जब पूरा देश 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, उसी रात आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की 31 वर्षीय प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के विरोध में हजारों लोग कोलकाता की गलियों में निकल पड़े। कोलकाता में प्रदर्शन होते रहते हैं। इस शहर का मिजाज ही ऐसा है, लेकिन आधी रात को हजारों लोगों का एक साथ, एक सुर में न्याय के लिए सड़कों पर उतरना हाल के दिनों में देखी गई इकलौती घटना है।
चाहे शहर कोलकाता हो या जिला मुख्यालय अथवा अन्य कस्बे, पूरे पश्चिम बंगाल में महिलाएं हाथ में मोमबत्ती, तख्तियां, मोबाइल टॉर्च लेकर शंख बजाते हुए प्रदर्शन कर रही थीं। इस विरोध प्रदर्शन में सभी वर्गों के लोग शामिल हुए, जिसमें सामाजिक आर्थिक रेखाएं धूमिल हो गईं। बड़ी संख्या में पुरुष भी इस विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे।
आधी रात को कोलकाता की गलियों से उठी विरोध की ये आवाजें व्यवस्थागत नाकामी के खिलाफ थीं, जो देखते ही देखते पूरे बंगाल और फिर देश के विभिन्न हिस्सों में गूंज रही थीं। माकपा और भाजपा जैसे विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हो गए। चिकित्सा हलकों में गम और गुस्सा है। बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता भी डॉक्टर की हत्या के विरोध में खुल कर आवाज उठा रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य एवं गृह विभाग की मुखिया ममता बनर्जी भी घटना को लेकर मुश्किलों में घिरी हैं। बीते शुक्रवार को न्याय की मांग करते हुए उन्होंने विरोध मार्च निकाला और सीबीआई को अपनी जांच पूरी कर मामले का खुलासा करने के लिए रविवार तक का समय दिया, लेकिन उनकी आवाज गम, गुस्से और विरोध प्रदर्शनों को दबाने में कारगर साबित नहीं हुई। प्रदेश की सरकार ने शनिवार को सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों, हॉस्टल और संस्थानों में रात के समय महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई उपायों का ऐलान किया।
सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई घटना के बाद जिम्मेदारी, कार्रवाई और आत्मनिरीक्षण जैसे पहलुओं पर काम शुरू कर दिया गया है।
आरजी कर मेडिकल कॉलेज में प्रशिक्षु डॉक्टर दुष्कर्म और हत्या की घटना ने बंगाल प्रशासन को शर्मसार कर दिया है। ऐसा क्यों हुआ, इसके पीछे पूरे घटनाक्रम को समझना होगा। 9 अगस्त की रात लगभग 11:30 बजे पीडि़त डॉक्टर ने अपने माता-पिता से फोन पर बात की। उस समय वह बिल्कुल ठीक-ठाक हालत में बात कर रही थीं।
अगली सुबह यानी 10 अगस्त को 10:53 बजे डॉक्टर के माता-पिता को आरजी कर मेडिकल कॉलेज के सहायक अधीक्षक द्वारा फोन पर कथित रूप से बताया जाता है कि उनकी बेटी की तबियत ठीक नहीं है। लगभग 22 मिनट के बाद उसी व्यक्ति ने कथित रूप से पीडि़त प्रशिक्षु डॉक्टर के माता-पिता को बताया कि उनकी बेटी ने अस्पताल परिसर में ही आत्महत्या कर ली है।
रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर के शरीर पर चोट के निशान थे और उनकी मौत गला घोंटने के कारण हुई। महिला डॉक्टर की जघन्य तरीके से हत्या ने डॉक्टर समुदाय को ही नहीं, बलिक पूरे समाज को झकझोर दिया और पीडि़ता को न्याय और डॉक्टरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम के लिए डॉक्टरों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। वे आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य संदीप घोष पर घटना को दबाने का आरोप लगा रहे थे और इसलिए उन्हें पद से हटाने की मांग तेज हो गई।
घोष ने सोमवार 12 अगस्त को अपने पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन कुछ ही घंटों बाद उन्हें नैशनल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल कोलकाता का प्रिंसिपल बना दिया गया। सरकार की यह बहुत बड़ी भूल साबित हुई।
पीडि़ता के परिजन समेत अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘यह समझ में नहीं आ रहा कि आखिर उन्हें दूसरे कॉलेज में जिम्मेदारी सौंपने की क्या जल्दी थी?’ अदालत ने घोष को फौरन छुट्टी पर जाने का आदेश दिया और मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।
मामले को लेकर विपक्षी दल जहां राजनीतिक लाभ लेने की फिराक में रहे, वहीं न्याय के लिए उठी आवाजों ने जन आंदोलन का रूप ले लिया। रिमझिम सिन्हा (29) ने सोशल मीडिया पर न्याय के लिए उठ खड़े होने का आह्वान किया। निशाने पर पूर्व प्राचार्य संदीप घोष थे, जिन्होंने शुरुआत में आत्महत्या बताकर मामले को दबाने की कोशिश की और कथित रूप से कहा, ‘रात के अंधेरे में सेमिनार हॉल में जाना डॉक्टर की बड़ी गलती थी।’
शोधकर्ता सिन्हा ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा- ‘रात के दोखोल कोरो।’ यह आवाज एक आंदोलन की मशाल साबित हुई। सिन्हा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘महिलाओं या अन्य उपेक्षित वर्गों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाओं के खिलाफ जब भी उठाओ, तो पीडि़त को ही दोषी ठहराने का प्रयास किया जाता है। यह पूरी तरह अस्वीकार्य है। इसलिए महिला के तौर पर मैं 15 अगस्त की रात को स्वतंत्रता के रूप में मनाना चाहती थी और मैंने पूरी रात घर से बाहर रहने का निर्णय लिया था।’ वह बताती हैं कि उन्होंने केवल इतना सोचा था कि उनकी पोस्ट को केवल दोस्त ही स्वीकार करेंगे और घरों से बाहर निकलेंगे, लेकिन इसका इतना असर होगा, उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में तोड़फोड़ का आरोप विपक्षी भाजपा और माकपा पर लगाया है। ममता के अनुसार प्रदर्शनकारी पीडि़त डॉक्टर को न्याय के लिए सड़कों पर नहीं उतरे, वे उनकी महत्त्वाकांक्षी योजना लक्ष्मीर भंडार का विरोध कर रहे थे, जो गरीब महिलाओं को हर महीने एकमुश्त आय का जरिया है। सवाल उठ रहा है कि क्या ये विरोध प्रदर्शन ममता के जनाधार को हिला देंगे? भाजपा और माकपा का मानना है कि इसका व्यापक असर पड़ेगा।