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कौन हैं बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस? नोबेल पुरस्कार विजेता ने पेरिस से लौटकर कहा- दूसरी बार मिली आजादी

‘गरीबों के लिए बैंकर’ (banker to the poor) के नाम से जाने जाने वाले मुहम्मद यूनुस ने ग्रामीण बैंक की स्थापना की थी।

Last Updated- August 08, 2024 | 9:42 PM IST
शेख हसीना ने हर संस्था को नष्ट किया : मोहम्मद यूनुस Sheikh Hasina destroyed every institution: Mohammad Yunus

Who is Nobel laureate Muhammad Yunus: बांग्लादेश में भीषण विद्रोह चल रहा है। करीब 440 लोगों से ज्यादा अबतक मारे जा चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना इस्तीफा देकर भारत आ चुकी हैं। और इन सबके बाद आज यानी 8 अगस्त को बांग्लादेश के होने वाले अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस पेरिस से अपने देश आकर अंतरिम प्रधानमंत्री की शपथ ले चुके हैं। यूनुस खान स्वास्थ्य कारणों से पेरिस में मौजूद थे। बांग्लादेश की मिलिट्री, छात्रों और विपक्ष की सिफारिश के बाद यूनुस प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के लिए पेरिस से दुबई के रास्ते अपने वतन लौट आए जहां से वे सीधे प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास बंगभवन गए।

जैसे ही मुहम्मद यूनुस ने ढाका में लैंड किया, उनका बयान आया कि बांग्लादेश को दूसरी बार स्वतंत्रता मिली है, यह बांग्लादेश का दूसरा ‘विजय दिवस’ है और लोगों को इसकी रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, हमें ऐसी सरकार बनानी होगी जो अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। इस आजादी का फायदा बांग्लादेश के हर घर तक पहुंचना चाहिए। इसके बिना, इसे दूसरी बार हासिल करना किसी मतलब का नहीं होगा।

बता दें कि अंतरिम प्रधानमंत्री का मतलब होता है बांग्लादेश में फिर से चुनाव होने तक यानी निर्वाचित सरकार बनने तक यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार देश की कमान संभालेगी। बांग्लादेश के राष्ट्रपति मुहम्मद शहाबुद्दीन अंतरिम सरकार को शपथ दिलाएंगे। बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-ज़मा ने कल कहा था कि अंतरिम सरकार का शपथ ग्रहण समारोह 8 अगस्त की शाम 8 बजे आयोजित किया जा सकता है, जिसमें लगभग 400 लोग मौजूद रहेंगे।

अब जानते हैं मौहम्मद यूनुस के बारे में

मुहम्मद यूनुस की उम्र (Muhammad Yunus age) इस समय 84 साल की है। साल 1940 में यूनुस का जम्म स्वतंत्रता-पूर्व अविभाजित बंगाल प्रेसीडेंसी के बथुआ गांव में हुआ था। मुहम्मद यूनुस एक व्यापारी परिवार में नौ बच्चों में से तीसरे हैं।

यूनुस के पिता का नाम हाजी दुला मिया सौदागर था। वे सोने-चांदी का बिजनेस करते थे यानी एक जौहरी थे। हालांकि उनका जन्म एक गांव में हुआ था, उन्होंने अपनी पढ़ाई चटगांव के बंदरगाह शहर में की, जहां वे एक सक्रिय बॉय स्काउट थे और उन्हें 1952 में पाकिस्तान और भारत की यात्रा करने का अवसर मिला। बता दें कि चटगांव को चटग्राम भी बोला जाता है जो बांग्लादेश का एक प्रमुख बंदरगाह (पोर्ट) और दूसरा सबसे बड़ा शहर है।

जानिये मुहम्मद यूनुस की शिक्षा के बारे में, फिर जानेंगे उनकी उपलब्धियां और जेल की कहानी

मुहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश में ढाका यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कि फिर वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए अमेरिकी के टेनेसी पहुंच गए। यूनुस को यहां पढ़ने के लिए फुलब्राइट स्कॉलरशिप मिली थी। उन्होंने यहां से अपनी पीएच.डी. डिग्री की। 1969 में वेंडरबिल्ट से अर्थशास्त्र में और अगले साल मिडिल टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए। बांग्लादेश लौटकर, यूनुस ने चटगांव यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र विभाग को हेड किया।

1993 से 1995 तक, प्रोफेसर यूनुस महिलाओं पर चौथे विश्व सम्मेलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार समूह (International Advisory Group for the Fourth World Conference on Women) के सदस्य थे।उन्हें इस पद पर संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव द्वारा नियुक्त किया गया था। उन्होंने महिला स्वास्थ्य के वैश्विक आयोग, सतत आर्थिक विकास के लिए सलाहकार परिषद (Advisory Council for Sustainable Economic Development) और महिलाओं और वित्त (Women and Finance) पर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ समूह में काम किया है।

किसलिए मौहम्मद यूनुस को 2006 में क्यों मिला नोबेल पुरस्कार

‘गरीबों के लिए बैंकर’ (banker to the poor) के नाम से जाने जाने वाले मुहम्मद यूनुस और उनके द्वारा स्थापित ग्रामीण बैंक (Grameen Bank) ने ग्रामीण गरीबों को 100 डॉलर से कम राशि के छोटे लोन देकर लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद की। इसके लिए साल 2006 में मुहम्मद यूनुस को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। ग्रामीण बैंक स्थापित करने का मकसद उन गरीबों की मदद करना था, जो आमतौर पर साधारण बैंकों में नहीं पहुंच पाते हैं।

उनके इस मॉडल से दुनिया भर के कई देश प्रेरित हुए और अपने यहां भी इस मॉडल का उपयोग किया। इनमें अमेरिका जैसे विकसित देश भी शामिल हैं जहां यूनुस ने एक अलग गैर-लाभकारी संस्था ग्रामीण अमेरिका (non-profit Grameen America) शुरू किया था।

एक घटना जिससे शुरू हुआ मुहम्मद यूनुस का ग्रामीण बैंक

मुहम्मद यूनुस चटगांव यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाते थे। 1971 का साल था, जब बांग्लादेश पाकिस्तान से आजाद हुआ था। आजादी को महज 3 साल बीते थे कि 1974 में बांग्लादेश में अकाल पड़ा, सैकड़ों हजारों लोग मारे गए। फिर यूनुस को अपने देश की एक बड़ी ग्रामीण आबादी की मदद करने के लिए बेहतर तरीकों की तलाश करनी पड़ी।

एक दिन मुहम्मद यूनुस को अपनी चटगांव यूनिवर्सिटी के पास एक गांव में एक महिला मिली जिसने एक साहूकार से एक डॉलर से भी कम की रकम उधार ली थी, लेकिन उसके बदले में साहूकार ने मांगा कि वह महिला जिस भी चीज का उत्पादन करेगी, उसको वह अपनी मनमर्जी कीमत पर खरीदेगा। उसकी कीमत पर महिला का कोई अधिकार नहीं होगा।

यूनुस को जब नोबेल पुरस्कार मिल रहा था तो उन्होंने अपने भाषण में कहा कि मुझे वह घटना ऐसी लगी जैसे किसी श्रमिक को बंदी बनाकर काम कराया जा रहा है।

यूनुस ने कहा, ‘मैंने हमारे कैंपस के बगल के गांव में इस साहूकारी “बिजनेस” के पीड़ितों की एक लिस्ट बनाई। उसमें 42 पीड़ितों के नाम थे, जिन्होंने कुल 27 अमेरिकी डॉलर की रकम उधार ली थी। मैंने इन पीड़ितों को उन साहूकारों के चंगुल से छुड़ाने के लिए अपनी जेब से 27 अमेरिकी डॉलर की पेशकश की। इस छोटे से काम से लोगों में जो उत्साह पैदा हुआ, उसने मुझे भी इसमें शामिल कर लिया। अगर मैं इतने कम पैसे से इतने सारे लोगों को इतना खुश कर सकता हूं, तो इससे अधिक क्यों नहीं कर सकता?तब से मैं यही करने की कोशिश कर रहा हूं।’

