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गर्म होती धरती, खतरे में जीवन; जलवायु परिवर्तन से निपटने की चुनौती जारी

वर्ष 2024 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बताया सबसे गर्म साल, एजेंसियों ने चेताया

Last Updated- January 21, 2025 | 10:27 PM IST
Earth warming, life in danger; The challenge of tackling climate change continues गर्म होती धरती, खतरे में जीवन; जलवायु परिवर्तन से निपटने की चुनौती जारी

विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने एक नई भयावह गहरी लाल रेखा खींचते हुए मौसम के लि​खित इतिहास में 2024 को सबसे गर्म साल दर्शाया है। बहुत ही सुहावने अंदाज में शुरू हुए साल के बारे में इस लाल रेखा की व्याख्या करते हुए संगठन ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, ‘कोई शब्द नहीं, कोई अंक नहीं-सिर्फ अपनी धरती के गर्म होते जाने की तस्वीर। साल 2024 के बारे में एक ताजा जानकारी यह लाल रेखा है, जिसे 2023 में पहली बार उस समय संकेतक के रूप में खींचा गया था जब बीते साल ने गर्मी के मामले में पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।’

विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने इस बात की पु​ष्टि की है कि छह अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के आधार पर साल 2024 सबसे गर्म साल दर्ज किया गया है। बढ़ते तापमान के मामले में पिछले 10 साल ही इतिहास के शीर्ष 10 सबसे गर्म वर्ष रहे हैं। यह पहला ऐसा कैलेंडर वर्ष है जब औसत वैश्विक तापमान औद्योगीकरण शुरू होने से पहले के स्तर 1.5 डिग्री से​​ल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने कहा, ‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन के आंकड़ों ने फिर यह साबित कर दिया कि हमारी धरती गर्म होती जा रही है।’

भारत के मौसम विभाग ने भी कहा है कि 2024 भारत में सन 1901 से अब तक सबसे गर्म साल रहा है। इस दौरान औसत न्यूनतम तापमान दीर्घाव​धि औसत से 0.90 डिग्री से​ल्सियस ज्यादा रहा। वर्ष 2024 में वा​र्षिक औसत तापमान 25.75 डिग्री से​ल्सियस रहा जो दीर्घाव​धि औसत से 0.65 डिग्री अ​धिक दर्ज किया गया और यह भी 1901 के बाद अब तक सबसे अ​धिक रहा। इस दौरान औसत अ​धिकतम तापमान भी 31.25 डिग्री से​ल्सियस रहा। यह सामान्य से 0.20 डिग्री से​ल्सियस ज्यादा और 1901 के बाद सबसे अ​धिक दर्ज किया गया। मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा, ‘दीर्घाव​धि आकंड़ों से पता चलता है कि देश के अ​धिकांश हिस्सों में खासकर मॉनसून के बाद एवं सर्दी सीजन के दौरान न्यूनतम तापमान में वृद्धि का रुझान देखने को मिल रहा है।’

जीवन और आजीविका

भीषण गर्मी विपरीत मौसमी गतिवि​धियों का कारण बनती है, जिसका सीधा असर आ​​र्थिक क्षेत्र पर पड़ता है। इनमें भी आर्थिक रूप से गरीब व द्वीपीय देश, समुद्र तटीय शहर और कृ​षि एवं मत्स्यपालन जैसे वर्षा आश्रित व्यवसाय सबसे अ​धिक प्रभावित होते हैं।

हाल ही में सरकारी अ​धिकारियों के हवाले से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में 6 से 10 प्रतिशत की कमी आई है। गैर-लाभकारी संगठन अनचार्टेड वॉटर द्वारा 30 वर्षों के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट में भी कहा गया है कि घनी सर्दी के मौसम के बाद अपेक्षाकृत बसंत में गर्मी अ​धिक होने से गेहूं का उत्पादन 20 प्रतिशत तक कम हो जाता है।

डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) द्वारा समबो​धि रिसर्च ऐंड ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन के साथ मिलकर तैयार दूसरे वा​र्षिक सर्वेक्षण ‘भारत में सीमांत किसानों की ​स्थिति-2024’ में पाया गया है कि विपरीत मौसमी घटनाओं के कारण सीमांत किसनों की कम से कम आधी फसल बरबाद हो जाती है। सर्वे में कहा गया है कि गेहूं की फसल को 40 प्रतिशत तो चावल की फसल को 50 प्रतिशत नुकसान होता है। तापमान वृद्धि होने पर कृ​षि उपज उत्पादन में नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे दूध की आपूर्ति भी बहुत बुरी तरह प्रभावित होती है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी पैनल के अनुसार गर्मी बढ़ने से हिल्सा और बॉम्बे डक जैसी मछली की प्रजातियों के वा​णि​ज्यिक उत्पादन पर भी असर पड़ता है।

भीषण लू की ​स्थिति

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार साल 2024 में लू लगने से 360 लोगों की जान गई थी। हालांकि स्वतंत्र सर्वेक्षणों में मौतों का आंकड़ा कहीं अ​धिक बताया गया। बाढ़ और सूखा जैसी विपरीत मौसमी गतिवि​​धियों के कारण कई अन्य तरही की बीमारियां भी लोगों को अपनी चपेट में लेती हैं और इससे बड़ी संख्या में लोगों की जानें जाती हैं।

ठंड की चाहत बढ़ा रही गर्मी

पिछले साल गर्मी सीजन में बिजली की मांग ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। विश्व ऊर्जा आउटलुक 2023 के अनुसार 2010 के बाद देश में एसी रखने वालों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है। अब प्रत्येक 100 में से 24 घरों में एसी (एयर कंडीशन) लगी है। इससे देश में बिजली की मांग बढ़ती जा रही है। पहले जहां कार्यालयी घंटों के दौरान ही बिजली की मांग बढ़ती थी, अब शाम के समय इसमें भारी इजाफा देखा गया है।

वास्तविकता से सामना

नेट कार्बन जीरो ​स्थिति हासिल करने के लिए भारत ने 2070 तक का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके अलावा इस दशक के अंत तक 500 गीगावाट हरित ऊर्जा परिवर्तन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य भी है। भारत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने और वनों की संख्या बढ़ाने के लिए भी प्रतिबद्ध है। गर्म होती धरती की कड़वी सच्चाई को पहचानते हुए इससे निपटने के लिए कई क्षेत्रों ने अपनी नीतियों में परिवर्तन करने शुरू कर दिए हैं।

जलवायु परिवर्तन की चुनौती से पार पाने के लिए प्रधानमंत्री कृ​षि सिंचाई योजना, मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड, परंपरागत कृ​षि विकास योजना, कृषि आकस्मिक योजनाएं और जलवायु आधारित कृषि राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) तथा कृ​षिवानिकी सब-मिशन जैसी योजनाएं लागू की गई हैं।

स्वच्छ ऊर्जा योजना के अंतर्गत भारत ने 200 गीगावाट हरित ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य हासिल कर लिया है। हरित ऊर्जा के मामले में दक्षता बढ़ाने के लिए भारत घरेलू और वाणिज्यिक दोनों स्तरों पर विद्युत गतिशीलता, ऊर्जा भंडारण, ऊर्जा कुशल इलेक्ट्रॉनिक्स आदि पर खूब जोर दे रहा है। लेकिन राज्यों के स्तर पर इस मामले में काफी ढिलाई बरती जा रही है।

वर्ष 2022 तक केवल राजस्थान, केरल, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश ने ही जलवायु परिवर्तन पर राज्य स्तरीय कार्ययोजना को संशो​धित किया था। इस प्रकार की योजना को लागू करने के मामले में समुद्र किनारे के राज्य इस मामले में कहीं आगे दिखते हैं। तमिलनाडु जहां जल बजट पेश करने वाला पहला राज्य रहा, वहीं ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए तमिलनाडु ने पिछले साल सितंबर में देश में सबसे पहले क्लाइमेट चेंज मिशन लागू किया। प​श्चिम बंगाल सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट तथा इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों एवं हितधारकों के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन पर नई राज्य कार्य योजना का मसौदा तैयार कर रहा है। ओडिशा के बारे में भी कहा जा रहा है कि वह सभी क्षेत्रीय नीतियों और निवेश योजनाओं में हरित लक्ष्य निर्धारित कर रहा है।

गर्म होती धरती पर काबू पाने के लिए तमाम कार्यों, योजनाओं और परियोजनाओं के बावजूद अभी इस दिशा में बहुत लंबा सफर तय करना है।

First Published - January 21, 2025 | 10:27 PM IST

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