भारत और यूनाइटिड किंगडम (UK) व्यापार वार्ता पर आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दोनों पक्षों को प्रस्तावित निवेश समझौते पर पहुंचने के लिए मतभेद वाले मुद्दों को हल करना होगा। भारत के द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) के मॉडल में ‘स्थानीय उपचार’ को लेकर यूके असहज है। भारत बीआईटी को सात साल पहले मंजूर कर चुका है।
इस मामले के जानकार लोगों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस मामले पर भारत का रुख स्पष्ट है। भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है, ऐसे में कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का रुख करने से पहले सभी कानूनी विकल्पों को तलाशना चाहिए।
जानकारी देने वालों में से एक व्यक्ति ने बताया, ‘इस मुद्दे पर भारत का रुख बातचीत करने का नहीं है।’ हालांकि इस बारे में यूके का मानना है कि इस उपबंध को लागू करने के कारण विवादों को हल करने की प्रक्रिया में समय लगेगा।
मामले के जानकार व्यक्ति ने बताया कि इस उपबंध में संशोधन करने के लिए वाणिज्य विभाग और वित्त मंत्रालय ने बातचीत की थी लेकिन वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके थे। अभी नई दिल्ली और लंदन एक अलग समझौते (द्विपक्षीय निवेश संधि) के तहत निवेश संधि पर बातचीत कर रहे हैं। यह व्यापार समझौते की तरह लागू होगी। वाणिज्य और उद्योग मंत्री के दो दिवसीय दौरे (10-11 जुलाई) के दौरान दोनों देशों ने व्यापार समझौते की प्रगति की समीक्षा की।
भारत ने 2016 में बीआईटी का नया मॉडल अपनाया था। इससे बीआईटी निरस्त हो गया था। इसके बाद लंदन निवेश समझौते के लिए उत्सुक है। बीआईटी भारत में विदेशी निवेशकों और विदेश में भारतीय निवेशकों को निवेश के संवर्द्धन व सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे समझौतों से निवेश को बढ़ावा मिलता है और विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।
भारत के मॉडल वाली बीआईटी धारा में संशोधन की आवाज उठाने का प्रमुख कारण यह है कि विदेशी निवेशकों के भारत के खिलाफ मध्यस्थता मामले बढ़ रहे हैं। इनमें ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी वोडाफोन और कैयर्स एनर्जी के मामले भी शामिल हैं। उद्योग के जानकारों के अनुसार नए बीआईटी मॉडल में भारत के सुरक्षात्मक उपायों के खिलाफ कई देश आवाज उठा चुके हैं।