ऑटो निर्माता कंपनी टाटा की ओर से अमेरिका के प्रीमियम कार ब्रैंड जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण किए जाने से भारत में तो खुशी की लहर है, पर कोई व्यक्ति ऐसा भी है जिसके सपने चूर-चूर हो गए हैं।
फोर्ड मोटर्स कॉरपोरेशन ने अपने काफिले से इन दोनों ब्रांडों को तो निकाल दिया है, पर कंपनी (फोर्ड) के संस्थापक हेनरी फोर्ड 2 के सपने बिखर गए हैं। हैंक दी डयूस के नाम से मशहूर हेनरी फोर्ड को जगुआर से काफी लगाव था और वह कभी भी इस कंपनी को खुद से दूर नहीं करना चाहते थे।
हेनरी फोर्ड 1979 में फोर्ड से सेवानिवृत्त हो गए थे पर 1987 में अपनी मौत के पहले तक उन्होंने कंपनी के कामकाज पर लगातार नजर रखी और जहां जरूरत पड़ी खुद के सुझाव भी देते रहे। सेवानिवृत्ति के दो वर्ष बाद ही उनकी कंपनी ने उनकी चाहत को जगुआर का अधिग्रहण कर पूरा कर दिया क्योंकि कंपनी को डर था कि अगर वह ऐसा नहीं करती है तो प्रतिद्वंद्वी कंपनी जनरल मोटर्स कॉरपोरेशन जगुआर के कुछ हिस्सों को खरद लेगी।
हालांकि, जगुआर के अधिग्रहण को रोक पाना इसलिए भी मुश्किल था क्योंकि फोर्ड को ऑटो कारोबार में नुकसान हो रहा था और ऐसे में किसी लग्जरी बैंड को रख पाना उसके लिए आसान नहीं था। भारत के टाटा मोटर्स लिमिटेड ने बुधवार को जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब डॉलर में खरीद लिया है। दिलचस्प है कि यह कीमत उस लागत के आधे से भी कम है जिसे चुकाकर फोर्ड ने इन दोनों ब्रांडों को आज से काफी साल पहले खरीदा था।
कनेक्टिकट में ग्रीनविच की एक ऑटो विश्लेषक मारयान केलर ने कहा, ”यह ब्रांड फोर्ड हेनरी का एक सपना था क्योंकि उन्हें यूरोपीय प्रीमियम ब्रांड से काफी लगाव था।” हालांकि, जगुआर के अधिग्रहण के कुछ समय तक तो फोर्ड को यह फायदे का सौदा लगता था। यही कारण है कि कंपनी ने ब्रिटेन में कार के उत्पादन संयंत्रों में लगातार बढ़ोतरी के लिए भारी निवेश किया था।
1990 और उसके आस पास के कुछ वर्षों में कंपनी का कारोबार भी काफी बेहतर रहा था। फोर्ड ने काफी कोशिश की थी कि जगुआर की लग्जरी पहचान को थोड़ा कम करते हुए इसे आम लोगों के आकर्षण के लायक भी बनाया जाए। कंपनी चाहती थी कि दुनिया भर में इसकी बिक्री को बढ़ाकर दो लाख तक किया जाए।
विश्लेषक केलर कहते हैं, ”यह सिर्फ एक लजरी कार नहीं है। शायद लोग ये भूल गए थे कि लजरी कार को संजोए रखने और उसके शोध और विकास में कितना समय लगता है। समस्याएं कुछ और भी थीं जैसे गुणवक्ता की समस्या, मजदूरों की समस्या। इन सबसे उबर पाने में उन्हें काफी मुश्किलें आईं, या यूं कहें कि फोर्ड कभी इन समस्याओं का हल निकाल ही नहीं सकी।”
फोर्ड के जगुआर के प्रति लगाव को इसी से समझा जा सकता है कि कंपनी ने इसे प्रमोट करने के लिए फॉमूर्ला वन रेसिंग में एक टीम को खासकर इस ब्रांड के लिए ही तैयार किया था। पर 2002 से ही जगुआर फोर्ड के लिए मुश्किलें पैदा करने लगी। इस वर्ष पेरिस में एक संवादाता सम्मेलन में कंपनी के अधिकारी स्कील ने अनुमान व्यक्त किया था कि जगुआर को 50 करोड़ डॉलर का सालाना नुकसान हो सकता है।
हालांकि बाद में यह जानकारी नहीं दी गई कि यह आंकड़ा विशुद्ध रूप से कितना रहा। उसके बाद जगुआर की लिए हालात कभी भी अच्छे नहीं रहे। गत वर्ष कंपनी की कारों की बिक्री महज 60,485 रही थी जो कि वर्ष 2002 में 1,30,334 थी, इसे से कंपनी के प्रदर्शन का अंदाजा लगा सकते हैं।