Vitafoods India 2024: कोविड महामारी के समय में सबसे ज्यादा तेज गति से बढ़ने वाली न्यूट्रास्यूटिकल इंडस्ट्री (आहार अनुपूरक उद्योग) का कारोबार लगातार बढ़ रहा है। सेहत के प्रति बढ़ती जागरुकता ने इस क्षेत्र के उद्योग को बड़ा आकार दिया तो बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण इनकी कीमतों में भारी गिरावट और गुणवत्ता में सुधार आने का दावा किया जा रहा है। उद्योग समूह अब इस कारोबार को संगठित करने के साथ विदेशी उत्पादों को कड़ी टक्कर भी दे रहा है। बढ़ती मांग के कारण अगले दो-तीन सालों में न्यूट्रास्यूटिकल का कारोबार 100 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।
भारत में लगातार बढ़ते न्यूट्रास्युटिकल उद्योग को मजबूत करने के लिए मुंबई के जियो कन्वेंशन सेंटर में तीन दिवसीय विटाफूड्स इंडिया प्रदर्शनी की आज से शुरुआत की गई। जिसमें घरेलू कंपनियों के साथ 20 देशों की 100 से अधिक कंपनियां शामिल हुई है।
वीटाफूड्स के आयोजक इनफॉर्मा मार्केट्स के प्रबंध निदेशक योगेश मुद्रास ने कहा कि महामारी के समय भारतीय न्यूट्रास्यूटिकल इंडस्ट्री ने 25 फीसदी का सालाना विकास दर्ज किया था। भारत में डाइट सप्लिमेंट का मार्केट 2020 मे 20 लाख डॉलर से बढ़कर 2026 में 100 लाख डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। यह साल दर साल प्रभावशाली 22 फीसदी के विकास का संकेत देता है।
प्रतिरक्षा समारोह को बढ़ाना और बीमारी को रोकना वर्तमान समय में महत्वपूर्ण प्राथमिकताएं बन गई हैं। कृषि संपन्न होने के कारण भारत न्यूट्रास्यूटिकल्स और कार्यात्मक खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की प्रचुर मात्रा में आपूर्ति करता है। भारत के न्यूट्रास्युटिकल क्षेत्र में 2030 तक सालाना 11.4 फीसदी की अनुमानित वृद्धि आगे के विकास की अपार संभावनाओं को रेखांकित करता है।
महाराष्ट्र के खाद्य व औषधि प्रशासन मंत्री धर्मरावबाबा आत्राम ने कहा कि महाराष्ट्र में न्यूट्रास्यूटिकल इंडस्ट्री काफी मजबूत है उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार सभी तरह की मदद करती है। खाने में पर्याप्त मात्रा में विटामिन हो ताकि खाना सेहत मंद हो, इसके साथ साफ सफाई पर भी सरकार को पूरा ध्यान है।
इसीलिए हमने खास अभियान चलाया है। इसके साथ ही लोगों को भ्रमित करने वाले विज्ञापनों एवं प्रचार से बचना चाहिए, इन पर सरकार की पैनी नजर है। दुनियाभर में न्यूट्रास्यूटिकल उत्पादों के निर्यातकों के बीच भारत को प्रमुख स्थान दिलाने का प्रयास केन्द्र सरकार कर रही है। भारत को न्यूट्रास्यूटिकल और इससे जुड़े हुए उत्पादों के निर्यात में पांच प्रमुख देशों में शामिल करना है जिसमें महाराष्ट्र की अहम भूमिका होगी। वीटाफूड्स इंडिया जैसी प्रदर्शनियां इसमें मददगार साबित होगी।
हेल्थ फूड्स एंड डायटरी सप्लीमेंट्स एसोसिएशन (HADSA) के सचिव डॉक्टर वैभव कुलकर्णी कहते हैं कि कोविड के पहले तक शायद ही कोई डॉक्टर डायटरी सप्लीमेंट्स के बारे में लिखता था, भारतीय बाजार में जो उत्पाद थे वह ज्यादात्तर विदेशी कंपनियों के होते थे लेकिन कोविड में इनकी मांग तेजी से बढ़ी जिसने इसे एक इंडस्ट्री का रुप दे दिया।
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पाउडर, लिक्वड और कैप्सूल के लिए अलग अलग नियम है। नियमों में स्पष्टता न होने के कारण कारोबारी उलझन में आ जाते हैं हालांकि अच्छी बात यह है कि सरकार की तरफ से लगातार सुधार किये जा रहे हैं। उद्योग नया है इसीलिए नियमों में अस्पष्टता है लेकिन आने वाले कुछ दिनों में यह सही हो जाएगी। कुलकर्णी कहते हैं कि इस क्षेत्र में भारतीय कंपनियों ने अपना दबदबा बनाया तो विदेशी उत्पादों के दाम जमीन पर आ गए। चार साल पहले जिस सप्लीमेंट्स के एक डिब्बे की कीमत 6500 रुपये होती थी वह आज गिरकर 2500 रुपये में आ गए हैं। यह बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा का ही नतीजा है।
चार साल पहले यानी 2020 में भारतीय न्यूट्रास्यूटिकल इंडस्ट्री का आकार 40 करोड़ डॉलर का था जिसके 2026 तक 100 करोड़ डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। एसोसिएशन ऑफ हर्बल एंड न्यूट्रॉसिटिकल मैनुफ्चरर्स ऑफ इंडिया (AHNMI) के अध्यक्ष संजय मरीवाला कहते हैं कि यह उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, देश में तेजी से उत्पादन बढ़ा है। 100 करोड़ डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करना मुश्किल नहीं है लेकिन सरकार को जरुरत से ज्यादा सख्ती करने से बचना होगा क्योंकि अभी यह उद्योग नया है। भारतीय कंपनियों को फिलहाल अनुसंधान से लेकर उत्पाद निर्माण और व्यावसायीकरण, पैकेजिंग और ब्रांड विकास सब पर ध्यान देने की जरुरत है।