सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत रॉय का मुंबई में 14 नवंबर को निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे। रॉय का जीवन किसी फिल्म के उस दिलचस्प किरदार से कम नहीं लगता है जो पहले जमीन से उठकर आसमान की बुलंदियां छूता है और फिर सब नेस्तनाबूद हो जाता है।
रॉय का जन्म बिहार के अररिया जिले में हुआ था। उन्होंने1978 में 30 वर्ष की उम्र में सहारा की नींव रखी थी। लेखक तमाल बंद्योपाध्याय ने 2014 में अपनी पुस्तक ‘सहाराः द अनटोल्ड स्टोरी’ में जिक्र किया था कि किस तरह रॉय ने 2,000 रुपये, एक अनुसेवक, एक सहायक (क्लर्क) और अपने पिता के लैंब्रेटा स्कूटर के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सहारा की शुरुआत की थी।
सहारा उनका पहला उद्यम नहीं था। इससे पहले रॉय ट्रकों पर सामान भेजने और गोपालगंज में राज्य सिंचाई विभाग को पत्थरों की आपूर्ति करने के व्यवसाय में हाथ आजमा चुके थे। फिर वह चांदी की शुद्धता जांचने के व्यवसाय से जुड़े और फिर बिजली के पंखे बेचने के कारोबार में उतरे। पंखे का ब्रांड एयर सहारा रखा गया था और इसी नाम से बाद में उन्होंने अपनी विमानन कंपनी की भी शुरुआत की थी। रॉय ने अपने भाई जयव्रत के नाम पर जय प्रोडक्ट्स नाम से नमकीन बेचने का भी कारोबार शुरू किया था।
अपने पिता सुधीर चंद्र के देहांत के बाद रॉय ने अपनी पत्नी स्वप्ना रॉय के साथ भी कई उद्यम शुरू किए मगर वे सभी सफलता का स्वाद नहीं चख पाए। रॉय ने अपनी पढ़ाई कोलकाता के होली चाइल्ड स्कूल से की थी और उसके बाद वाराणसी में सी एम एंग्लो बंगाली इंटरमीडिएट कॉलेज में नाम लिखाया था।
उसके बाद गोरखपुर कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया। रॉय ने अपनी शुरुआत बहुत छोटे स्तर से की थी। मगर बाद में वह विशालकाय सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक बन गए। सहारा इंडिया परिवार ने ऐंबी वैली सिटी, सहारा मूवीज स्टूडियोज, एयर सहारा एवं फिल्मी जैसे कारोबार भी खड़े किए।
रॉय का साम्राज्य रियल एस्टेट, वित्त, मीडिया, पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्रों तक फैला हुआ था। सहारा इंडिया परिवार ने सहारा इंडिया फाइनैंशियल कॉर्प लिमिटेड की भी शुरुआत की थी। यह अर्द्ध-बैंकिंग उद्यम जमाकर्ताओं से प्रति दिन 1 रुपया भी जमा के रूप में ले लिया करता था। इसके ग्राहकों में छोटे निवेशक जैसे रिक्शा चालक, चाय दुकान चलाने वाले लोग हुआ करते थे।
इन लोगों को उनकी जमा रकम के बदले एक निश्चित रकम दिए जाने का वादा किया जाता था। महज तीन दशकों में ही 2008 तक सहारा इंडिया फाइनैंशियल कॉर्प भारत की सबसे बड़ी गैर-बैंकिंग कंपनी बन गई थी और इसके पास जमा रकम 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। बंद्योपाध्याय अपनी पुस्तक में कहते हैं कि यह रकम कम से कम एक नए निजी बैंक डीसीबी लिमिटेड के जमा आधार की दोगुनी थी।
जब सहारा इंडिया परिवार शिखर पर था तो इसकी कई क्षेत्रों में दमदार मौजूदगी थी। कंपनी के पास लंबा-चौड़ा मीडिया कारोबार भी था। इसकी मीडिया कंपनी सहारा वन मीडिया ऐंड एंटरटेनमेंट तीन हिंदी समाचार चैनल, एक फिल्म चैनल फिल्मी और एक सामान्य मनोरंजन चैनल सहारा वन चलाती थी। कई लोगों को अब भी याद होगा कि एंकर किस तरह लोगों से ‘सहारा प्रणाम’ (सीने पर हाथ रखकर) के साथ खास अंदाज में मुखातिब हुआ करते थे।
