जायडस लाइफसाइंसेज की एक नई मलेरिया-रोधी दवा के दूसरे चरण का क्लिनिकल परीक्षण हो रहा है। यह दवा प्रतिरोधी स्ट्रेन सहित सभी मौजूदा क्लिनिकल स्ट्रेन से बचाव में सक्रियता से कारगर रहेगी।
जायडस लाइफसाइंसेज ने कहा कि जेडवाई-19489 मलेरिया से लड़ने के लिए संभावित रूप से इसकी एक खुराक ली जा सकेगी। यह दवा अब भारत में दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल से गुजर रही है।
कंपनी ने कहा कि पहले चरण के क्लीनिकल परीक्षण के दौरान एक ही गोली में मलेरिया के इलाज की क्षमता का प्रदर्शन किया गया है। इसमें कहा गया, ‘एक अलग मलेरिया से जुड़ी चुनौती के परीक्षण में जेडवाई-19489 की एक खुराक लेने के बाद मजबूत मलेरिया रोधी गतिविधि दिखी।’
इस दवा को मेडिसन्स फॉर मलेरिया वेंचर (एमएमवी) के सहयोग से तैयार किया गया है। यह दवा प्रतिरोधी स्ट्रेन सहित पी फाल्सीपेरम और पी विवैक्स के सभी मौजूदा क्लिनिकल स्ट्रेन से बचाव के लिए एक नई एंटीमलेरियल दवा है। मलेरिया से बचाव करने के वैश्विक अभियान में आर्टेमिसिनिन प्रतिरोध को एक बढ़ती चुनौती के रूप में देखा जाता है।
जेडवाई19489 को पी फाल्सीपेरम और पी विवैक्स मलेरिया के इलाज के लिए मौजूदा एंटीमलेरियल दवाओं का एक प्रभावी विकल्प बनाने के लिए तैयार किया जा रहा है, क्योंकि आर्टेमिसिनिन-आधारित संयोजन उपचार (एसीटी) प्रतिरोध से जुड़े खतरे से जूझ रहा है।
जायडस का कहना है कि उसे मलेरिया का एक नया इलाज मिलने की उम्मीद है जिससे भारत में लाखों लोग प्रभावित होते हैं। जायडस ग्रुप के चेयरमैन पंकज आर पटेल ने कहा, ‘मलेरिया के तेजी से बदलते स्वरूपों और आर्टेमिसिनिन प्रतिरोध के मामलों में वृद्धि के खतरों का सामना कर रहे वैश्विक समुदाय के रूप में, हमें इलाज के लिए नई दवाओं के साथ तैयार रहना होगा। जेडवाई-19489 की एक ही खुराक पी फाल्सीपेरम और पी विवैक्स मलेरिया के इलाज के लिए पर्याप्त हो सकती है जो वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख जोखिम बन गया है।’
उन्होंने कहा कि जेडवाई-19489 दवा दुर्लभ और अलग तरह की बीमारियों सहित स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए समाधान लाने की दिशा में नवाचार के उनके व्यापक लक्ष्य के साथ जुड़ी हुई है। इस दवा को अमेरिका के एफडीए से ऑर्फन ड्रग पदनाम भी मिला है। इस तरह का पदनाम अमेरिका में सात साल तक विशेष रूप से मार्केटिंग का मौका देता है।
ऑर्फन ड्रग पदनाम के चलते दवा तैयार करने में प्रोत्साहन पात्रता भी मिलती है जिसमें क्वालिफाइड क्लिनिकल परीक्षण के लिए कर क्रेडिट, प्रिस्क्रिप्शन दवा उपयोगकर्ता शुल्क छूट और एफडीए की मंजूरी पर सात साल तक विशेष रूप से मार्केटिंग की सुविधा शामिल है।
पिछले हफ्ते ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने मलेरिया टीका तैयार किया जिसे अफ्रीका के फूड ऐंड ड्रग ऑथोरिटी द्वारा घाना में उपयोग के लिए लाइसेंस दिया गया है। यह मंजूरी अंतिम चरण के परीक्षण डेटा के प्रकाशन से पहले ही दी गई है। यह किसी भी देश में उपयोग के लिए आर21/मैट्रिक्स-एम मलेरिया टीके के लिए पहली नियामक मंजूरी है।
