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Working hours: इस देश में हफ्ते में सिर्फ 24.7 घंटे काम करते हैं लोग, जानें भारत में क्या हैं हालात?

भारत उन टॉप 20 देशों में शामिल नहीं है जहां वर्किंग आवर्स कम हैं।

Last Updated- September 27, 2024 | 3:30 PM IST
work-life balance

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओशिनिया में स्थित वानुअतु उन देशों में शामिल है जहां कर्मचारियों की साप्ताहिक औसत वर्किंग आवर्स सबसे कम हैं। वानुअतु में कर्मचारी हर हफ्ते औसतन 24.7 घंटे काम करते हैं, जो सर्वे किए गए देशों में सबसे कम है। इसके अलावा, यहां सिर्फ 4% वर्कफोर्स 49 घंटे या उससे ज्यादा काम करती है, जो ग्लोबल ट्रेंड्स से बिल्कुल अलग है।

इस लिस्ट में किरिबाती दूसरे नंबर पर है, जहां कर्मचारी हर हफ्ते औसतन 27.3 घंटे काम करते हैं। वहीं, भारत उन टॉप 20 देशों में शामिल नहीं है जहां वर्किंग आवर्स कम हैं।

किरिबाती के बाद माइक्रोनेशिया में प्रति सप्ताह औसतन 30.5 घंटे काम किया जाता है, इसके बाद रवांडा (30.4), सोमालिया (31.5), नीदरलैंड (31.6), इराक (31.7), वालिस और फुटुना द्वीप (31.8), इथियोपिया (31.9), कनाडा (32.1), ऑस्ट्रेलिया (32.3) और न्यूजीलैंड (33.0) का नंबर आता है।

सबसे ज्यादा काम करने वाले देश

दूसरी तरफ, भूटान सबसे आगे है, जहां 61% वर्कफोर्स हर हफ्ते 49 घंटे से ज्यादा काम करती है। बांग्लादेश (47%) और पाकिस्तान (40%) भी इस लिस्ट में ऊपर हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग लंबे समय तक काम में लगे रहते हैं।
भारत में करीब 51% वर्कफोर्स हर हफ्ते 49 घंटे या उससे ज्यादा काम करती है, जिससे देश लंबे काम के घंटों में दूसरे स्थान पर आता है।

दुनिया के अन्य देशों में जैसे यूएई (50.9 घंटे, 39%) और लेसोथो (50.4 घंटे, 36%) भी ज्यादा वर्किंग आवर्स की रिपोर्ट करते हैं। हालांकि, भारत का नाम उन देशों में प्रमुखता से आता है, जहां 49 घंटे से ज्यादा काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या ज्यादा है।
इसके विपरीत, नीदरलैंड (31.6 घंटे) और नॉर्वे (33.7 घंटे) जैसे देशों में काम और निजी जीवन के बीच बेहतर संतुलन देखा जाता है, जहां औसत साप्ताहिक काम के घंटे काफी कम हैं।

ये आंकड़े भारत में वर्क-लाइफ बैलेंस, मानसिक स्वास्थ्य और लेबर पॉलिसी के बारे में गंभीर चिंताएं उठाते हैं, क्योंकि देश की आधी से ज्यादा वर्कफोर्स लंबे घंटे काम करती है। बदलती आर्थिक मांगों के बीच लेबर फोर्स को मैनेज करने की चुनौती के साथ-साथ, देश के लिए ऐसे वर्क एनवायरनमेंट बनाना बेहद जरूरी हो गया है, जो सेहत और प्रोडक्टिविटी दोनों को बढ़ावा दें।

First Published - September 27, 2024 | 3:29 PM IST

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