एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने हाल में अपने पूंजी प्रबंधन में सुधार किया है। इससे ऋण देने की उसकी क्षमता 100 अरब डॉलर बढ़ जाएगी। एडीबी के महाप्रबंध निदेशक जनरल वूचोंग उम ने रुचिका चित्रवंशी से बातचीत में कहा कि उनको इसे दोगुना, तिगुना एवं चार गुना करने और निजी पूंजी जुटाने की जरूरत है।
भारत को दिए जा रहे ऋण में हो रही वृद्धि के बारे में उम ने कहा कि किसी देश को दिए जाने वाले ऋण की मात्रा नीतिगत वार्ता और उसकी क्षमता पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि भारत एक विशाल देश है और ऋण लेने की उसकी क्षमता पर्याप्त है। मगर हमें बैंक ऋण के लायक परियोजनाएं सुनिश्चित करने की जरूरत है। मुख्य अंश:
हम कितना ऋण दे सकते हैं, इसे निर्धारित करने के लिए हमें सुनिश्चित करना होता है कि हम कितना नुकसान झेल सकते हैं। हमारी नजर पूंजीकरण के एक विवेकपूर्ण स्तर पर है। हम कुछ ऐसी व्यवस्था कर पाएं हैं जहां डिफॉल्ट की स्थिति में वसूली की जा सके।
इसके अलावा कुछ बफर पूंजी भी रख सकते हैं ताकि अतिरिक्त ऋण की विशेष जरूरतों को पूरा किया जा सके। इसके लिए हमें कहीं अधिक संसाधन तलाश सकते हैं। हम जो कर सकते हैं उसे दोगुना, तिगुना और चार गुना करने की जरूरत है। इसका मतलब यह हुआ कि हमें अधिक निजी पूंजी जुटाने की जरूरत है।
निजी क्षेत्र में ऐसे तमाम निवेशक हैं जो अच्छी विकास परियोजना में निवेश के अवसर तलाशते हैं। निजी क्षेत्र उन परियोजनाओं में आसानी से निवेश कर सकता है जिनमें एडीबी शामिल है। वे ऋण अथवा इक्विटी निवेशक के रूप में भी जुड़ सकते हैं।
निजी क्षेत्र सही काम करना चाहता है, मगर वह नुकसान भी नहीं चाहता। इसलिए मेजबान देश में नियामकीय ढांचा होना चाहिए ताकि निजी निवेश के लिए जोखिम कम किया जा सके। हम सरकारों की मदद के लिए नीति आधारित ऋण उपलब्ध कराते हैं ताकि क्षमता निर्माण को बढ़ाव मिल सके। हम विकासशील देशों की मदद करते हैं ताकि विकास संबंधी
परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा सके। इसलिए वहां निवेश के लायक तमाम परियोजनाएं हो सकती हैं। हमारे पास कई ऐसे उपाय हैं जो निजी पूंजी के लिए बेहतर गारंटी सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं। हम वाणिज्यिक जोखिम के साथ-साथ राजनीतिक जोखिम के लिए भी गारंटी दे सकते हैं।
हम उन देशों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं जो विभिन्न संस्थाओं से अनुदान वित्त या रियायती ऋण लेने के लिए तैयार हैं। इसके लिए हमारे पास अतिरिक्त उधारी की गुंजाइश है। किसी देश को दिए जाने वाले ऋण की मात्रा उस देश की सरकार के साथ नीतिगत वार्ता और उसकी क्षमता पर निर्भर करेगी।
भारत एक विशाल देश है और ऋण लेने की उसकी क्षमता पर्याप्त है। मगर हमें यह देखना होगा हम यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कर सकते हैं कि वहां बैंक ऋण के लायक पर्याप्त परियोजनाएं मौजूद हैं।
अधिक से अधिक संसाधन जुटाने के अलावा हमने एडीबी में व्यापक पुनर्गठन भी किया है ताकि खुद को कहीं अधिक कुशल बनाया जा सके और लागत बढ़ाए बिना सभी सदस्य देशों को आवश्यक विशेषज्ञता उपलब्ध कराई जा सके।