महाराष्ट्र सरकार ने स्कूलों में त्रिभाषा नीति लागू करने के अपने फैसले को रद्द कर दिया है। रविवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि इस नीति पर फिर से विचार करने के लिए एक नई समिति बनाई जाएगी। यह कदम शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के विरोध प्रदर्शनों के बाद उठाया गया, जिसमें मुंबई और राज्य के अन्य हिस्सों में कार्यकर्ताओं ने 17 जून के सरकारी आदेश (GR) की प्रतियां जलाईं। इस आदेश में कहा गया था कि कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में “आम तौर पर” पढ़ाया जाएगा, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं किया जाएगा।
शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता उद्धव ठाकरे ने इस नीति का कड़ा विरोध करते हुए कहा, “हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे थोपा नहीं जाएगा।” उन्होंने कहा कि GR की प्रतियां जलाने का मतलब है कि वे इस आदेश को स्वीकार नहीं करते। ठाकरे ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार मराठी भाषा के साथ अन्याय कर रही है और छात्रों पर अनावश्यक दबाव डाला जा रहा है। उनके नेतृत्व में हुए प्रदर्शनों ने सरकार पर नीति को वापस लेने का दबाव बढ़ाया।
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मुख्यमंत्री फडणवीस ने मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि राज्य मंत्रिमंडल ने त्रिभाषा नीति लागू करने वाले अप्रैल और जून के दो सरकारी आदेशों को वापस लेने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, “हमने कक्षा 1 से त्रिभाषा नीति लागू करने वाले GR रद्द कर दिए हैं। अब डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाएगी, जो इस नीति के लागू करने के तरीकों पर सुझाव देगी।” फडणवीस ने यह भी बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था, जिसमें कक्षा 1 से 12 तक त्रिभाषा नीति लागू करने की बात कही गई थी। इसके लिए एक पैनल भी बनाया गया था।
16 अप्रैल के GR में हिंदी को कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में अनिवार्य तीसरी भाषा बनाया गया था। लेकिन विरोध के बाद 17 जून को नए आदेश में हिंदी को वैकल्पिक कर दिया गया। इसके बावजूद विपक्ष और प्रदर्शनकारियों का गुस्सा कम नहीं हुआ।
उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने भी इस मामले में अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि 5 जुलाई को प्रस्तावित विरोध प्रदर्शन की जरूरत नहीं पड़ेगी। पवार ने सुझाव दिया कि प्राथमिक कक्षाओं में मराठी और अंग्रेजी को अनिवार्य करना चाहिए, जबकि हिंदी को कक्षा 5 से शुरू किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “जो मराठी पढ़ना-लिखना जानते हैं, वे आसानी से हिंदी सीख सकते हैं।”
विपक्षी दलों ने सरकार की शुरुआती नीति की आलोचना करते हुए कहा कि यह छात्रों पर हिंदी थोपने की कोशिश थी। मूल नियम में हिंदी को डिफॉल्ट तीसरी भाषा बनाया गया था, जब तक कि कक्षा में 20 या अधिक छात्र किसी अन्य भाषा का विकल्प न चुनें। हालांकि, सरकार ने बार-बार कहा कि हिंदी को कभी अनिवार्य नहीं किया गया और इसे थोपने के आरोपों को खारिज किया।