सहारा मूवी स्टूडियोज कई बड़ी फिल्मों जैसे ‘वांटेड’, ‘सरकार’, ‘पेज 3’ और ‘कॉर्पोरेट’ के निर्माण से जुड़ी थी। इनमें कई फिल्मों में तो अमिताभ बच्चन और सलमान खान जैसे बड़े अभिनेता थे। वितरण कारोबार में मौजूदगी रखने के साथ ही समूह हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया करता था।
समूह व्यावसायिक विमानन कंपनी एयर सहारा का भी परिचालन करता था। बाद में यह कंपनी जेट एयरवेज को 2006 में 50 करोड़ डॉलर में बेच दी गई। समूह ने महंगी आतिथ्य सेवा क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। न्यूयॉर्क प्लाजा होटल और लंदन का ग्रोवनर हाउस होटल जैसे बड़े नाम इस फेहरिस्त में शामिल थे। यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ।
रॉय के नेतृत्व में सहारा समूह ने 2013 तक भारतीय क्रिकेट टीम का प्रायोजन किया था। वर्ष 2010 में समूह ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की फ्रैंचाइजी पुणे वॉरियर्स 37 करोड़ डॉलर में खरीदी थी। यह किसी भी कंपनी द्वारा लगाई गई अब तक की सबसे बड़ी बोली है।
समूह 2018 तक आईपीएल में मौजूद रहा मगर उसके बाद इसने पुणे वॉरियर्स से निकलने की घोषणा कर दी। समूह ने भारतीय हॉकी टीम का भी प्रायोजन किया था और विजय माल्या की फॉर्मूला वन रेसिंग टीम में भी हिस्सेदारी खरीदी थी।
सहारा समूह का नाम भारत में शान-शौकत का प्रतीक बन गया। लखनऊ में 270 एकड़ क्षेत्र में उनके आलीशान सहारा शहर में भारी भरकम कार्यक्रम आयोजित होते थे। इन कार्यक्रमों में राजनीतिज्ञ, उद्योग जगत के बड़े नाम और फिल्मी दुनिया की हस्तियां शामिल होती रहती थीं।
राय का यह घर 2004 में तब चर्चा में आ गया जब वहां उन्होंने अपने दो पुत्रों का विवाह किया। पूरे देश भर से 10,500 से अधिक अतिथि इस समारोह में शिरकत करने पहुंचे थे। अतिथियों को लाने वाले हवाई जहाज में ठाठ-बाट की कोई कमी नहीं थी और उनमें सोने के बने नैपकिन भी दिए जा रहे थे।
फैशन डिजाइनर रोहित बल और सव्यसाची से लेकर बॉलीवुड के बड़े नाम जैसे बच्चन परिवार तक पहुंचे थे। इस विवाह समारोह की वीडियो रिकॉर्डिंग का जिम्मा बॉलीवुड के नामी फिल्मकार राजकुमार संतोषी ने संभाला था।
कंपनी के लिए वित्तीय परेशानियों में फंसना कोई नई बात नहीं थी क्योंकि 1990 के दशक में ऐसे कई मामले सामने आए थे। मगर सबसे बड़ी दिक्कत 2009 में आई जब समूह की इकाई सहारा फिल्म सिटी ने आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में आवेदन दिया। इस आवेदन में कर से जुड़े कुछ मसलों का जिक्र था जो इसके वैकल्पिक पूर्णतः परिवर्तनीय डिबेंचर (ओएफसीडी) से संबंधित थे।
आवेदन में की गई घोषणाओं के अनुसार समूह की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन (एसआईआरईसीएल) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन (एसएचआईसीएल) ने लाखों निवेशकों से ओएफसीडी के माध्यम से रकम जुटाई थी जिसकी अनुमति कानूनी तौर पर नहीं थी।
