देश में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) की वृद्धि के लिए सबसे अनुकूल परिवेश वाले राज्यों की सूची में महाराष्ट्र शीर्ष पर पहुंच गया है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर खिसक गया है। देश में एफपीओ के लिए कारोबारी सुगमता (ईओडीबीएफ) की हालिया रैंकिंग से इसका खुलासा हुआ है। यह रैंकिंग आज जारी की गई है और यह किसान उत्पादक संगठनों के लिए क्षेत्र की स्थिति रिपोर्ट (एसओएफपीओ) के हिस्से के तौर पर जारी की गई है। किसान उत्पादक संगठनों के लिए क्षेत्र की स्थिति रिपोर्ट राष्ट्रीय किसान उत्पादक संगठन संघ (नैफपो), सम्मुनति और राबो फाउंडेशन द्वारा जारी की गई सालाना रिपोर्ट है।
पिछले साल रैंकिंग में मध्य प्रदेश शीर्ष स्थान पर था और उसके बाद महाराष्ट्र का स्थान था। 2024 की तरह ही उत्तर प्रदेश इस साल भी तीसरे स्थान पर बरकरार है। एसओएफपीओ आंकड़ों के मुताबिक, इस साल मार्च तक महाराष्ट्र में करीब 14,788 एफपीओ पंजीकृत थे, जो देश भर में कुल एफपीओ का करीब 34 फीसदी था। विशेषज्ञों की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मार्च 2025 तक पंजीकृत लगभग 43,928 में से करीब 6,100 एफपीओ ने विभिन्न वित्तीय संस्थानों द्वारा आवंटित 4,000 करोड़ रुपये के ऋण का अधिकांश हिस्सा ले लिया।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इससे पता चलता है कि बड़ी संख्या में एफपीओ अब भी औपचारिक ऋण के दायरे से बाहर हो सकते हैं। औपचारिक ऋण के स्रोतों के अलावा, ऋण नहीं मिलने से खराब कारोबारी प्रथाओं, अस्थिर कारोबारी योजनाओं और एफपीओ के अप्रभावी होने का कारण बन सकती है, जिससे कई एफपीओ की साख में भारी गिरावट आ सकती है।’
रिपोर्ट में कारोबारी सुगमता के लिहाज से एफपीओ की रैकिंग के बारे में कहा गया है कि महाराष्ट्र इसलिए भी शीर्ष स्थान पर है क्योंकि यहां एफपीओ को सबसे ज्यादा समर्थन दिया जाता है और सभी राज्यों के मुकाबले एफपीओ के लिए यहां व्यापार करने का बेहतरीन वातावरण भी मिलता है। महाराष्ट्र के बाद ऐसी स्थिति मध्य प्रदेश में है।
इस रैंकिंग के लिए करीब 10 राज्यों का विचार किया गया था, जो देश के कुल पंजीकृत एफपीओ का करीब 81 फीसदी हिस्सा हैं। रिपोर्ट में एफपीओ की विफलता के कई प्रमुख कारणों की भी पहचान की गई है। इनमें एफपीओ की कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने में बैंकों की आनाकानी और सरकारी योजनाओं का पहुंच से बाहर होना शामिल है।
इसके अलावा रिपोर्ट में पाया गया है कि विनियामक अनुपालन के कारण भी लगातार कई बाधाएं सामने आ रही हैं। इनमें रिटर्न दाखिल करने में देरी, रिकॉर्ड रखने में लापरवाही, ऑडिट का अभाव और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और आयकर दाखिल करने में हीलाहवाली शामिल है।
इसके अलावा, सही समाधान के अभाव में एफपीओ ने स्थानीय जरूरतों के अनुकूल न होने वाले कारोबारी मॉडल भी अपनाए हैं। जैसे- जहां मांग नहीं है वहां भी आपूर्ति की जाती है। इसके अलावा, विफल होने वाले एफपीओ के कई मामलों में सामुदायिक जागरूकता की अनदेखी की गई।