कोकुयो कैमलिन के मानद अध्यक्ष सुभाष दांडेकर का सोमवार को निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। दांडेकर को देश के कलाकारों और छात्रों के जीवन में ऐसे वक्त में रंग लाने के लिए जाना जाता है जब देश रंगों का आयात किया करता था। उन्होंने अपने पिता दिगंबर दांडेकर से कैमलिन का कार्यभार संभाला था जिसकी शुरुआत 1931 में स्याही बनाने वाली कंपनी के तौर हुई थी और बाद में इसने दफ्तरों से जुड़े स्टेशनरी का सामान बेचना शुरू कर दिया था।
दांडेकर के कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने कारोबार का विस्तार करने के साथ ही छात्रों और कलाकारों दोनों के लिए रंगों की पेशकश की। दांडेकर के भाई और कंपनी के चेयरमैन दिलीप दांडेकर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘जब उन्होंने 1964 में रंगों के कारोबार की शुरुआत की तब देश में रंग नहीं बनाए जाते थे बल्कि इन रंगों का आयात भारत में किया जाता था।’
अपने भाई का जिक्र करते हुए दांडेकर ने बताया कि उन दिनों कलाकार कैमलिन के रंगों का इस्तेमाल करने को लेकर सहज नहीं थे क्योंकि उन्हें इसकी गुणवत्ता पर संदेह था। लेकिन उनके भाई ने कलाकारों को आश्वस्त किया कि वे कैमलिन के रंगों का इस्तेमाल पेंटिंग में करें और कंपनी उनकी पेंटिंग की गारंटी लेती है कि ये रंग लंबे समय तक बने रहेंगे।
उन्होंने कहा, ‘हमारे उत्पाद की खूबी यह है कि यह सभी उम्र वर्ग के लिए है ताकि ग्राहक हमारे ब्रांड से जुड़ सकें और सुभाष का यही सपना भी था। उन्होंने लेखन सामग्री का भी विस्तार किया।’ मंगलवार को कोकुयो कैमलिन का बाजार पूंजीकरण 1,555.31 करोड़ रुपये था।