राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार अपनी पार्टी के सहयोगी दलों की दलीलों को नजरअंदाज करते हुए मंगलवार को पुणे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर नजर आए। उनके इस कदम से 26 दलों वाले विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में बेचैनी बढ़ गई क्योंकि अब इस बात की आशंका बढ़ने लगी है कि इससे विपक्षी दलों की एकता के प्रयासों को एक और झटका लग सकता है। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री को 41वें लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मोदी से पहले पवार ने कहा कि भारत में पहली सर्जिकल स्ट्राइक छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में हुई थी। राकांपा नेता ने कहा, ‘शिवाजी महाराज ने कभी किसी की जमीन नहीं छीनी।’ यदि इस टिप्पणी को मोदी पर कटाक्ष माना जाए क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कथित तौर पर शिवसेना और राकांपा में विभाजन कराया है तब भी मुख्य आकर्षण मोदी और उनके बीच दिख रहा सौहार्दपूर्ण व्यवहार था।
समारोह शुरू होने से पहले दोनों नेताओं को मंच पर एक साथ हंसते-बोलते हुए देखा गया। इस दौरान पवार ने मोदी की पीठ भी थपथपाई। इस मंच पर राकांपा प्रमुख पवार के भतीजे और राज्य के उप मुख्यमंत्री अजित पवार भी मौजूद थे।
इस कार्यक्रम में शरद पवार की उपस्थिति से विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में अनिश्चितता का माहौल बढ़ गया है। एक नेता का कहना है कि 82 वर्षीय पवार अपनी बेटी, लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने के लिए चिंतित हैं। शरद पवार ने मई में पार्टी से सेवानिवृत्ति लेने की घोषणा की थी और पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के अनुरोध पर इसे वापस ले लिया था।
शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र सामना के एक संपादकीय में कहा गया है कि पवार संदेह दूर करने के लिए इस कार्यक्रम को नजरअंदाज कर सकते थे। प्रधानमंत्री द्वारा राकांपा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने और फिर पार्टी में विभाजन की साजिश रचने के बावजूद शरद पवार मोदी का स्वागत कर रहे हैं यह बात लोगों को अच्छी नहीं लगी है।
मराठी दैनिक ने कहा, ‘पवार के लिए इस कार्यक्रम को नजरअंदाज करने और लोगों के बीच उनको लेकर दिख रहे संदेह को दूर करने का यह अच्छा मौका था। इस तरह की कार्रवाई से लोग उनके नेतृत्व और साहस की सराहना करते क्योंकि शरद पवार ही सबसे अच्छे नेता हैं और विपक्षी गठबंधन के ‘अग्रणी नेता’ हैं।
प्रधानमंत्री मोदी इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले 41वें व्यक्ति हैं और उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि उनकी सरकार की पिछले नौ वर्षों की पहचान, भारत को ‘विश्वास की कमी’ वाले देश से ‘विश्वास की अधिकता’ वाले देश तक की यात्रा कराने से जुड़ी है जिसे नीतियों और लोगों की कड़ी मेहनत के रूप में देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आज देश में भरोसे की अधिकता, नीतियों और लोगों की कड़ी मेहनत के रूप में दिख रही है। दुनिया भी भारत में अपना भविष्य देखती है।’
इस कार्यक्रम के बाद, प्रधानमंत्री ने पुणे में 15,000 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करते हुए कर्नाटक और राजस्थान में कांग्रेस सरकारों के चुनावी वादों और नीतियों की आलोचना की। मोदी ने कहा, ‘कर्नाटक सरकार ने स्वीकार किया है कि उसके पास बेंगलूरु में विकास परियोजनाओं के लिए कोई पूंजी नहीं है। यही स्थिति राजस्थान में भी है जहां राज्य बड़े कर्ज में डूबा हुआ है और विकास परियोजनाएं रुकी हुई हैं।’ उन्होंने आरोप लगाया कि कर्नाटक की स्थिति के लिए कांग्रेस के चुनावी वादे जिम्मेदार हैं।
मोदी ने कहा, ‘बेंगलूरु एक वैश्विक निवेशक केंद्र और आईटी हब है लेकिन राज्य सरकार की घोषणा का नकारात्मक प्रभाव बहुत कम समय में वहां देखने को मिल रहे हैं। अगर कोई पार्टी अपने स्वार्थ के लिए राज्य का खजाना खाली कर देती है तो इसका खमियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। हम राजस्थान में भी यही स्थिति देख रहे हैं। वहां भी विकास से जुड़े काम ठप पड़े हैं।’