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BRICS में मतभेद रहेगा बरकरार!

BRICS देशों के बीच क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, साझा मुद्रा, मुक्त व्यापार समझौते पर नहीं बनी है सहमति

Last Updated- August 22, 2023 | 10:19 PM IST
Differences will remain intact in BRICS!

वर्ष 2016 में ब्रिक्स की अध्यक्षता के दौरान भारत ने इस समूह के मार्गदर्शन में एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव का मकसद तीन वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के प्रभुत्व वाली मौजूदा क्रेडिट रेटिंग प्रणाली को चुनौती देने से जुड़ा था। भारत की राय यह है कि ये एजेंसियां विकासशील देशों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया रखती हैं।

एक्जिम बैंक ने इसके लिए एक अवधारणा पत्र तैयार किया और क्रिसिल ने एक अध्ययन किया। लेकिन इसको लेकर कोई आम सहमति नहीं बन सकी क्योंकि चीन ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि सरकार के समर्थन वाली क्रेडिट रेटिंग एजेंसी की कोई विश्वसनीयता नहीं होगी और ब्रिक्स को इस तरह कदम नहीं उठाने चाहिए। इसके बाद से ही इस पर कोई विचार नहीं किया गया।

चीन ने वर्ष 2016 के दौरान ही पांच सदस्य देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते की जोरदार वकालत की थी ताकि शुल्क और गैर-शुल्क बाधाओं को दूर करते हुए, तुलनात्मक लाभ को बढ़ावा दिया जा सके और सदस्य देशों के बीच व्यापार तथा निवेश उदारीकरण को आगे बढ़ाया जा सके। भारत ने इस तरह के व्यापार करार का समर्थन नहीं किया और विभिन्न देशों के बीच गैर-शुल्क बाधाओं को कम करने के लिए सीमा शुल्क में बेहतर सहयोग के लिए एक समझौता किया। हालांकि अब दोनों प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

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ब्रिक शब्द का इस्तेमाल पहली बार 2001 में गोल्डमैन सैक्स ने अपने ‘दि वर्ल्ड नीड्स बेटर इकनॉमिक ब्रिक्स’ शीर्षक नाम के ग्लोबल इकनॉमिक्स पेपर में किया था जिसमें कहा गया था कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएं व्यक्तिगत तौर पर और सामूहिक रूप से अर्थव्यवस्था के लिहाज से बेहतर स्थान पर अपना दबदबा कायम करेंगी और अगले 50 वर्षों में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होंगी।

पहला ब्रिक शिखर सम्मेलन 16 जून, 2009 को रूस के येकातेरिनबर्ग में आयोजित किया गया था। बाद में दक्षिण अफ्रीका को वर्ष 2010 में इस समूह में शामिल किया गया जिससे इसका नाम ब्रिक्स हो गया। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका ने 14 अप्रैल, 2011 को चीन के सान्या में तीसरे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया।

ब्रिक्स में पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाएं एक मंच पर आती हैं जिसमें दुनिया की 42 प्रतिशत आबादी शामिल है और यह वैश्विक स्तर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का एक-चौथाई हिस्सा है और विश्व निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है।

दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में मंगलवार को जोहानिसबर्ग में शुरू हो रहे 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स का मुख्य एजेंडा समूह के सदस्यों के विस्तार से जुड़ा मुद्दा है। सऊदी अरब, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और अर्जेंटीना ब्रिक्स समूह में शामिल होने के लिए शीर्ष दावेदारों के तौर पर उभरे हैं।

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने सोमवार को कहा, ‘विस्तारित ब्रिक्स विभिन्न राजनीतिक प्रणाली वाले देशों के विविधता से भरे समूह का प्रतिनिधित्व करेगा जो संतुलित वैश्विक व्यवस्था की अधिक साझेदारी में दिलचस्पी लेते हैं।’

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा कि ब्रिक्स के सदस्यों के विस्तार के मुद्दे पर भारत का इरादा बेहद सकारात्मक है और इसकी लेकर खुली सोच है। उन्होंने कहा, ‘ब्रिक्स के साथ जुड़ने के लिए कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई है।

आप जानते हैं कि ब्रिक्स आम सहमति के तौर-तरीकों और सिद्धांत पर काम करता है और सभी ब्रिक्स देशों को इस बात को लेकर पूरी सहमति बनानी होगी कि ब्रिक्स का विस्तार कैसे किया जाना चाहिए। इसके अलावा इस तरह के विस्तार के मार्गदर्शक सिद्धांत और मानदंड क्या होने चाहिए, इस पर भी विचार करना होगा। ब्रिक्स समूह में विभिन्न देशों का नेतृत्व कर रहे शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं के बीच इस वक्त यही चर्चा का विषय है।

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हालांकि भारत ने ब्रिक्स के विस्तार को लेकर बेहद अनिच्छा से सहमति जताई है और इसने एक आम ब्रिक्स मुद्रा के चीन के प्रस्ताव के खिलाफ सफलतापूर्वक पीछे छोड़ दिया है। भारत के ब्रिक्स शेरपा दम्मू रवि ने सोमवार को कहा कि अगर ब्रिक्स देश अपनी राष्ट्रीय मुद्रा में अधिक व्यापार करने में सक्षम होते हैं तब यह एक आम मुद्रा के निर्माण की दिशा में पहला कदम होगा।

उन्होंने कहा, ‘यह एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य है जिसे हमें वहां रखना चाहिए। लेकिन पहले हमें अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं में प्रत्यक्ष और व्यावहारिक रूप से व्यापार शुरू करना चाहिए। भारत पहले ही 18 देशों के साथ ऐसा कर चुका है और हम इस प्रणाली के माध्यम से व्यापार बढ़ा रहे हैं।’

हालांकि मौजूदा ब्रिक्स समूह, न्यू डेवलपमेंट बैंक को छोड़कर कोई ठोस आर्थिक नतीजे देने में सक्षम नहीं है, ऐसे में अर्थशास्त्री विश्वजित धर का मानना है कि विकासशील देश के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह की आवश्यकता अब भी है। उन्होंने कहा, ‘केवल ब्रिक्स का विस्तार ही अहम नहीं है।

महत्त्वपूर्ण यह भी है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के ये समूह, विकासशील देशों के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए जलवायु परिवर्तन, बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों में सुधार, विदेशी ऋण, विश्व व्यापार संगठन में सुधार जैसे मुद्दों पर एक साथ आ सकते हैं या नहीं और एक साझा रुख अपना सकते हैं या नहीं।’

ब्रिक्स समूह महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यह विकासशील देशों की आवाज बनता है या नहीं या तालमेल वाले एजेंडे के अभाव में मतभेद वाला समूह बना रहेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

First Published - August 22, 2023 | 10:19 PM IST

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