आर21/मैट्रिक्स-एम टीका में नोवावैक्स की सहायक तकनीक का उपयोग किया जाता है जिसकी मंजूरी 5 से 36 महीने के उम्र वाले बच्चों में करने के लिए दी जाती है। इस उम्र वर्ग में मलेरिया से ज्यादा मौत होने का खतरा होता है। एसआईआई इस टीके को अपने पुणे के संयंत्र में बनाएगा।
कंपनी के सूत्रों ने कहा कि अब शुरुआती जोर इस टीके के लिए डब्ल्यूएचओ प्रीक्वालिफिकेशन हासिल करना है ताकि उनके पास कई देशों में वितरण नेटवर्क हो जिन्हें टीके की आवश्यकता होती है। सूत्र ने कहा, ‘विचार यह है कि इस टीके के निर्माण को लगभग 10 करोड़ वार्षिक खुराक के स्तर तक बढ़ाया जाए।’ कंपनी ने फिलहाल भारत से जुड़ी विशिष्ट योजनाओं का खुलासा नहीं किया है।
उद्योग के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि भारत में इस तरह का टीका लाने के लिए, नियामकों को स्थानीय परीक्षण डेटा की आवश्यकता होगी। उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, ‘सुरक्षा और प्रतिरोधक क्षमता से जुड़े डेटा भले ही किसी छोटे समूह से जुड़े हों लेकिन उन्हें नियामक से मांगा जाएगा भले ही वे बाद में वैश्विक असर परीक्षण डेटा पर मंजूरी के अपने निर्णय को आधार बनाने का फैसला करें।’
जिन टीकों पर काम चल रहा है, उनमें से अधिकांश अफ्रीकी देशों में लक्षित हैं। जीएसके का प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम मलेरिया टीका (आरटीएस, एस/एएस01ई अस्थायी रूप से मोस्क्विरिक्स ब्रांड) जिसे भारत बायोटेक बनाएगा उसे शुरुआत में अफ्रीकी देशों में भेजा जाएगा। एंटीजन आरटीएस, एस भारत बायोटेक द्वारा बनाया जाएगा जबकि जीएसके टीके की सहायक की आपूर्ति करेगा। यह टीका 30 साल के शोध पर आधारित है और यूनिसेफ ने 17 करोड़ डॉलर में 1.8 करोड़ खुराक के लिए ऑर्डर दिए हैं।
भारत बायोटेक भुवनेश्वर में टीका बनाने का संयंत्र तैयार कर रही थी। यह कंपनी, 2029 तक टीके की एकमात्र आपूर्तिकर्ता होगी और अफ्रीकी देशों को सालाना 1.5 करोड़ खुराक की आपूर्ति करेगी। हालांकि भारत बायोटेक ने ताजा घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की। भारत दुनिया के लिए मलेरिया के टीकों का विनिर्माण केंद्र होगा लेकिन देश में इन टीकों के उपलब्ध होने में अभी कुछ समय लगेगा।
विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2022 के अनुसार, वैश्विक स्तर पर, 84 मलेरिया स्थानिक देशों में 2021 में अनुमानित तौर पर 24.7 करोड़ मलेरिया के मामले थे। चिंता की बात यह है कि अनुमान के मुताबिक हर मिनट मलेरिया से एक बच्चा मर जाता है। डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में मलेरिया से होने वाली कुल मौतों में से लगभग 83 प्रतिशत मौत भारत में हुई हैं। वर्ष 2021 में, दक्षिण पूर्व एशिया में मलेरिया के सभी मामलों में लगभग 79 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत की थी।