विकासशील या आर्थिक रूप से कमजोर देशों के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं क्षमता निर्माण की वकालत करते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर सीमा से बंधा हुआ नहीं है। इसलिए भारत ग्लोबल साउथ यानी विकासशील और ग्लोबल नॉर्थ यानी विकसित देशों के बीच कड़ी का काम कर रहा है।
बीएस मंथन शिखर सम्मेलन के दूसरे संस्करण के दौरान गुरुवार को फायरसाइड चैट में यादव ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विकासशील और विकसित देशों पर समान रूप से पड़ता है। तूफान, वर्षा, सूखा आदि दोनों को ही प्रभावित करते हैं। ऊर्जा बड़ा मुद्दा है। विद्युत ऊर्जा का आविष्कार 300-400 वर्ष पहले हुआ था और उत्सर्जन में विकसित देशों का योगदान बहुत ज्यादा है। इसे कम करने के लिए सभी देशों को नेट जीरो लक्ष्य को हासिल करना होगा। लेकिन ऊर्जा स्रोतों तक प्रत्येक देश की पहुंच होनी चाहिए, क्योंकि सभी सम्मान से जीने का हक है। उन्नत प्रौद्योगिकी हासिल करने के लिए देशों को दो चीजों की सख्त जरूरत है- एक, प्रौद्योगिकी के स्रोत एवं दूसरे, इन प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के लिए वित्तीय संसाधन।’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे देश जिनका उत्सर्जन में ऐतिहासिक रूप से अधिक योगदान रहा है, उन्हें ही इस अंतर को पाटना होगा। विकासशील या कमजोर देशों की आवाज के रूप में भारत का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए विकासशील देशों को वित्तीय सहायता और प्रौद्योगिकी सहयोग की सख्त जरूरत है। दूसरे हमें इस दिशा में काम करने के लिए ‘जलवायु कार्यान्वयन मंच’ बनाने की आवश्यकता भी है।’
केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा, ‘भारत विकासशील देशों के लिए न केवल वित्तीय सहायता और प्रौद्योगिकी सहयोग चाहता है बल्कि एक ठोस जलवायु कार्यान्वयन कार्यक्रम शुरू करने का भी समर्थन करता है जिसमें क्षमता निर्माण, ज्ञान आदान-प्रदान, सबसे अच्छे अनुभव के साथ तरक्की जैसे कारक शामिल हों। भारत इसी को लेकर ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ को जोड़ने का काम कर रहा है।’
विशेषकर विकासशील देशों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यादव ने कहा, ‘प्रत्येक देश की अपनी अलग सामाजिक आर्थिक स्थिति होती है। जब हम अंतरराष्ट्रीय मंच पर वायु परिवर्तन के बारे में बात कर रहे हैं तो यह जरूरी है कि सभी देशों की आवाज सुनी जाए और इस पर आम सहमति भी बने। ‘
एलडीसी, एलएमडीसी, अफ्रीकी, अरब और अंब्रैला जैसे अलग-अलग अनेक समूह हैं। पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलनों में सर्वसम्मति से पेरिस समझौते, हानि और क्षति निधि, वैश्विक स्टॉकटेक और सीबीडीआर सिद्धांत आदि सामने आए हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘भारत ज्ञान साझा करने के लिए प्रतिबद्ध है। वह हमेशा जलवायु परिवर्तन समाधान योजनाओं का हिस्सा बनना चाहता है।’ भारत ने तापमान परिवर्तन से निपटने के लिए कई प्रयास किए हैं और उसने अपनी उत्सर्जन तीव्रता में 2005 के स्तरों के मुकाबले 33 प्रतिशत तक की कमी की है, जो इसके प्रारंभिक लक्ष्य से काफी अधिक है, और 2021 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन क्षमता की अपनी भागीदारी को 45 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। यह उसके इसके 2030 के लक्ष्य से काफी आगे है।
इसके अलावा, देश अपनी इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) पहलों के जरिये भी तापमान परिवर्तन की समस्या का मुकाबला कर रहा है। भारत वर्ष 2030 तक 30 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन बिक्री का लक्ष्य हासिल करने के लिए ‘ईवी30ऐट30’ की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इससे स्वच्छ परिवहन विकल्पों को बढ़ावा देकर उत्सर्जन में कमी लाने में योगदान देने तथा ईवी इस्तेमाल में तेजी आने का संकेत मिलता है।
भारत ने फ्रांस के सहयोग से इंटरनैशनल सोलर अलायंस की स्थापना की, जिसका मुख्यालय गुरुग्राम में है तथा 137 देश इसके सदस्य हैं। ज्ञान साझा करना, क्षमता निर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा इसके कार्यक्रम के प्रमुख अंग हैं। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं को ध्यान में रखते हुए भारत और ब्रिटेन ने सीडीआरआई की शुरुआत की।