Project Cheetah: भारत ने पिछले साल 17 सितंबर को नामीबिया से आठ चीतों (पांच मादा और तीन नर) का स्वागत करते हुए ‘प्रोजेक्ट चीता’ की शुरुआत की थी जो 1952 में चीता के विलुप्त घोषित किए जाने के बाद से उसकी आबादी को फिर से बढ़ाने की दिशा में देश की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है।
दक्षिण अफ्रीका से इस साल 18 फरवरी को 12 और चीता (पांच मादा और 7 नर) लाए गए और इस तरह इनकी कुल संख्या 20 हो गई। चीतों की इतनी तादाद पिछले आठ दशकों के दौरान नहीं देखी गई है।
देश की जमीन पर आठ चीतों की पहली खेप ने एक साल का वक्त पूरा कर लिया है, लेकिन उनमें से अब केवल छह ही जिंदा हैं। दो मादा नई जगह पर जिंदा नहीं रह पाईं। इन दो की मौत को छोड़ दें तो नामीबिया के चीते देश के वातावरण में ढल गए हैं।
हालांकि गर्मी और लू के कारण इनके चार शावकों में से तीन की मौत हो गई। न केवल नामीबिया के चीतों को नए क्षेत्र में दिक्कत हुई बल्कि दक्षिण अफ्रीकी चीतों में से भी चार की मौत हो गई। अब तक कुल नौ चीतों की मौत हो चुकी है, जिनमें पांच नामीबिया (दो चीते और तीन शावक) और चार दक्षिण अफ्रीकी चीते थे।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद वरुण गांधी ने भारत की चीता आयात योजना को लेकर चिंता जताई और कहा, ‘विदेशी जानवरों के पीछे भागना बंद करना चाहिए और इसके बजाय हमें अपने देशी वन्यजीवों के कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए। अफ्रीका से चीतों का आयात करना और उनमें से नौ को विदेशी जमीन पर मरने देना न केवल क्रूरता है बल्कि यह एक भयानक लापरवाही को दर्शाता है।
प्रोजेक्ट चीता के प्रमुख एसपी यादव कहते हैं कि इन मौतों के बावजूद सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, ‘अगर हम पिछले साल को सफलता के नजरिये से देखें तो हमने जो पैमाने तय किए थे, उस हिसाब से लक्ष्य हासिल हो गया है।’ उन्होंने कहा कि चीतों के जीवित रहने की दर 50 प्रतिशत से अधिक है।
यादव ने जोर देकर कहा कि इस परियोजना के तहत दूसरे वर्ष में पूरा ध्यान इन जानवरों के प्रजनन पर होगा। उन्होंने कहा, ‘एक बार प्रजनन होने के बाद ही हमें इस बात का अंदाजा लगेगा कि चीते की आबादी देश के अनुरूप खुद को ढाल रही है या नहीं।‘ यादव ने कहा कि परियोजना के अगले चरण के लिए टीम, दक्षिण अफ्रीका से लगभग 12 से 14 चीतों की एक खेप फिर से लाने के प्रयास में है।
इन चीतों को मध्य प्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य और नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में रखा जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि नवंबर-दिसंबर में गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में बाड़ लगाने का काम पूरा हो जाएगा और निरीक्षण के बाद चीतों को वहां लाने का निर्णय लिया जाएगा।’
भारत में चीता को लाने की कार्ययोजना के अनुसार, देश को कम से कम अगले पांच वर्षों तक अफ्रीकी देशों से सालाना 10-12 चीतों का आयात करना होगा। दक्षिण अफ्रीका ने पहले ही कहा है कि भारत को जितने चीतों की जरूरत है, उतने मुहैया करा दिए जाएंगे।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने अगस्त में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आश्वासन देते हुए कहा था, ‘हम चीतों के संरक्षण के लिए भारत की प्रतिबद्धता को देखते हुए और भी अधिक चीते देने के लिए तैयार हैं।’
मेटास्ट्रिंग फाउंडेशन के सीईओ और बायोडायवर्सिटी कोलैबोरेटिव के समन्वयक रवि चेल्लम ने कहा कि लगभग 5,000 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र की सुरक्षा, प्रबंधन और निगरानी की व्यवस्था सुनिश्चित किए जाने के बाद ही दूसरे चीता समूह को लाया जाना चाहिए ताकि उन्हें एक बेहतर माहौल मिल पाए।
एक चीते का क्षेत्र आमतौर पर 300 से 800 वर्ग किलोमीटर के दायरे तक फैला होता है और जब वे इससे लगे क्षेत्रों में बढ़ते हैं तब संघर्ष की स्थिति पैदा होती है। वर्तमान में, कुनो राष्ट्रीय उद्यान केवल 748 वर्ग किलोमीटर के दायरे को कवर करता है। चेल्लम ने जोर देकर कहा कि अपर्याप्त पर्यवेक्षण, विशेषज्ञता और विशेषज्ञों के सहयोग की कमी के कारण इस तरह की मृत्यु दर देखी गई है।
चेल्लम ने चीतों को कैद में रखने के खतरों के बारे में भी आगाह किया। उन्होंने कहा, ‘फिलहाल, 14 चीते और एक शावक सहित सभी जीवित चीता कैद में हैं। कैद की अधिक अवधि होने से इन चीतों की सेहत पर असर पड़ सकता है और बाद में इन्हें जंगल में छोड़ने पर भी मुश्किल होगी।’ आने वाले वर्ष में, सरकार का इरादा एक चीता सफारी, एक चीता इंटरप्रेटेशन सेंटर, एक पुस्तकालय, एक अनुसंधान केंद्र और कौशल वृद्धि के साथ क्षमता निर्माण के लिए एक केंद्र बनाने का है।
पहले साल के अनुभवों को देखते हुए यादव ने भविष्य में चीतों के आयात के लिए चयन में अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता पर जोर देने की बात कही है। उन्होंने कहा कि उन जानवरों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिनकी खाल सर्दी के मौसम के अनुकूल ज्यादा मोटी न हो। पहली खेप में आए, अधिकांश चीतों की खाल शीतकालीन मौसम के हिसाब से मोटी थी जो अफ्रीका की सर्दियों के अनुकूल थे लेकिन भारत के अनुकूल नहीं थे। इनकी वजह से और भारत की उच्च आर्द्रता और तापमान वाले माहौल के कारण उन्हें खुजली होने लगी।
खुजली होने पर इन चीतों ने पेड़ों या जमीन पर रगड़कर अपनी गर्दन को खरोंच दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी त्वचा छिल गई और इसकी वजह से उन्हें कई तरह के संक्रमण हो गए। हालांकि चीता संरक्षण निधि (सीसीएफ) के संस्थापक और कार्यकारी निदेशक लॉरी मार्कर काफी आशावान हैं और उन्होंने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा, ‘हम परियोजना के दूसरे वर्ष की शुरुआत कर रहे हैं ऐसे में हमारा पूरा ध्यान चीते के अस्तित्व को जंगल में, भारत में बनाए रखना है।‘