Natwar Singh dies: पूर्व विदेश मंत्री एवं पाकिस्तान में भारत के राजदूत रहे कुंवर नटवर सिंह का शनिवार को गुरुग्राम में निधन हो गया। वह 93 वर्ष के थे। सिंह ने भारत की विदेश नीति की दिशा निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह ऐसे समय में पाकिस्तान में राजदूत थे जब दोनों देशों के संबंध नाजुक दौर से गुजर रहे थे।
सिंह वर्ष 1984 में विदेश सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति में शामिल हुए थे और भू-राजनीति पर कांग्रेस का रुख तय करने लगे। हालांकि, बाद में पार्टी के नेतृत्व से उनकी अनबन हो गई जिसके बाद वह वर्ष 2008 में अलग हो गए। सिंह एक मजेदार वक्ता एवं प्रतिभावान लेखक भी थे।
सिंह मनमोहन सिंह सरकार में 2004-05 के दौरान विदेश मंत्री थे मगर बाद में उन पर भाई-भतीजावाद का आरोप लगा जिसके बाद उन्हें पद से हटना पड़ा। सिंह ने इन आरोपों को निराधार बताया। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में 1985-86 के दौरान उन्होंने इस्पात, खान एवं कोयला एवं कृषि राज्य मंत्री के रूप में भी कमान संभाली। बाद में वह उसी सरकार में 1986-89 के बीच विदेश राज्य मंत्री बने।
हालांकि, बहुत कम लोगों को यह बात पता है कि सिंह ने कई नीतिगत एवं देश से जुड़े महत्त्वपूर्ण विषयों पर भी अपने सुझाव दिए। सिंह ने स्वयं को सदैव नेहरूवादी विचारों का माना। नेहरू के प्रति गहरे सम्मान के कारण सिंह इंदिरा गांधी के मित्र बन गए और कूटनीति के साथ-साथ वह नीति निर्धारण में अघोषित सलाहकार बन गए।
उदाहरण के लिए उन्होंने शाही अनुदान (प्रिवी पर्स) की व्यवस्था समाप्त करने के लिए राज परिवारों को मनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। शाही अनुदान खत्म करना कांग्रेस को नया रूप देने की इंदिरा गांधी की पहल का अहम हिस्सा था। सिंह इंदिरा गांधी के प्रशंसक थे और एक बार उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ इंदिरा के साथ अपनी काबुल यात्रा का वृत्तांत साझा किया।
इंदिरा ने बाबर की कब्र बाग-ए-बाबर देखने की इच्छा जताई थी। बाबर को श्रद्धांजलि देते वक्त गांधी ने सिंह से कहा, ‘ऐसा लगा रहा है जैसा इतिहास से मेरा साक्षात्कार हो रहा है’। इसके जवाब में सिंह ने कहा कि उनके लिए लिए यह ऐतिहासिक पल है। उन्होंने कहा, ‘भारत की शासिका के साथ बाबर को श्रद्धांजलि देना उनके लिए एक बड़ा सम्मान था।’
श्रीमती गांधी से नजदीकी के कारण सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर सीधे हस्तक्षेप कर सकते थे। उन्होंने पाकिस्तान के विभाजन के समय ऐसा ही किया था जब उन्होंने पाकिस्तान के कदम के बारे में मिली खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई थी। यह जानकारी सिंह को पोलैंड में पूर्वी पाकिस्तान के एक कूटनीतिज्ञ से मिली थी, जहां वह (सिंह) पदस्थापित थे। इंदिरा ने ही सिंह को राजनीति में आने का सुझाव दिया था। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो सिंह मंत्री बनाए गए मगर इस्पात या कोयला मंत्रालयों में उनका मन नहीं लगा। वह राजीव गांधी के कुछ सलाहकारों के समूह से खफा भी थे।
एक अंतराल के बाद उन्हें विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। उन्होंने गुट-निरपेक्ष देशों की बैठकों और भारत में राष्ट्रमंडल देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक के आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मगर राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस में सिंह अलग-थलग महसूस करने लगे और उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के खिलाफ पार्टी में एक दूसरा धड़ा तैयार करने की मुहिम शुरू की। मगर यह विद्रोह इसलिए सफल नहीं हुआ क्योंकि सोनिया गांधी कांग्रेस में एक दूसरे धड़े के नेता के रूप में राजनीति में आने को इच्छुक नहीं थीं। बाद में सिंह विदेशी मामलों पर सोनिया गांधी के सलाहकार बन गए।
जिस वक्त सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के लिए मनमोहन सिंह के नाम का प्रस्ताव दिया तो उस वक्त कमरे में तीन लोग थे जिनमें सिंह भी एक थे। सिंह के लिए तब मुश्किल दौर शुरू हो गया जब संयुक्त राष्ट्र के भोजन के बदले तेल कार्यक्रम में उन पर संलिप्तता का आरोप लगा।
हालांकि, भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति ने उन्हें भ्रष्टाचार के सभी आरोपों से बरी कर दिया मगर इस पूरे मामले ने विपक्ष को सिंह पर निशाना साधने का एक जरिया दे दिया। वर्ष 2014 में वह नरेंद्र मोदी से मिले और संभवतः उन्हें अपना समर्थन देने की पेशकश की। उसके बाद सिंह आखिरी सांस तक मोदी के समर्थक रहे।
सिंह लोगों के साथ जुड़ने में हमेशा दिलचस्पी दिखाते थे और विनोदपूर्ण स्वभाव के थे मगर सीधी बात करने के लिए भी जाने जाते थे। एक बार उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि अमेरिकी प्रशासन से एक ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति भारत के दौरे पर आने वाले थे, जो न केवल अंडरटेकर की तरह दिखते थे, बल्कि उन्हें भी ऐसे ही व्यक्ति की जरूरत थी। सिंह ने अपने बारे में अपनी आत्मकथा ‘वन लाइफ इज नॉट इनफ’ में अपने जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं का उल्लेख किया है।