ग्रामीण बैंक को लेकर शुरू हुआ विवाद, यूनुस को मिली जेल की सजा

जैसे-जैसे यूनुस की सफलता बढ़ती गई, उन्होंने 2007 में अपनी पार्टी बनाने का प्रयास करते हुए कुछ समय के लिए राजनीतिक करियर शुरू किया। लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाओं को व्यापक रूप से शेख हसीना के गुस्से के रूप में देखा गया, जिन्होंने उन पर ‘गरीबों का खून चूसने’ का आरोप लगाया।

बांग्लादेश और पड़ोसी भारत सहित अन्य देशों के आलोचकों ने भी कहा है कि छोटे कर्जदाता बहुत ज्यादा दरें (interest) वसूलते हैं और गरीबों से पैसा बनाते हैं। लेकिन यूनुस ने कहा कि दरें विकासशील देशों में स्थानीय ब्याज दरों या 300% या उससे अधिक के मुकाबले बहुत कम हैं जो कर्जदाता कभी-कभी मांग करते हैं।

2011 में, शेख हसीना की सरकार ने उन्हें यह कहते हुए ग्रामीण बैंक के प्रमुख पद से हटा दिया कि 73 साल की उम्र में, वह 60 वर्ष की कानूनी सेवानिवृत्ति की आयु (रिटायरमेंट की उम्र) पार कर चुके हैं। उनकी बर्खास्तगी के विरोध में हजारों बांग्लादेशियों ने एक मानव श्रृंखला बनाई थी।

इस साल यानी 2024 की जनवरी में मुहम्मद यूनुस को श्रम कानून के उल्लंघन के मामले में छह महीने जेल की सजा सुनाई गई थी। जून में बांग्लादेश की एक अदालत ने उन्हें और 13 अन्य लोगों को उनके द्वारा स्थापित टेलीकॉम कंपनी के श्रमिक कल्याण फंड से 252.2 मिलियन टका ( 20 लाख डॉलर) के गबन के आरोप में दोषी ठहराया था। हालांकि वे किसी भी मामले में अभी तक जेल नहीं गए। यूनुस ने किसी भी संलिप्तता से इनकार किया और रॉयटर्स के साथ एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि आरोप बहुत ही कमजोर और मनगढ़ंत थे।
यूनुस पर अभी भी ग्रामीण बैंक की सहायक कंपनी में खाद्य पदार्थों में मिलावट के एक मामले में और निजी उद्यमों के लिए ऋणदाता के रूप में कार्य करने में यूनुस द्वारा शक्ति के दुरुपयोग के आरोप में आरोप लंबित हैं।

मुहम्मद यूनुस पर 2011 में मानहानि का आरोप भी लगाया गया था। उन्होंने एक बयान में कहा था कि ‘बांग्लादेश में सभी राजनेता सत्ता के लिए काम करते हैं’। हालांकि, बाद में उनको जमानत दे दी गई थी। शेख हसीना सरकार में मुहम्मद यूनुस के खिलाफ कुल 174 मामले दर्ज हुए थे।

पर्सनल लाइफ

मुहम्मद यूनुस ने दो शादियां की है। मुहम्मद यूनुस पहली पत्नी वेरा फ़ोरोस्टेंको से एक बेटी है, जिसका नाम है मोनिका यूनुस। मोनिका न्यूयॉर्क शहर की रहने वाली एक ओपेरा सिंगर हैं।

मुहम्मद यूनुस ने बाद में अपनी दूसरी पत्नी अफरोजी से शादी की, जो मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में फिजिस्क की रिसर्चर थीं। बाद में अफरोजी जहांगीरपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बन गईं। उनकी बेटी दीना अफरोज यूनुस का जन्म 1986 में हुआ था।

First Published - August 8, 2024 | 4:54 PM IST

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