यह सेबी अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ था। इसके बाद एक सामान्य जांच शुरू की गई मगर बाद में इसने एक बड़ी छानबीन का रूप ले लिया। छानबीन के बाद जो नतीजे सामने आए उससे स्पष्ट हो गया था कि ऊपर से जो दिख रहा था अंदर वैसा नहीं था। वर्ष 2011 में सेबी ने एसआईआरईसीएल और एसएचआईसीएल के खिलाफ आदेश जारी कर उन्हें 3 करोड़ लोगों को 24,000 करोड़ रुपये लौटाने के निर्देश दिए। उच्चतम न्यायालय ने 2012 में सेबी का आदेश बहाल रखा।
इससे पहले 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने समूह को लोगों से आगे और कोई रकम लेने से रोक दिया था। उस समय इसके पास 20,000 करोड़ रुपये से अधिक जमा रकम थी। जांच और आगे बढ़ी तो सेबी ने सहारा प्राइम सिटी को लोगों से रकम जुटाने से रोक दिया। समूह की रकम का इस्तेमाल महाराष्ट्र में 10,600 एकड़ में ऐंबी वैली विकसित करने पर हो रहा था। देश के कई शहरों में समूह के सहारा सिटी और सहारा ग्रेस नाम से कई टाउनशिप भी थी।
सेबी के कदम पर अपनी प्रतिक्रिया में सहारा समूह ने विज्ञापन प्रकाशित कराए जिनमें सेबी को ‘गैर-जवाबदेह’ तक करार दिया। सेबी की जांच के बाद समूह ने सेबी को 127 ट्रक भेजे जिनमें 3 करोड़ आवेदन पत्र थे। सेबी ने कहा कि समूह के कई निवेशकों का अता-पता नहीं है। यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंच गया।
वर्ष 2014 में उच्चतम न्यायालय ने कंपनी को सारी रकम निवेशकों को 15 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया। रॉय को जेल जाना पड़ा और वह 2016 तक बंद रहे। बाद में उन्हें पैरोल पर रिहा किया गया। इसके बाद फिर वह जेल गए और एक बार फिर पैरोल पर बाहर आए।
समूह की ज्यादातर संपत्तियां आयकर विभाग ने जब्त कर लीं। वर्ष 2018 में सेबी ने एक दूसरा आदेश जारी कर सहारा इंडिया कमर्शियल कॉर्पोरेशन (एसआईसीसीएल) को 15 प्रतिशत ब्याज के साथ निवेशकों के 14,100 करोड़ रुपये लौटाने का आदेश दिया। यह रकम लगभग 2 करोड़ लोगों से 1998 और 2009 के बीच जुटाई गई थी।
2020 में सेबी की याचिका पर सुनवाई के बाद शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अगर समूह ने निवेशकों को ब्याज एवं जुर्माना सहित 62,600 करोड़ रुपये नहीं लौटाए तो वह रॉय का पैरोल रद्द कर देगा। सहारा समूह ने सेबी के पास 15,000 करोड़ रुपये जमा किए थे। यह रकम सहारा के निवेशकों को लौटाई जानी थी।
यह अब भी एक रहस्य है कि इस रकम के लिए दावा करने कुछ ही निवेशक क्यों पहुंचे। 31 मार्च 2023 तक सेबी को 53,687 खातों से संबंधित 19,650 आवेदन मिले थे। वर्ष 2022-23 के लिए सेबी की नवीनतम सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि 43,326 खातों से संबंधित 17,526 आवेदनों पर विचार करने के बाद कुल 138.07 करोड़ रुपये लौटाए गए हैं। इनमें 67.98 करोड़ रुपये का ब्याज भी शामिल है।
वर्ष 2023 में केंद्र सरकार ने सहारा रिफंड पोर्टल शुरू किया जहां जमाकर्ता 45 दिनों के भीतर दावे की रकम प्राप्त कर सकते हैं। अब रॉय के निधन के बाद वित्तीय उल्लंघन के अध्याय का पटाक्षेप हो गया है। कई लोगों ने इसे भारत की सबसे बड़ी फर्जी योजना (पोंजी स्कीम) कहने से भी गुरेज नहीं किया था।
(साथ में समी मोडक)