकाबले दोगुना और चीन के मुकाबले करीब 10 गुना खर्च होता है।
जर्मनी जैसे देशों में जांच का खर्च बहुत कम पड़ता है क्योंकि वहां कमोबेश हरेक व्यक्ति के पास स्वास्थ्य बीमा है। भारत में बमुश्किल एक तिहाई आबादी के पास व्यक्तिगत या सरकारी योजना वाला बीमा है।
साफ है कि कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को जांच के लिए दूसरे देशों से ज्यादा जूझना पड़ रहा है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में व्यक्तिगत आय भारत के मुकाबले कम है मगर वहां जांच भारत से ज्यादा महंगी है। रैपिड एंटीजन टेस्ट सटीक नही होते मगर जल्दी हो जाते हैं। इससे जांच को सस्ता बनाने में मदद मिल रही है।अर्थशास्त्री मानते हैं कि जांच सस्ती होनी चाहिए ताकि सभी को उसका फायदा मिल सके। इसकी व्याख्या वे ऐसी स्थिति से करते हैं, जहां किसी एक घटना के कारण आसपास खड़े लोगों को फायदा होता है या किसी व्यक्ति के काम से पूरे समाज की भलाई होती है। तक्षशिला इंस्टीट््यूशन में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले अविनाश त्रिपाठी एक उदाहरण देते हैं। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘मान लीजिए कोई व्यक्ति अपने हाथ धोता है, मास्क का इस्तेमाल करता है या कोविड-19 की जांच कराने का फैसला करता है। इसमें वह खुद को ही नहीं बचा रहा है बल्कि दूसरे लोगों को भी संक्रमण की आशंका से बचा रहा है। यह सकारात्मक व्यवहार है और आदर्श स्थिति में ऐसे व्यवहार के लिए सब्सिडी यानी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, इस पर कर नहीं लगाया जाना चाहिए।’
दुनिया भर के सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ जांच को सस्ता बनाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि जनहित में जांच को बढ़ावा दिया जाए, न कि उसे महंगा बनाए रखा जाए। अगर कोविड-19 की जांच में औसत भारतीय की एक चौथाई आमदनी खर्च हो जाए तो इसे प्रोत्साहन तो कहीं से भी नहीं कहा जा सकता।

संक्रमितों की संख्या 10 लाख के करीब
देश में कोरोनावायरस के संक्रमितों की संख्या दस लाख के करीब पहुंच गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में पहली बार एक दिन में कोविड के 32,000 से अधिक मामले सामने आए हैं। इससे संक्रमितों की कुल संख्या गुरुवार को बढ़कर 9,68,876 पर पहुंच गई।
इसके साथ ही कोरोना संक्रमण से 606 और लोगों की मौत के साथ मृतकों का आंकड़ा 24,915 हो गया। मंत्रालय के सुबह आठ बजे तक जारी आंकड़ों के अनुसार देश में एक दिन में कोरोना वायरस संक्रमण के 32,695 मामले सामने आए। इनमें से करीब 80 फीसदी मामले महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और बिहार से आए हैं। हालांकि अब तक 6,12,814 लोग स्वस्थ हो चुके हैं जबकि संक्रमित 3,31,146 मरीजों का इलाज किया जा रहा है। यह देश के कुल कोविड-19 मरीजों के एक तिहाई से थोड़ा ज्यादा है। मंत्रालय ने कहा, अभी तक करीब 63.25 फीसदी मरीज स्वस्थ हो चुके हैं।

First Published - July 16, 2020 | 11:27 PM IST

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