रूस, चीन व सऊदी अरब जैसे बड़े तेल उत्पादकों ने प्रस्तावित वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA) में शामिल होने को लेकर सहमति नहीं जताई है, ऐसे में भारत अब जी-20 समूह के बाहर के देशों को इसमें शामिल करने को लेकर सक्रियता से काम कर रहा है। इससे जुड़े कई अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि भारत का कूटनीतिक मिशन तमाम देशों तक पहुंच रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 और 10 सितंबर को होने वाले जी-20 के नेताओं के सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे और कवायद की जा रही है कि इसमें बड़ी संख्या में उपस्थिति रहे।
भारत ने जी-20 के ऊर्जा मंत्रियों की गोवा में हुई बैठक के दौरान इस मसले पर अलग से 22 जुलाई को वैश्विक सम्मेलन किया था। बातचीत के बाद घोषणा की गई थी कि 19 देशों ने इस गठजोड़ की पहल करने वाले सदस्य के रूप में शामिल होने में रुचि दिखाई है, जिनके नाम का खुलासा नहीं किया गया था।
बहरहाल सम्मेलन में जिन 7 देशों के ऊर्जा मंत्री शामिल हुए थे, उन्होंने एकमत होकर गठबंधन बनाने को समर्थन दिया था, जो जी-20 के सदस्य नहीं हैं।
इन देशों में बांग्लादेश, केन्या, मॉरिशस, पराग्वे, सेशेल्स, यूएई और युगांडा शामिल हैं। एक अधिकारी ने कहा, ‘जीबीए में शामिल होने के लिए और देशों को आमंत्रित किया गया है। बड़ी संख्या में देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। हमें अल्प विकसित देशों से भी प्रतिक्रिया मिली है। जब गठजोड़ बनेगा और नीतिगत लक्ष्य तय किए जाएंगे तो इन सभी विचारों को शामिल किया जाएगा।’
निकट पड़ोसी देशों के अलावा अफ्रीकी देशों की लंबी सूची है और लैटिन अमेरिकी देशो से भी समर्थन मिलने की उम्मीद है, जिसमें अमेरिका का सहयोग भी अहम है, जिसने जीबीए को अपना समर्थन दिया है। शांघाई सहयोग समझौता समूह के मध्य एशियाई देशों से भी भारत समर्थन की उम्मीद कर रहा है, जिन्होंने हाल ही में उभरती ईंधन तकनीक, ऊर्जा मॉडलिंग और पारेषण लक्ष्यों में आपसी सहयोग का फैसला किया है।
लेकिन जी-20 समूह में रूस और सऊदी अरब अब तक गठजोड़ के पक्ष में पूरी तरह से नहीं आए हैं। उन्हें डर है कि यह गठजोड़ जीवाश्म ईंधन के खिलाफ माहौल पैदा करेगा, जो पहले से ही बन रहा है।
रूस और सऊदी अरब दोनों के बजट में कच्चे तेल की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है और वे परंपरागत हाइड्रोकार्बन में निवेश कर रहे हैं। अधिकारी ने कहा कि चीन ने इस प्रस्ताव को लेकर थोड़ी सी रुचि दिखाई है।
इस गठजोड़ में चीन को शामिल होने के लिए मनाने में भारत कुछ ज्यादा कर पाने में सक्षम नहीं है, क्योंकि दोनों देशों के बीच प्रमुख बहुपक्षीय पहलों को लेकर प्रतिस्पर्धा है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक चीन भी जैव ईंधन और कार्बन घटाने की नीति के साथ ईधन पर्याप्तता योजना पर जोर दे रहा है, जैसे भारत एथनॉल पर जोर दे रहा है।
बहरहाल पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि रूस और सऊदी अरब जैसे साझेदारों को विश्वास में लिया जा रहा है और उनसे कहा गया है कि जीबीए मौजूदा क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगा और बायोएनर्जी, बायोइकनॉमी और ऊर्जा बदलाव के क्षेत्र में और व्यापक रूप से काम करेगा। इसमें क्लीन एनर्जी मिनिस्टरियल बायोफ्यूटर प्लेटफॉर्म, द मिशन नोवेशन बायोएनर्जी इनीशिएटिव और ग्लोबल बायोएनर्जी पार्टनरशिप (GBEP) शामिल हैं।
वहीं अन्य अधिकारियों ने इस गठजोड़ में शामिल न होने वाले देशों के वास्तविक असर को मामूली करार दिया है। नीति आयोग के एक अधिकारी ने कहा, ‘वैश्विक एथनॉल उत्पादन में अमेरिका, ब्राजील और भारत की कुल हिस्सेदारी 85 प्रतिशत है। अमेरिका की 55 प्रतिशत, ब्राजील की 27 प्रतिशत और भारत की 3 प्रतिशत हिस्सेदारी है। भारत की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। इस तरह के गठजोड़ का वैश्विक असर यह है कि सभी प्रमुख हिस्सेदार पहले से तैयार हैं।’ अमेरिका, ब्राजील, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात और श्रीलंका ने आधिकारिक रूप से इसमें शामिल होने की तैयारी शुरू कर दी है।
एथनॉल पर नजर
गठबंधन का लक्ष्य वैश्विक स्तर पर राष्ट्रीय जैव ईंधन कार्यक्रम के लिए तकनीकी सुविधा देने के लिए ठोस नीति विकसित करना, इसका बाजार मजबूत करना और वैश्विक जैव ईंधन व्यापार की सुविधा विकसित करना है।
भारत विश्व का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक और उपभोक्ता है और चीनी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत के चीनी उद्योग को मांग आपूर्ति के अंतर चक्रीय मसले, कम राशि की पुनर्प्राप्ति और बर्बादी जैसे संकट से जूझना पड़ता है।
ऐसे मे भारत मे गन्ना किसानो की आजीविका हर चीनी विपणन सत्र में अधर में रहती है। सरकार इस संकट से निपटने के लिए गन्ने की आपूर्ति एथनॉल उत्पादन में बढ़ा रही है। भारत का जोर है कि परिवहन के काम आने वाले पेट्रोल में एथनॉल का हिस्सा बढ़ाया जाए।
नीति आयोग का मानना है कि वैश्विक गठबंधन बनने से वैश्विक सहयोग व्यवस्था बनेगी और इससे वैश्विक ईंधन बास्केट में जैव ईंधन की भूमिका बढ़ेगी।