उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार के इस आश्वासन को दर्ज कर लिया कि पांच मई तक ‘वक्फ बाई यूजर’ समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद तथा वक्फ बोर्डों में नियुक्तियां की जाएंगी। ‘वक्फ बाई यूजर’ संपत्ति लंबे समय से धार्मिक या परोपकारी उद्देश्य से इस्तेमाल की जाने वाली संपत्ति होती है, जिसके लिए लिखित दस्तावेज या रजिस्ट्री की जरूरत नहीं होती। न्यायालय के आदेश का कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने स्वागत किया है।
केंद्र सरकार ने ‘वक्फ बाई यूजर’ समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित करने और केंद्रीय वक्फ परिषदों व बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को नियुक्त करने की अनुमति देने वाले प्रावधान पर रोक लगाने के अदालत के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। पीठ ने कहा, ‘सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि प्रतिवादी (भारत सरकार) सात दिन में संक्षिप्त जवाब देना चाहता है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया है कि सुनवाई की अगली तारीख तक (अधिनियम की) धारा 9 और 14 के तहत परिषद व बोर्डों में कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी।’
अदालत ने कहा कि मेहता ने यह भी कहा है कि सुनवाई की अगली तारीख तक, अधिसूचना के माध्यम से पहले से पंजीकृत या घोषित ‘वक्फ बाई यूजर’ समेत वक्फ संपत्तियों की स्थिति से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और उन्हें गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों के पीठ से आग्रह किया कि संसद द्वारा ‘उचित विचार-विमर्श के साथ’ पारित कानून पर सरकार का पक्ष सुने बिना रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। इसके बाद पीठ ने विवादास्पद वक्फ (संशोधन) अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर प्रारंभिक जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार को एक सप्ताह का समय दिया और मामले की अगली सुनवाई के लिए 5 मई की तारीख तय कर दी।
उच्चतम न्यायालय के आदेश का कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने स्वागत किया और इसे संविधान की जीत बताया। मामले में याचियों के वकीलों में से एक कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पार्टी वक्फ (संशोधन) अधिनियम के उन प्रावधानों पर सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम स्थगन आदेश का स्वागत करती है, जो संविधान के अनुच्छेद 25 और विशेष रूप से अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने कहा, ‘आप अनुच्छेद 26 को नहीं काट सकते और इसे प्रशासनिक दक्षता नहीं कह सकते।’
सिंघवी ने कहा कि अदालत ने अधिनियम के प्रावधान 9 और 14 पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिनके अनुसार केंद्रीय वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से 12 और वक्फ बोर्डों के 11 सदस्यों में से 7 गैर-मुस्लिम हो सकते हैं। उन्होंने सवाल किया, ‘क्या आप किसी ऐसे हिंदू मंदिर बोर्ड की कल्पना कर सकते हैं जिसमें गैर-हिंदू सदस्य अधिक हों या सिख गुरुद्वारा समिति में गैर-सिखों का बहुमत हो सकता है? उन्होंने कहा, कांग्रेस सर्वोच्च अदालत के फैसले का स्वागत करती है। सिंघवी ने कहा कि अधिनियम न केवल कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण है, बल्कि नैतिक रूप से भी खोखला है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस एक समुदाय या धर्म का बचाव नहीं कर रही है, बल्कि अनुच्छेद 26 के संवैधानिक सिद्धांत का बचाव कर रही है, जिसे बहुसंख्यक सुविधा की वेदी पर बलिदान नहीं किया जा सकता।
उच्चतम न्यायालय के फैसले पर माकपा केरल राज्य सचिव एमवी गोविंदन ने कहा कि यह आदेश वक्फ अधिनियम में संशोधन करने के केंद्र के धर्मनिरपेक्षता विरोधी कदम पर चोट है। कोच्चि में कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह कांग्रेस, लोकतंत्र और संविधान की जीत है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के महासचिव पीके कुन्हालिकुट्टी ने कहा कि शीर्ष अदालत ने एक अंतरिम उपाय के रूप में अधिनियम के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन को रोक लगाकर बता दिया है कि मामले की सुनवाई निष्पक्ष तरीके से की जा रही है। उन्होंने कहा कि यह देखना होगा कि अंतिम निर्णय क्या होगा। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, द्रमुक, कर्नाटक राज्य बोर्ड ऑफ औकाफ के पूर्व अध्यक्ष अनवर बाशा के वकील तारिक अहमद, कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद सहित लगभग 72 याचिकाएं वक्फ कानून के खिलाफ दायर की गई थीं।